किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले रामलिंग राजू ने 1987 में 20 कर्मचारियों के साथ सत्यम कंप्यूटर्स की शुरुआत की,
जबकि 1991 में कंपनी को भारतीय शेयर बाजार और 2001 में न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और 2008 में एम्सटर्डम के यूरोनेक्स्ट में सूचीबद्ध कराया गया।
देखते ही देखते हैदराबाद स्थित मुख्यालय वाली यह कंपनी भारत की चौथी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर निर्यातक कंपनी बन गई। सितंबर 2008 को खत्म हुई तिमाही में दुनियाभर में कंपनी में करीब 52,000 कर्मचारी कार्यरत हैं।
मार्च 2008 में खत्म कारोबारी साल में सत्यम का राजस्व 46.3 फीसदी बढ़कर 2.1 अरब डॉलर पहुंच गया, जबकि शुद्ध आय करीब 40 फीसदी इजाफा के साथ 41.7 करोड़ डॉलर पहुंच गया।
कंपनी के ग्राहकों में नेस्ले, जनरल इलेक्ट्रिक, क्वांटस एयरवेज जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं। कंपनी मुख्य तौर से बिजनेस सॉफ्टवेयर, बैक ऑफिस आउटसोर्सिंग और कंसल्टिंग सेवा मुहैया कराती है।
कौन हैं राजू?
किसान परिवार में जन्मे रामलिंग राजू ने सत्यम कंप्यूटर्स की स्थापना की। बीकॉम स्नातक और अमेरिका के ओहायो विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री हासिल करने वाले राजू पहले कंस्ट्रक्शन और टेक्सटाइल कारोबार में थे।
सत्यम के विवादों में आने के बाद राजू ने बुधवार को सेबी को पत्र लिख और कंपनी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया।
कैसे शुरू हुए बुरे दिन?
राजू के बेटों की कंपनी मायटॉस इन्फ्र्रा और मायटॉस प्रॉपर्टीज के अधिग्रहण के फैसले (जिसे बाद में निवेशकों के विरोध के कारण रद्द करना पड़ा) से सत्यम की साख पर प्रतिकूल असर पड़ा। राजू पर आरोप लगा कि शेयरधारकों के पैसों का इस्तेमाल पारिवारिक सदस्यों की कंपनी खरीदने में खर्च कर रहे हैं।
इस बीच, विश्व बैंक ने अनुचित लाभ और जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराने के आरोप के तहत सत्यम की सेवा लेने से 8 साल की पाबंदी लगा दी। मायटॉस सौदे की वजह से हो रही किरकिरी के कारण कंपनी के चार स्वतंत्र निदेशकों को भी इस्तीफा देना पड़ा।
वहीं ग्राहकों और निवेशकों के बीच भी कंपनी की साख प्रभावित हुई। इस संकट की घड़ी में कई कंपनियों की ओर से सत्यम को खरीदने की बात भी चर्चा में रही। इससे कंपनी के शेयरों की कीमत भी लगातार धराशायी होती नजर आई।
कैसे हुआ घोटाला?
कंपनी के चेयरमैन रामलिंग राजू ने कहा कि कंपनी की बैंलेस शीट में तमाम गड़बड़ियां हैं और ऐसा वर्षों से हो रहा है। दरअसल, कंपनी ने सितंबर 2008 को खत्म दूसरी तिमाही कहा था कि उसके पास करीब 5000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी है, जबकि वास्तव में ऐसी कोई रकम कंपनी के पास है ही नहीं।
यही नहीं, दूसरी तिमाही में दिखाया गया कि कंपनी का राजस्व 2700 करोड़ रुपये है, जबकि वास्तविक आय 2112 करोड़ रुपये ही थी। कंपनी ने बैलेंस शीट में हेर-फेर कर निवेशकों और सेबी की आंखों में धूल झोंकी है, जिस पर कार्रवाई की जा सकती है।
कैसे ठुकी आखिरी कील?
विवादों में घिरे रामलिंग राजू ने 10 जनवरी को प्रस्तावित बोर्ड बैठक से पहले ही चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया, वहीं सेबी को लिखी चिट्ठी में उन्होंने बैलेंस शीट में गड़बड़ी की बात स्वीकार की। इससे उद्योग जगत समेत कंपनी मामलों के मंत्रालय और सेबी दंग रह गए।
सेबी ने सत्यम कंप्यूटर्स द्वारा की गई वित्तीय हेराफेरी को गंभीर मामला मानते हुए कहा कि वह इस मामले में जरूरी कानूनी कदम उठाएगी। इसके लिए सेबी ने सरकार और शेयर बाजारों से बातचीत शुरू कर दी है। इस बात की आशंका भी है कि राजू को दस साल की सजा भी हो सकती है।
इस घोटाले के सामने आने पर बीएसई में कंपनी के शेयर धूल फांकते नजर आए। कंपनी के शेयरों में करीब 80 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
इस बीच डीएसपी मेरिल लिंच ने सत्यम कंप्यूटर से संबंध खत्म करने की घोषणा की है। उल्लेखनीय है कि विवादों के बाद मेरिल लिंच को सत्यम के विलय की संभावनाओं को तलाशने का जिम्मा सौंपा गया था।
अब क्या होगा राजू?
सत्यम कंप्यूटर्स न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है। ऐसे में अमेरिकी कानून के तहत वहां के नियामक कंपनी के विरूद्ध कार्रवाई कर सकते हैं। कंपनी मामलों के मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस मामले को गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय में भेजा जाएगा।
अगर कंपनी जांच में राजू दोषी पाए जाते हैं, तो अधिकतम दस साल की सजा हो सकती है। इसके साथ ही सत्यम कंप्यूटर्स के अधिग्रहण को लेकर भी होड़ शुरू हो सकती है, जिसमें आईटी कंपनियों के साथ निवेश कंपनियां भी शामिल हो सकती हैं।
हालांकि सरकार या बाजार नियामक सेबी इस मामले में पूरी जांच रिपोर्ट आने के ही बाद कोई फैसला लेगी। फैसला कुछ भी हो लेकिन राजू के लिए अब कोई राह नहीं बची है।
कदम एक गलत उठा था, राहे शौक में…और मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही।
कॉरपोरेट जगत के सबसे बड़े नटवरलाल साबित हो चुके रामलिंग राजू ने अपनी बर्बादी की दास्तां खुद लिखी। किस तरह उन्होंने ठगी के इस मायाजल को बुना, इसका खुलासा खुद उन्होंने सत्यम के निदेशक बोर्ड को लिखे अपने पत्र में किया है।
आइए जानते हैं, उसी पत्र के चुनिंदा अंशों से ठगी की ओर बढ़े उनके पहले कदम से बर्बादी की मंजिल की सनसनीखेज कहानी:
प्रिय बोर्ड सदस्यों, गहरे दुख और अपनी अंतरात्मा पर चले आ रहे भारी बोझ के साथ कुछ बातें मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूं:
कंपनी की बैलेंस शीट की स्थिति 30 सितंबर 2008 तक इस प्रकार है-
5040 करोड़ रुपये की नकदी और 5361 करोड़ रुपये का बैंक बैलेंस बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए।
376 करोड़ रुपये का ब्याज, जो हकीकत में मिला ही नहीं।
मेरे द्वारा कंपनी के कामकाज के लिए जुटाई गई 1230 करोड़ रुपये की रकम की देनदारी, जिसे मैंने बैलेंस शीट में दिखाया ही नहीं।
दिए गए कर्ज की रकम 2651 करोड़ रुपये हकीकत से 490 करोड़ रुपये ज्यादा दिखाई गई।
कंपनी की बैलेंस शीट में जो अंतर पैदा हुआ है, वह पिछले कई सालों से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए जा रहे मुनाफे की वजह से है। पहले यह अंतर मामूली था मगर साल-दर-साल यह बढ़ता गया।
कंपनी का कामकाज तेजी से बढने के साथ यह इतना ज्यादा हो गया कि इसे संभालना ही मुश्किल हो गया। इसे पाटने के लिए जितनी कोशिशें की गईं, सब नाकाम हुईं।
चूंकि प्रमोटरों के पास इक्विटी हिस्सेदारी काफी कम थी, लिहाजा चिंता यह थी कि खराब प्रदर्शन का नतीजा कंपनी के अधिग्रहण के रूप में सामने आ सकता था।
इससे यह अंतर भी दुनिया से छिपा नहीं रहता। यह एक बाघ की सवारी जैसा था, जिसके बारे में यह जानना मुश्किल था कि हम इससे उतरें कैसे कि यह हमें खा भी न जाए।
मायटास अधिग्रहण का सौदा भ्रामक संपत्तियों के बदले असली संपत्तियां दिखाने का अंतिम प्रयास था। उम्मीद यह थी कि एक बार जब सत्यम की परेशानी हल हो जाएगी, तब मायटास के भुगतान में देरी की जा सकेगी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
पिछले दो सालों में 1230 करोड़ रुपये का प्रबंध किया गया, जिसे सत्यम के बही-खातों में नहीं दिखाया गया ताकि कंपनी का कामकाज चलता रहे। इस रकम का प्रबंध प्रमोटरों के शेयरों को गिरवी रखकर और ज्ञात स्रोतों से पैसा जुटाकर किया गया।
गाड़ी चलती रहे और सहयोगियों का वेतन-भुगतान होता रहे, इसके लिए हर संभव कोशिश की गई। जब कर्जदाताओं ने गिरवी रखे गए ज्यादातर शेयरों को बेच दिया गया, तब यह कदम इस कड़ी में आखिरी कील साबित हो गया।
मैं अब कानून के तहत कारवाई का सामना करने अब उसके परिणाम भुगतने को तैयार हूं।
बी. रामलिंग राजू