मुंबई के बांद्रा में हिल रोड पर एक मशहूर डिपार्टमेंटल स्टोर में काम करने वाली महिला काउंटर पर जमा हुई महिलाओं को टॉप का एक नया सेट देने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। दीवाली से पहले सप्ताहांत में यहां लोगों की भीड़ देखने को मिल रही है और वह इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहती हैं। हालांकि दुकान के बाहर की तस्वीर बिल्कुल अलग है। चारों ओर भीड़ नजर आती है, पटरी पर सामान, कपड़े बेचे जा रहे हैं, कई दुकानें खरीदारों को आकर्षित करने में लगी हुई हैं। ऐसा लगता है कि कारोबार में सुधार के संकेत दिख रहे हैं लेकिन ऐसा कुछ जगहों पर ही है क्योंकि उपभोक्ता बेहद सावधानी से बाहर कदम बढ़ा रहे हैं और खुदरा विक्रेता इस मौके को भुनाना चाहते हैं।
पिछले महीने भारतीय खुदरा विक्रेताओं के संगठन ने एक अध्ययन में कहा था कि दीवाली के मौके पर मॉल या खरीदारी के प्रमुख केंद्रों के मुकाबले शहर के प्रमुख सड़कों के बाजारों की खरीदारी में तेजी आएगी। मुंबई के हिल रोड की तरह ही बेंगलूरु की कॉमर्शियल स्ट्रीट दुकानदारों और उत्साहित खुदरा विक्रेताओं के रुझान को प्रतिबिंबित करती है। कॉमर्शियल स्ट्रीट एसोसिएशन के सचिव मयंक रोहतगी कहते हैं, ‘कमर्शियल स्ट्रीट में आने वाले करीब 80 फीसदी लोग गंभीर खरीदार होते हैं जो यह जानते हैं कि उन्हें क्या खरीदारी करनी है।’ ब्रिगेड रोड पर भी बेंगलूरु में टेलीविजन सेट और सोनी प्ले-स्टेशन जैसे सामान की बिक्री की अच्छी रफ्तार देखने को मिल रही है। ब्रिगेड शॉप ऐंड एस्टेब्लिशमेंट्स एसोसिएशन के सचिव सोहेल यूसुफ कहते हैं, ‘मेरा कारोबार एक महीने में 40-50 फीसदी बढ़ा है। हमने 150 टीवी सेट, 40 होम थिएटर सिस्टम बेचे हैं और कम आपूर्ति की वजह से सोनी प्लेस्टेशन 4 की 400 बुकिंग प्रतीक्षा सूची में है।’ मुंबई और बेंगलूरु के प्रमुख सड़कों से जुड़े बाजारों में भीड़ देखी जा रही है जो त्योहार और शादी की खरीदारी के लिए जुटी भीड़ है जबकि चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता में ऐसा नहीं है।
टेक्नोपैक के चेयरमैन अरविंद सिंघल का कहना है कि शहरों और स्टोर में खुदरा खरीदारी एक समान होने की जरूरत नहीं है। यह यहां सच लगता है। चेन्नई का टी नगर काफी सुनसान हो चुका है। इसी तरह दिल्ली के लाजपत नगर सेंट्रल मार्केट, अमर कॉलोनी और भागीरथ पैलेस में खुदरा विक्रेता काफी हद तक अपने नुकसान की गिनती कर रहे हैं। लाजपत नगर सेंट्रल मार्केट में 50 साल पुरानी दुकान चलाने वाले रामलाल अग्रवाल कहते हैं, ‘महामारी के डर से लोग घर से बाहर कम निकल रहे हैं और इसके अलावा लोग कपड़े पर कम पैसे खर्च करेंगे।’
एक थोक कारोबारी और अमर कॉलोनी के निवासी तरणदीप सिंह के मुताबिक अप्रैल-मई में लॉकडाउन के बाद कम से कम 25 फीसदी कारोबार ऐसे हैं जो फिर से शुरू नहीं हो पाए हैं। वह कहते हैं, ‘बिक्री अब तक बहुत कम रही है और यह हममें से ज्यादातर के लिए 40-60 प्रतिशत तक है। खुदरा विक्रेताओं की तरफ से की जाने वाली मांग पिछले साल से कम हो गई है। इसके अलावा इनमें से कई लोगों की अपने वाहनों तक पहुंच नहीं है और वे अपनी दुकान चलाने में असमर्थ हैं।’ कोलकाता में आमतौर पर दीवाली की खरीदारी के लिए मॉल में लोगों की भीड़ उमड़ती है। लेकिन इस साल साउथ सिटी मॉल के बाहर पार्किंग की पर्याप्त जगह दिखने से यह संकेत मिलता है कि हमेशा की तरह यहां कारोबार नहीं हो रहा है। वहीं अलग दुकानें और पटरी पर बिक्री करने वाले दुकानदारों के यहां ग्राहकों की भीड़ है।
यहां भीड़ बस उतनी ही है जितनी कि एक मध्य सप्ताह के दोपहर के दौरान भीड़ होती है। साउथ सिटी में जारा, माक्र्स ऐंड स्पेंसर और कैल्विन क्लीन जैसे खुदरा विक्रेताओं की दुकाने हैं। साउथ सिटी समूह के उपाध्यक्ष प्रेसिडेंट मनमोहन बागड़ी ने कहा, ‘महंगी खरीदारी करने वाले करीब 45 फीसदी लोगों ने बाहर कदम नहीं रखा है।
