जिंस के बढ़ते दाम, जिनमें रूस-यूक्रेन युद्ध से और तेजी आई है, भारतीय अर्थव्यस्था के दमदार सुधार को हल्का कर सकते हैं और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पर अपनी मौद्रिक नीति को अपेक्षा से अधिक तेजी से सामान्य करने का दबाव डाल सकते हैं। एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने गुरुवार को एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से भारत को सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाने वाली वस्तुओं, खास तौर पर खाद्य और उर्वरकों के संबंध में अधिक व्यय का सामना करना पड़ा सकता है। एसऐंडपी ने एशिया-प्रशांत देशों पर यूक्रेन में संघर्ष के संबंध में एक रिपोर्ट में लिखा है कि जिंसों के अधिक दाम भारत में निजी खपत के रुझान की उम्मीद को भी कमजोर कर सकती हैं, क्योंकि परिवार उन वस्तुओं पर अधिक खर्च करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के दमदार सुधार में कमी आ सकती है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति लगातार दो महीनों से आरबीआई के दो से छह प्रतिशत के लक्ष्य दायरे से कुछ ऊपर रही है। इसमें कहा गया है कि आगे और बढ़ोतरी होने से केंद्रीय बैंक पर अपनी मौद्रिक नीति को और अधिक तेजी से सामान्य करने का अधिक दबाव पड़ सकता है, जिसमें संभावित दर बढ़ोतरी भी शामिल है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यूक्रेन में संघर्ष के बाद से उभरते बाजार वाले राष्ट्रों में उनके ऋण पर प्रतिफल में इजाफा दिखाई दिया है, जबकि चीन, जापान और कोरिया जैसे कुछ ऊंची श्रेणी वाले देशों ने अपनी उधारी लागत में महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं देखा है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम द्वारा जारी स्थानीय मुद्रा वाले सरकारी ऋण पर पांच साल का बेंचमार्क प्रतिफल फरवरी के मध्य से 25 आधार अंक (बीपीएस) बढ़कर 90 हो चुका है। अधिक मुद्रास्फीति सीधे तौर पर सॉवरिन-डेट पैमाइश को प्रभावित करती है और राजस्व में वृद्धि की तुलना में आगे निकलते हुए बढ़ती दरों से सरकारी ऋण पर ब्याज भुगतान बढ़ता है।