भारत में महंगाई की दर अभी और बढ़ने के आसार हैं और इसके रोकने के लिए तेल के दाम बढ़ाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं।
ब्रिटेन के दिग्गज बैंक बार्कलेज ने अपने जारी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत में महंगाई के फिलहाल थमने के कोई आसार नजर नहीं आ रहें है। बार्कलेज की वेल्थ रिसर्च का कहना है कि खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों और कच्चे तेल के आसमान छूती कीमतों की वजह से इस पूरे साल महंगाई के कम होने के संकेत नहीं दिखाई दे रहें हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी हाल में ही भारत सरकार ने ईंधनों की कीमतों में करीब 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है और आने वाले समय में सरकार इस तरह के कुछ और कदम उठा सकती है। अपनी ताजा जारी केजिंग द बीस्ट शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक महंगाई का मुख्य कारण खाद्य पदार्थों और कच्चे तेल की कीमतों में हुई बढ़ोतरी है।
मालूम हो कि 2 अगस्त को समाप्त हुए सप्प्ताहांत में मुद्रास्फीति की दर ने 12.44 प्रतिशत के आंकड़े को छू लिया था। फलों के मूल्यों में जहां 8.9 प्रतिशत का उछाल आया वहीं दाल की कीमतों में 1.4 प्रतिशत की तेजी आई जबकि इसी सप्ताह डीजल का मूल्य भी 16 प्रतिशत उछला।
इससे पहले ग्लोबल इन्वेस्टमेंट बैंकर ने कहा था कि मुद्रास्फीति केअगले साल मई तक दोहरे अंकों में रहने की संभावना है और साथ भी यह भी कहा गया था कि थोक मूल्य सूचकांक के सितंबर 2008 तक 17 प्रतिशत तक के आसपास पहुंच जाएगी।
महंगाई पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने पूरी कोशिश की और इस कोशिश के तहत दाल, गेहूं, चावल, सीमेंट और इस्पात के उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और यहां तक कि 29 जुलाई 2008 को रिजर्व बैंक ने सीआरआर और रेपो रेट में बढ़ोतरी करने की घोषणा कर डाली थी।
इस बाबत बार्कलेज केवेल्थ एनालिस्ट डिओगो सेंटोस ने कहा कि सतही तौर पर यह दरें हालांकि काफी कम है और सराकर द्वारा इस तरह के कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं। ब्रिटेन स्थित वेल्थ मैंनेजमेंट फर्म ने आगे कहा कि वेतन में बढ़ोतरी के चलते निजी खपत स्तर के बेहतर रहने के आसार हैं।
हेविट एसोसिएट्स के अनुसार लोगों के वेतनों में वर्ष 2007 में सालाना 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और इस साल इसमें 15 प्रतिशत की और बढ़ोतरी होने की संभावना है। बार्कलेज की रिपोर्ट में कहा गया कि श्रम की कीमतों में हुई बढ़ोतरी से उद्योग जगत के मुनाफे पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और जिसके कारण निवेशों में कमी आएगी।
इसके अलावा वैश्विक मंदी और तेल की उंची कीमतों के कारण व्यापार घाटा मई में लगभग 11 अरब डॉलर के स्तर तक पहुच गया। रिपोर्ट केअनुसार 9 प्रतिशत के विकास दर को बरकरार रखना आसान नहीं होगा और वर्ष 2009 में इसके 8 प्रतिशत के करीब रहने की संभावना है।
भारतीय शेयर बाजार के संबंध में बार्कलेज ने कहा कि इस साल के पहले तक जबरदस्त कारोबार का दौर था लेकिन निवेशकों को अब मंदी और अनिश्चिता की स्थिति से निपटने केलिए तैयार रहना पड़ेगा। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि शेयरों में गिरावट जरूर आई है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि यह सस्ते हों। मैक्रो हालात को देखते हुए और घाटे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, हालांकि जोखिम कम होने से बाजार में स्थिरता आनी चाहिए। हालांकि, बैंक ने छोटी अवधि के आउटलुक पर चिंता जाहिर की लेकिन लंबी अवधि के आउटलुक को बेहतर बताया।