स्टार्टअप और वैश्विक स्तर की दिग्गज तकनीकी कंपनियों में छंटनी के बाद भारत में अरबों डॉलर के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग में भी नौकरियां कम करने की शुरुआत हो सकती है। प्रमुख देसी आईटी कंपनी विप्रो (Wipro) ने कहा कि वह अपने कारोबार और प्रतिभा को बाजार के बदलते माहौल के हिसाब से ढाल रही है। कंपनी ने छंटनी की संभावना पर पूछे सवाल के जवाब में यह कहा।
दो सूत्रों के हवाले से आई खबरों के मुताबिक विप्रो अपना मार्जिन बढ़ाने के लिए मझोले स्तर के कई ऑन-साइट कर्मचारियों की छंटनी के बारे में सोच रही है।
विश्लेषकों के अनुसार विप्रो की आय में 55 फीसदी योगदान ऑफशोर कर्मचारियों और 45 फीसदी ऑन-साइट कर्मचारियों का है। ऑनलाइट कर्मचारियों के वेतन पर भारी खर्च होता है, इसलिए छंटनी की गाज उन पर गिर सकती है।
छंटनी की चर्चा के बारे में पूछे जाने पर विप्रो ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अपने कारोबार और प्रतिभा को बाजार के बदलते माहौल के हिसाब से ढालना हमारी रणनीति का अहम हिस्सा है क्योंकि हम मजबूत, चुस्त और उच्च प्रदर्शन वाला संगठन बनना चाहते हैं।’
विप्रो के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम ग्राहकों को बेहतर सेवाएं देने, कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाने और ग्राहक तथा बाजार की तेजी से बदलती जरूरतें पूरी करने के लिए अपने कर्मचारियों, प्रक्रिया और तकनीक पर निवेश जारी रखेंगे।’
देश की शीर्ष चार आईटी फर्मों में विप्रो का मार्जिन सबसे कम है। दिसंबर तिमाही में विप्रो का मार्जिन 16 फीसदी था, जो टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इन्फोसिस और एचसीएल टेक से कम है।
मानव संसाधन विशेषज्ञ मानते हैं कि कमजोर मांग के कारण पूरे उद्योग में छंटनी का जोखिम हो सकता है। टीमलीज डिग्री अप्रेंटिसशिप के मुख्य कार्याधिकारी ए आर रमेश ने कहा, ‘तकरीबन एक साल से मांग कमजोर रहने के कारण आईटी कंपनियों पर काफी दबाव है। ऐसा ही चलता रहा तो कंपनियों पर खर्च घटाने और कर्मचारी हटाने का दबाव बढ़ जाएगा। यह खतरा भी है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) मौजूदा काम के बजाय नए तरीके के काम ले आएगी। इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि भविष्य के लिए योजना बनाने और तस्वीर बदलने पर तैयार रहने का यही सही समय है। कंपनियां तैयारी सुनिश्चित करने के लिए अप्रेंटिसशिप मॉडल को सक्रियता से अपना सकती हैं।’
विश्लेषक विप्रो के इस कदम से अचंभित नहीं हैं। एक वरिष्ठ इक्विटी विश्लेषक ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘विप्रो को हर चार से पांच साल में ऐसा करना पड़ता है। दूसरी बात, आप देख सकते हैं कि कंपनी फिलहाल संघर्ष कर रही है। उसने कैपको में निवेश किया है। उस समय वह निर्णय सही था लेकिन उसके बाद बाजार काफी बदल गया है।’
उन्होंने कहा कि प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए प्रवर्तकों और शेयरधारकों का दबाव बढ़ रहा है।
प्रबंधन सलाहकार फर्म वाईसीपी ऑक्टस के पार्टनर अभिषेक मुखर्जी ने कहा, ‘आईटी कंपनियां तीन अनिश्चितताओं से जूझ रही हैं – पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं पर दो युद्धों का प्रभाव, प्रमुख बाजारों में राजनीतिक अनिश्चितता और जेनरेटिव एआई। जब तक कोई बड़ी अनिश्चितता बनी रहेगी, ग्राहक निवेश से परहेज करते रहेंगे। इसमें 10 से 12 महीने लग सकते हैं। इसलिए लागत का बोझ बना रहेगा, जिसका असर भर्तियों पर पड़ेगा।’
विप्रो ने 2021 में 1.45 अरब डॉलर के सौदे में परामर्श फर्म कैपको का अधिग्रहण किया था, जो सीईओ थिएरी डेलापोर्ट का सबसे बड़ा दांव और कंपनी का अब तक का सबसे बड़ा अधिग्रहण सौदा था। मगर अन्य कंपनियों की तरह विप्रो को भी परामर्श सेवा कारोबार में चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है।
विप्रो के एक कर्मचारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि संभावित छंटनी के बारे में कोई आंतरिक ईमेल प्राप्त नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, ‘ऐसा अमेरिका एवं अन्य देशों में अधिक हो रहा है। हमें कोई ईमेल नहीं मिला है लेकिन हमने सुना है कि इन क्षेत्रों में छंटनी होने जा रही है।’
पिछले साल की ही तरह 2024 की शुरुआत भी छंटनी की तमाम खबरों के साथ हुई। माइक्रोसॉफ्ट, सेल्सफोर्स और एसएपी जैसी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने छंटनी की शुरुआत की है। छंटनी पर नजर रखने वाली फर्म लेऑफ्स डॉट एफवाईआई के अनुसार 2024 में अब तक 85 कंपनियों ने 23,770 कर्मचारियों को बाहर कर दिया है।