केंद्र सरकार की तरफ से जहां एक तरफ भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने का दावा किया जा रहा है तो वहीं कई एजेंसियों का यह अनुमान है कि देश अगले 5 सालों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। ऐसे में दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री रोहित लांबा ने आज यानी बुधवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा कि भारत को 2047 तक एक विकसित देश बनने के लिए अपनी शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों (education and health care systems ) को मजबूत करना होगा जिसके लिए ऐसे विकास की जरूरत है जो टिकाऊ हो और के-आकार का न हो।
लांबा ने कहा, ‘अगर हम के-आकार (k-shape) की अर्थव्यवस्था पर ध्यान नहीं देते हैं, अगर ज्यादा लोग आर्थिक विकास में भाग नहीं लेते हैं, तो यह टिकाऊ नहीं होगी।’ बता दें कि k-आकार की अर्थव्यवस्था में कुछ सेक्टर्स तो तेजी से बढ़ते हैं, तो वहीं कुछ सेक्टर्स की ग्रोथ में ज्यादा गिरावट आ जाती है। जिसके चलते सभी क्षेत्रों का समावेशी विकास संभव नहीं हो पाता।
बिज़नेस स्टैंडर्ड की 50वीं सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम BS Manthan (बीएस मंथन) में बातचीत करते हुए रोहित लांबा ने कहा, ‘हमें बस अपनी बुनियादी आवश्यकता यानी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा (primary and secondary education) को सही करने की जरूरत है। हम एक फिट, हेल्दी और सक्षम कार्यबल तैयार करने में सक्षम होने से काफी दूर हैं जो हमें 2047 तक विकसित भारत बनाने में मदद करे।’
लांबा ने कहा, ‘आज हमारे डेवलपमेंट के रास्ते में, सबसे बड़ी रुकावट हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश (demographic dividend) की मानव पूंजी है। वर्तमान में, यह फोकस बड़े पैमाने पर गायब है।’
Penn State University के असिस्टेंट प्रोफेसर लांबा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के संपादकीय निदेशक (Editorial Director) ए. के. भट्टाचार्य से ‘Breaking the mould – reimagining India’s economic future to becoming a developed nation by 2047’ विषय पर चर्चा की। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत को विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सबसे बड़ी जरूरत देश के शिक्षा को मजबूत करना है।
लांबा ने भारत के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (per capita GDP ) की तुलना चीन के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2,500 डॉलर (12,500 डॉलर) से की। उन्होंने कहा कि ‘विकसित भारत’ का रोडमैप भारत को 2047 में 100 साल पूरे होने तक एक मजबूत मध्यम आय वाला देश (middle income country) बनाकर ही हासिल किया जा सकता है।
बातचीत के दौरान लांबा ने भारत की श्रम शक्ति यानी लेबर फोर्स के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘भारत के कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सुधार की जरूरत है। हालांकि, कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए कामगार निकलकर अगर अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में अपना योगदान देते हैं तो इसके बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
लांबा ने कहा, ‘कोविड-19 महामारी से पहले भी, लोगों ने कृषि क्षेत्र की ओर वापस जाना शुरू कर दिया था। यह एक विकासशील देश के लिए निराशाजनक है। हमारे पास कृषि के लिए बेहतर आइडियाज की कमी नहीं है, लेकिन मध्यम अवधि में, राजनीतिक अर्थव्यवस्था कैसे चलती है, इसके आधार पर मुझे लगता है कि कृषि से निकालकर अन्य सेक्टर्स में श्रमिकों का आना बेहतर साबित हो सकता है।’
नौकरियां पैदा करने के बारे में लांबा ने कार्यबल (workforce) के लिए व्यापक ट्रेनिंग का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि एक बार जब आप उत्पादों के मूल्य का एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लेते हैं, तो नौकरियां पैदा होने लगती हैं।
उन्होंने कई अध्ययनों का हवाला देते हुए बताया कि भारत में कॉलेजों से निकलने वाली 50 प्रतिशत लेबर फोर्स रोजगार के लायक नहीं है।
भारत को चीन को मात देने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय आर्थिक विकास के लिए अपना रास्ता खुद बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लोगों को ‘चीन का मोह’ छोड़ना होगा कि नौकरियां केवल फ़ैक्टरी में ही मिलेंगी।’
लांबा ने कहा, ‘हमें वैश्विक विनिर्माण व्यापार (global manufacturing trade) के 10 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद रखनी चाहिए।’
लांबा ने भारतीय मैन्युफैक्चरिंग की समस्याओं के तीन कारण गिनाए। उन्होंने कहा, ‘भारत के पास चीन जैसी मध्यम कुशल शिक्षित श्रम शक्ति (moderately skilled educated labour force) कभी नहीं थी। एक लोकतंत्र के रूप में, यह चीन की तरह वेतन, बाजार और राजनीतिक ताकतों को दबा नहीं सकता। भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर की गति कई कारणों से चीन से मेल नहीं खा सकी। हालांकि, यह रास्ता आशाजनक है क्योंकि भारत पहले से ही कम कौशल विनिर्माण क्षेत्र (low skill manufacturing sector) में है।
उन्होंने यह भी कहा कि कंपनियां भू-राजनीतिक कारणों से अपनी सप्लाई चेन स्ट्रैटेजी को बदल रही हैं। इसके कारण भारत के लिए दूसरा चीन बनने की गुंजाइश कम होती जा रही है।’
लांबा ने कहा कि फाइनल मैन्युफैक्चरिंग की धारणा को समझने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारत चिप फैब्रिकेशन प्लांट स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा इसकी डिजाइन हैं। भारत 20 फीसदी चिप डिजाइन करता है लेकिन इसके पास अपनी बौद्धिक संपदा (intellectual property) नहीं है।’
उन्होंने कहा कि अमेरिका में एक यूनिवर्सिटी से निकलने वाले छात्रों को शुरुआती वेतन के रूप में लगभग 150,000 डॉलर- 200,000 डॉलर की सैलरी की आवश्यकता होती है। हालांकि, कोई भी भारत में किसी को बेंगलूरु में उसी के 80 फीसदी काम के लिए 40,000 डॉलर में नियुक्त कर सकता है।
बता दें कि रोहित लांबा साल 2012-13 में भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं। उन्होंने तत्कालीन अर्थव्यवस्था पर पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन के साथ मिलकर Breaking the Mould : Reimagining India’s Economic Future नाम की किताब भी लिखी है।