मौद्रिक सख्ती के चक्र से जुड़ी नई चिंताओं की वजह से घरेलू बॉन्ड बाजारों में आए उतार-चढ़ाव से कंपनियों के लिए उधारी लागत में इजाफा हुआ है, क्योंकि निजी फर्मों द्वारा जारी बॉन्डों पर प्रतिफल बढ़ा है।
कॉरपोरेट बॉन्ड प्रतिफल में वृद्धि काफी हद तक सरकारी बॉन्डों पर प्रतिफल के अनुरूप रही है। सरकारी बॉन्ड निजी क्षेत्र द्वारा जुटाए जाने वाले ऋण का मूल्य निर्धारण करने के लिए मानक हैं। बॉन्ड कीमतों और प्रतिफल के बीच विपरीत संबंध है।
ब्लूमबर्ग के आंकड़े से पता चलता है कि तीन वर्षीय कॉरपोरेट बॉन्डों पर प्रतिफल 8 फरवरी को आरबीआई की नीतिगत बैठक के बाद से 15 आधार अंक बढ़ा है, जबकि पांच वर्षीय बॉन्डों पर प्रतिफल 12 आधार अंक चढ़ा है। डेट के जरिये कॉरपोरेट कोष उगाही का बड़ा हिस्सा इन्हीं परिपक्वताओं से संबंधित है। 10 वर्षीय कॉरपोरेट बॉन्डों में 15 आधार अंक की तेजी आई है।
समान अवधि के दौरान तीन वर्षीय और पांच वर्षीय सरकारी बॉन्डों पर प्रतिफल 17-17 आधार अंक बढ़ा, जबकि 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड के लिए इसमें 6 आधार अंक की तेजी आई। सॉवरिन बॉन्डों में उतार-चढ़ाव के अनुरूप, कॉरपोरेट बॉन्ड प्रतिफल पिछले कई महीनों से सपाट रहा।
यह स्थिति खासकर पिछले कुछ महीनों के दौरान अल्पावधि बॉन्ड प्रतिफल में बड़ी तेजी की वजह से दर्ज की गई।आरबीआई द्वारा दर वृद्धि की तेज रफ्तार और आगामी सख्ती को लेकर पैदा हुई अनिश्चितता से भी बॉन्ड प्रतिफल में तेजी देखने को मिली। अल्पावधि बॉन्डों को अल्पावधि ब्याज दर अनुमानों के लिहाज से बेहद संवेदनशील माना जाता है।
ब्याज दरों से जुड़ी चिंताओं के अलावा, विश्लेषकों ने वित्त वर्ष के अंत में दर्ज किए गए कई मौसमी कारकों को भी इसके लिए जिम्मेदार माना है, जिनमें बैंकों द्वारा जमा पत्रों के निर्गमों में तेजी भी मुख्य रूप से शामिल है।
अस्पष्ट दृष्टिकोण
भारतीय डेट बाजारों में बड़ी बिकवाली के मुख्य कारकों में ब्याज दरों से संबंधित प्रतिकूल रुझानों का ताजा दौर भी रहा है, जिससे बाजार धारणा प्रभावित हुई। 8 फरवरी को अपने नीतिगत बयान में आरबीआई ने अपनी दर वृद्धि पर विराम लगाने के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया, जिससे ज्यादातर कारोबारियों को निराशा हुई। कुछ ही दिन बाद पेश किए गए आंकड़े से जनवरी में भारत की उपभोक्ता कीमतों में बड़ी तेजी आने का पता चला, जिससे आरबीआई के मुद्रास्फीति अनुमान को लेकर जोखिम पैदा हो गया तथा अन्य दर वृद्धि की आशंका मजबूत हुई।
एक अधिकारी ने कहा, ‘एनबीएफसी बॉन्डों को लेकर भी दिलचस्पी नहीं है। इसे लेकर समस्या यह है कि ये तीन वर्षीय और पांच वर्षीय अवधि से जुड़े हैं। एसबीआई के जो एटी-1 बॉन्ड पांच वर्षीय कॉल ऑप्श्न के साथ 7.75 प्रतिशत की दर पर जारी किए गए थे, वे अब बाजार में 8.10-8.15 प्रतिशत पर उपलब्ध हैं।’
ट्रेजरी अधिकारियों ने कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा नियामकीय रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म के उन्नत वर्जन पर अमल किए जाने से पैदा हुई समस्याओं का भी जिक्र किया है।