केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय के राज्यों को खनन व खनन संबंधित गतिविधियों पर उपकर लगाने के फैसले की पुनर्विचार की मांग की है। सर्वोच्च न्यायालय ने 25 जुलाई को 8:1 से फैसला दिया था।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने 14 अगस्त के फैसले ने राज्यों को केंद्र से खनिज युक्त भूमि से पिछली तारीख 1 अप्रैल 2005 के बाद से रॉयल्टी संग्रहित करने की अनुमति दे दी थी। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को चुनौती दी। अदालत ने रॉयल्टी के भुगतान की सहूलियत देते हुए कहा कि 1 अप्रैल, 2026 के बाद से 12 वर्ष की अवधि में कर का भुगतान किश्तों में होगा।
अदालत ने यह भी कहा था कि 25 जुलाई, 2024 या उसके पहले की गई ब्याज की वसूली और जुर्माने की मांग को माफ कर दिया जाएगा। केंद्र ने कथित तौर पर खुली अदालत की सुनवाई में 25 जुलाई के फैसले की समीक्षा के लिए सह याची के रूप में मध्य प्रदेश को भी शामिल किया है।
झारखंज जैसे खनिज युक्त राज्यों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बकाये से संबंधित नियमित पीठ के समक्ष सुनवाई से पहले इस मामले की जल्दी सूचीबद्धता के लिए अपील की थी। हालांकि केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता और टाटा समूह की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ को पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की जानकारी दी थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने आश्चर्य जताया था। संविधान पीठ के फैसले की पुनर्विचार? भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ह्रषीकेश रॉय, अभय एस ओका, बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 25 जुलाई को फैसला सुनाया था।