सड़कों का बढ़ता नेटवर्क न सिर्फ देश के आर्थिक विकास को पटरी पर लाने में सक्षम है।
बल्कि यह सिएट, एमआरएफ, जेके टायर्स और अपोलो जैसी टायर निर्माता कंपनियों को व्यावसायिक वाहनों के टायरों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए क्षमता बढ़ाने के लिए भी प्रेरित कर रहा है।
भारत में टायर निर्माताओं के शीर्ष संगठन ऑटोमोटिव टायर मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) के मुताबिक कम से कम आठ टायर कंपनियां देश में नए संयंत्रों पर या मौजूदा संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने के लिए तकरीबन 6,000 करोड़ रुपये के निवेश की संभावना तलाश रही हैं।
वैसे, पिछले वित्तीय वर्ष में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री निराशाजनक रही। इसमें महज 4 प्रतिशत का इजाफा हुआ और अगली कुछ तिमाहियों के लिए इन वाहनों की बिक्री में अधिक बढ़ोतरी नहीं होने का अनुमान लगाया गया है। इन वाणिज्यिक वाहनों में ट्रकों और बसों समेत कई वाहन शामिल हैं। विश्लेषकों के मुताबिक टायर निर्माता कंपनियां इस क्षेत्र में दीर्घावधि विकास संभावनाओं के साथ अपनी निर्माण क्षमता बढ़ा रही हैं।
एटीएमए के महानिदेशक राजीव बुधराजा ने कहा, ‘भारत का व्यावसायिक वाहन उद्योग मंदी का गवाह रहा है। ढांचागत उद्योग से बढ़ रही मांग के कारण अगले कुछ वर्षों में इस कारोबार में उछाल आने का अनुमान है। इस उद्योग का विकास अवश्यंभावी है जिससे भारत भी अछूता नहीं है। उच्च ब्याज दर जैसे कुछ कारक इस उद्योग को प्रभावित कर रहे हैं, लेकिन आने वाले कुछ समय में इस समस्या के दूर हो जाने की संभावना है।’
भारत की तीसरी सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी जेके टायर्स ट्रक और बस की मौजूदा 45.2 लाख की रेडियल क्षमता को बढ़ा कर 1.21 करोड़ किए जाने पर तकरीबन 700 करोड़ रुपये का निवेश कर रही है।
जेके टायर्स ऐंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष अरुण बाजोरिया ने कहा, ‘हम ट्रकों और बसों में रेडियल की मांग में शानदार बढ़ोतरी दर्ज कर रहे हैं। अगले तीन वर्षों के लिए हमारा कुल निवेश 1,180 करोड़ रुपये होगा जिसमें इस वर्ष के लिए 480 करोड़ रुपये का निवेश भी शामिल है।’
राजस्व के लिहाज से भारत की चौथी सबसे बड़ी टायर कंपनी सिएट टायर्स ट्रकों और यात्री कारों के लिए टायरों के निर्माण के लिए दो निर्माण संयंत्र स्थापित कर रही है। कंपनी अपने नए संयंत्रों पर तकरीबन 900 करोड़ रुपये लगाएगी।
इस होड़ में भारत की प्रमुख टायर कंपनियां एमआरएफ और अपोलो भी पीछे नहीं हैं। एमआरएफ और अपोलो वाणिज्यिक वाहनों के लिए टायर निर्माण में विस्तार कर रही हैं। जहां एमआरएफ अपनी निर्माण क्षमता बढ़ाने पर 600 से 800 करोड़ रुपये खर्च कर रही है, वहीं अपोलो क्रॉस-प्लाई तथा रेडियल टायरों में क्षमता विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
एमआरएफ के उपाध्यक्ष (विपणन) कोशी वर्गीज ने कहा, ‘वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री का संबंध देश के सकल घरेलू उत्पाद से है। यह निर्माण, खनन और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में विकास पर निर्भर करता है। वाणिज्यिक वाहनों के टायरों की बिक्री में जल्द ही इजाफा होने की संभावना है।’
विश्व की सबसे बड़ी टायर निर्माता ब्रिजस्टोन एक प्रस्तावित संयंत्र के साथ अगले तीन वर्षों में भारत में रेडियल बस और ट्रक टायर संयंत्र की स्थापना करना चाहती है। फिलहाल यह कंपनी अपनी थाईलैंड इकाई से ऐसे रेडियल का आयात करती है।
विकसित राष्ट्रों की तरह भारत में रेडियल टायरों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। रेडियल टायर में अधिक माइलेज, तेल की बचत, लंबे समय तक चलने, आरामदायक ड्राइविंग जैसी क्षमताओं के गुण हैं। देश में यात्री कारों में रेडियल टायरों की मांग दिनो-दिन बढ़ रही है, लेकिन व्यावसायिक वाहनों में यह मांग 6-7 प्रतिशत की दर से (विश्व में औसत दर 65-70 प्रतिशत है)बढ़ रही है।
विश्लेषकों का कहना है कि भारत में व्यावसायिक वाहनों में रेडियल टायरों की कम मांग के पीछे इनकी अधिक लागत, वाहनों पर अधिकभार और वाहनों की कम देख-रेख, सड़कों की खस्ता हालत जैसे कारण हैं।
टायर कंपनियों के प्रयास
जेके टायर्स ट्रक और बस रेडियल क्षमता बढ़ाने पर 700 करोड़ रुपये खर्च कर रही है
सिएट 900 करोड़ रुपये के निवेश से 2 इकाइयां स्थापित कर रही है
एमआरएफ क्षमता विस्तार पर 600-800 करोड़ रुपये लगा रही है
अपोलो क्रॉस-प्लाई और रेडियल टायरों में क्षमता बढ़ा रही है
ब्रिजस्टोन अगले तीन वर्षों में भारत में रेडियल बस और ट्रक टायर संयंत्र स्थापित कर रही है