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तीर चला एक ..घायल इतने!

Last Updated- December 05, 2022 | 10:43 PM IST

महंगाई सुरसा की तरह आकार बढ़ाती जा रही थी, सरकारी अमले ने तीर-दर-तीर चलाए, उसका कुछ नहीं बिगड़ा।


चुनाव सिर पर हैं, विरोधी ‘सेना’ पहले ही हर मोर्चे से नाकेबंदी में जुटी थी और ऐसे में सहयोगी ‘सेना’ भी हार सामने देखकर बगावत करने लगी थी। अब मरती क्या न करता के तर्ज पर सरकारी सूरमा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने अचानक ब्रह्मास्त्र चला दिया।


और वह था,  क्रेडिट रिजर्व रेशियो (सीआरआर) दर बढ़ाना, जिसे कि अमूमन हर सरकार ऐसे ही हालात में चलाती रही है। अब ब्रह्मास्त्र जैसा भयंकर अस्त्र चलेगा तो इसका असर भी तो दूरगामी होगा। दुश्मन महंगाई की जान तो जाएगी ही लेकिन क्या छोटे-मझोले कारोबारी, क्या निवेशक-कंपनियां और क्या आम आदमी, कमोबेश हर कोई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर नाहक ही इसकी चपेट में आ जाएगा।


महंगाई के लिए चलने वाले इस अस्त्र का सबसे पहला निशाना बनते हैं, बैंक, जिनका मुनाफा इससे घटने लगता है। इससे मजबूर होकर वे आमतौर पर लोन की ब्याज दरें बढ़ाते हैं। लोन महंगे होते ही निशाने पर आ जाते हैं आम उपभोक्ता, जो लोन लेकर खरीदारी करते हैं। इससे खरीदारी की रफ्तार सुस्त होने लगती है और बाजार में डिमांड घट जाती है। डिमांड घटने से कीमतों में तो कमी आने लगती है लेकिन फिर निशाने पर आ जाते हैं कारोबारी।


हो सकता है कि कार, बाइक या मकान जैसी तमाम चीजों को लोग सपना मानते हुए उससे तौबा कर गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाएं और कारोबारी उनका इंतजार ही करते रह जाएं। इसी तरह जिन बड़ी कंपनियों ने लोन ले रखे हैं, उनके लिए भी नई ब्याज दरें मुसीबत का पहाड़ लेकर आ जाती है। कंपनियों की हालत पर पड़ते असर से निशाने पर आ जाते हैं, शेयर बाजार में इन कंपनियों के शेयर, जिसके गिरने से निवेशक भी इसी अस्त्र का शिकार हो जाते हैं।


वैसे भी, पहले हो चुकीं सीआरआर बढ़ोतरी के बाद का तमाम पुराना इतिहास भी इसी बात की ओर साफ इशारा कर रहे हैं कि ब्याज दरें बढ़ते ही उपभोक्ता फिर से अपने कछुआ खोल में घुस जाएंगे। लिहाजा डर है कि इससे दोपहिया, चार पहिया की तेज रफ्तार पर सवार ऑटो और मुनाफे की बुलंद इमारत बनाते प्रॉपर्टी जैसे तमाम कारोबारी क्षेत्र मक्खी मारने जैसे हालात में पहुंच जाएंगे।


यही नहीं, छोटे और मध्यम कारोबारी, जिनका कारोबार नकद पर कम, बैंकों के उधार पर ही ज्यादा जिंदा रहता है, उनके लिए तो जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा हो जाएगा। अगर उनके कारोबार का पूरा दम नहीं भी निकला तो भी मुनाफा घटकर चिड़िया के चुगे जितना जरूर पहुंच जाएगा।


लेकिन इन सबके बीच एक निशाना लगना तो तय है…वही, जिसके लिए सरकार यह अस्त्र चलाती है- यानी बाजार में नकदी में कमी के साथ-साथ महंगाई का फौरी तौर पर खात्मा। अब डिमांड घटने से कई सेक्टरों के कारोबारी ठंडे कारोबार का रोना रोते हैं तो रोते रहें, औद्योगिक उत्पादन गिरता है तो गिरता रहे, जीडीपी की विकास दर कम हो रही है तो होती रहे।


फिलहाल सरकार का फौरी मकसद तो महंगाई को साधना है, बाकी के बारे में बाद में सोचा जाएगा। लिहाजा, इस बार भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने यही ब्रह्मास्त्र चलाया। हालांकि इस बार यह बढ़ोतरी आरबीआई ने इतनी जल्दबाजी में की कि इस माह के आखिर में आने वाली अपनी मौद्रिक नीति का भी इंतजार उससे नहीं हो सका।


इसी कारण देश के निजी और सार्वजनिक बैंक इस औचक ऐलान से हतप्रभ हैं और ज्यादातर अभी 29 अप्रैल को आने वाली उसकी म्मौद्रिक नीति पर से पर्दा उठने के इंतजार में हैं। इसके बाद ही, वे फैसला करेंगे कि हर तरह के लोन की ब्याज दरें, जो पहले ही काफी ज्यादा हैं, बढ़ाई जाएं या नहीं…या फिर कितनी बढ़ाई जाएं। फिर भी विशेषज्ञों का मानना है कि अब उनके सामने ब्याज दर बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं है।


लोन देने से होने वाली बैंकों की कमाई में पहले ही इतनी कमी आ चुकी है कि संभाले नहीं संभल रही है। बैंकों से लिए जाने वाले लोन की जो विकास दर गिरते-गिरते 2007-08 में चार साल के सबसे निचले स्तर पर पहले ही पहुंच चुकी है, अब कहां जाएगी, यह सोचकर उनका दिल बैठा जा रहा है। 


बहरहाल, इस विषय के हर पहलू को समझने और गंभीर विचार-विमर्श के लिए ही इस बार की व्यापार गोष्ठी में बिज़नेस स्टैंडर्ड इसके पिछले दो अंकों की ही तरह प्रकाशित कर रहा है, इस बार भी दो विशेषज्ञों की राय और छोटे-मझले और बड़े व्यापारियों के दिल की बात।


क्या है सीआरआर


वह न्यूनतम नकद राशि, जिसे सभी निजी और सार्वजनिक बैंकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास रखना अनिवार्य होता है। बैंकों के पास कुल शुध्द जमा राशि के जिस हिस्से को रिजर्व बैंक अपने पास रखने की अनिवार्यता घोषित करता है, उसे ही सीआरआर दर कहते हैं। फिलहाल सीआरआर दर 7.5 फीसदी है यानी बैंकों के कुल शुध्द जमा नकदी का 7.5 फीसदी नकद उन्हें आरबीआई के पास रखना ही होगा। 


कितनी बढ़ी सीआरआर


26 अप्रैल और 10 मई को दो चरणों में कुल आधा फीसदी। इसे मिलाकर दिसंबर 2006 से लेकर अब तक आरबीआई सीआरआर में कुल तीन फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है। फिलहाल मौजूदा सीआरआर दर 7.5 फीसदी है, जो दोनों चरणों की इस ताजा बढ़ोतरी के बाद आठ फीसदी हो जाएगी।

First Published - April 21, 2008 | 1:08 AM IST

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