पुरानी तारीख से लागू होने वाले कर मामले निपटाने के लिए तय नई शर्तें कंपनियों के लिए पेचीदा साबित हो सकती हैं। विशेषज्ञों ने यह अंदेशा जताया है। विशेषज्ञों के अनुसार यह पूरी प्रक्रिया लंबी खिंच सकती है, खासकर सरकार को इन मामलों में भविष्य में किसी तरह के विवाद से अलग रखने संबंधी शर्त (इन्डेम्निटी बॉन्ड) भी एक बड़ी बाधा साबित हो सकती है। कानूनी जानकारों के अनुसार कंपनियों के लिए निदेशकमंडल और दूसरे शेयरधारकों से सहमति लेने की शर्त पूरी करना भी आसान नहीं होगा।
पिछली तारीख से लागू होने वाले कर मामलों में सरकार ने यह शर्त भी रख दी है कि किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा भारतीय न्यायालयों में ही होगा। विशेषज्ञों कहना है कि यह भी एक ऐसी शर्त है जिसके लिए हामी भरना कंपनियों के लिए आसान नहीं होगा। उनका कहना है कि कंपनियां अपने देशों में मामले की सुनवाई कराने के पक्ष में होंगी या कम से कम वे एक
तटस्थ देश जरूर चाहेंगी।
इस संबंध में तय शर्त में कहा गया है किसी मतभेद या विवाद की स्थिति में मामले की सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायालय में होगी। इस बारे में सलाहकार कंपनी कैटेलिस्ट एडवाइजर्स के संस्थापक केतन दलाल कहते हैं, ‘जो कंपनी मामला निपटाना चाहती है उस पर कई तरह की शर्तें ला दी गई हैं। इसके अलावा किसी तीसरे पक्ष द्वारा दावा करने की स्थिति में संबंधित कंपनी को सरकार को ऐसे झमेले से अलग रखना होगा।’
दलाल ने कहा कि इन्डेम्रिटी बॉन्ड की भाषा बिल्कुल स्पष्ट है और भविष्य में किसी तरह के विवाद की स्थिति में सरकार की कोई जवाबदेही नहीं होगी। दलाल ने कहा, ‘सरकार के दृष्टिकोण से यह शर्त वाजिब लग सकती है मगर कानूनी विवाद में फंसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अपने निदेशकमंडल और संबंधित पक्षों को तैयार करना बेहद मुश्किल साबित होगा।’
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने अक्टूबर में जारी एक अधिसूचना में कहा है कि कंपनियों को भविष्य में पैदा होने वाले किसी विवाद से सरकार को मुक्त रखना होगा और पुरानी तारीख से लागू होने वाले कर मामलों के निपटारे के लिए किसी न्यायालय या पंचाट में दायर याचिका वापस लेनी होगी।
सरकार ने सभी शेयरधारकों से सहमति लेने के लिए कहने के बजाय करदाताओं को प्रत्येक संबंधित पक्ष से इन्डेम्रिटी बॉन्ड हासिल कर उसे कर वापसी के लिए सौंपी उद्घोषण के साथ लगाना होगा।
नांगिया एंडरसन इंडिया के चेयरमैन राकेश नांगिया कहते हैं, ‘नई शर्त पूरी करने के लिए कंपनियों को अधिक समय लगेगा और उन्हें अधिक प्रयास भी करना होगा। भुगतान किए जा चुके कर की वापसी में किसी कंपनी को कम से कम दो से तीन महीने लग जाएंगे।’
नांगिया ने कहा कि करदाता न केवल मामला दायर करने का अपना अधिकार खो रहा है बल्कि वह किसी अन्य पक्ष द्वारा दावा करने की स्थिति में सरकार को सभी कानूनी जवाबदेही से मुक्त भी कर रहा है।
सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि सरकार पहले की गई गलतियां दुरुस्त करना चाहती हैं और पिछली तारीख से लागू होने वाले कर कानून के तहत अब तक वसूले गए कर लौटाना चाहती है। अधिसूचना के अनुसार मगर इससे पहले सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है है कि मामला निपटने के बाद भविष्य में किसी तरह का विवाद पैदा नहीं हो।
