टाटा संस ने कैलेंडर वर्ष की समाप्ति देश में सूचीबद्ध कंपनियों के सबसे बड़े प्रवर्तक के तौर पर की और इस तरह से उसने केंद्र सरकार को पीछे छोड़ दिया। करीब दो दशक में यह पहला मौका है जब एक्सचेंजों पर सरकार सबसे बड़ी प्रवर्तक समूह नहीं रह गई, जिसकी वजह सरकारी स्वामित्व वाली व उसकी तरफ से प्रवर्तित कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में कैलेंडर वर्ष के दौरान आई दो अंकों की गिरावट है।
समूह की सूचीबद्ध कंपनियों में टाटा संस की हिस्सेदारी की कीमत अब 9.28 लाख करोड़ रुपये है, जो सालाना आधार पर 34.4 फीसदी ज्यादा है। इसकी तुलना में सूचीबद्ध सीपीएसयू में भारत सरकार की हिस्सेदारी की कीमत 9.24 लाख करोड़ रुपये है, जो सालाना आधार पर 19.7 फीसदी घटी है।
पीएसयू में सरकारी हिस्सेदारी की बाजार कीमत पिछले साल दिसंबर में विभिन्न कंपनियों में टाटा संस की हिस्सेदारी की कीमत के मुकाबले करीब 67 फीसदी ज्यादा थी। मार्च 2015 मेंं यह करीब ढाई गुना ज्यादा था।
बाजार पूंजीकरण के मामले में भी टाटा समूह की कंपनियों ने पीएसयू को पीछे छोड़ दिया है। टाटा समूह की 15 कंपनियों का संयुक्त बाजार पूंजीकरण गुरुवार को 15.6 लाख करोड़ रुपये था, जो 31 दिसंबर 2019 के 11.6 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले ज्यादा है। इसकी तुलना में 60 सूचीबद्ध पीएसयू (जहां भारत सरकार प्रवर्तक है) का संयुक्त बाजार पूंजीकरण गुरुवार को 15.3 लाख करोड़ रुपये रहा, जो एक साल पहले के 18.6 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले कम है।
दो दशक मेंं यह पहला मौका है जब बाजार पूंजीकरण और प्रवर्तक हिस्सेदारी के लिहाज से पीएसयू एक्सचेंजों पर सबसे बड़ा समूह नहीं है। यह विश्लेषण साल के आखिर में सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार पूंजीकरण और प्रवर्तक हिस्सेदारी पर आधारित है, जो सीधे तौर पर क्रमश: भारत सरकार और टाटा संस की तरफ से प्रवर्तित या स्वामित्व वाली हैं।
इस नमूने में हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी पीएसयू शामिल नहीं है, जहां अब ओएनजीसी प्रवर्तक है। इस नमूने का हिस्सा नहीं बनने वाली अन्य पीएसयू में मंगलूर रिफाइनरी ऐंड पेट्रोकेमिकल्स, चेन्नई पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, पेट्रोनेट एलएनजी, इंद्रप्रस्थ गैस व आरईसी आदि शामिल हैं। पीएसयू के नमूने में हिंदुस्तान जिंक व टाटा कम्युनिकेशंस भी शामिल नहीं है, जिसका निजीकरण हो गया है लेकिन सरकार के पास अभी भी अल्पांश हिस्सेदारी है।
टाटा समूह की बात करें तो नमूने में समूह की अन्य कंपनियों की सूचीबद्ध सहायक व सहयोगी मसलन टाटा कॉफी, टाटा मेटलिक्स, टाटा स्टील लॉन्ग, रैलिस इंडिया और टाटा स्टील बीएसएल शामिल नहींं है, जो समूह का हिस्सा तो है लेकिन टाटा संस के पास उसका सीधा स्वामित्व नहीं है।
टाटा संस के उम्दा प्रदर्शन की मुख्य वजह टीसीएस और टाइटन कंपनी का अच्छा कारोबार है, जो बाजार पूंजीकरण के लिहाज से समूह की दो अग्रणी कंपनियां हैं। दिसंबर 2019 से टीसीएस 33 फीसदी चढ़ा है जबकि टाइटन में पिछले 12 महीने में 32 फीसदी की उछाल आई है।
समूह के संयुक्त बाजार पूंजीकरण मेंं इन दोनों कंपनियों की हिस्सेदारी 87 फीसदी है जबकि समूह की विभिन्न कंपनियों में टाटा संस की हिस्सेदारी की कुल बाजार कीमत में इनका योगदान 87 फीसदी है। हालांकि इस कैलेंडर वर्ष में टाटा कम्युनिकेशंस अग्रणी प्रदर्शन करने वाली रही है और साल की शुरुआत से अब तक उसके बाजार पूंजीकरण में 178 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उम्दा प्रदर्शन करने वाली समूह की अन्य कंपनियों में टाटा कंज्यूमर (168 फीसदी), टाटा एलेक्सी (122 फीसदी) और टाटा स्टील (36 फीसदी) शामिल है। टाटा केमिकल्स समूह की एकमात्र कंपनी है जिसने साल 2020 में गिरावट दर्ज की है और उशका बाजार पूंजीकरण पिछले 12 महीने में 28.4 फीसदी घटा है।
इसकी तुलना में भारतीय स्टेट बैंक (सालाना 18 फीसदी की गिरावट), ओएनजीसी, एनटीसीपी (17 फीसदी) और कोल इंडिया (36 फीसदी) के बाजार पूंजीकरण में आई कमी से भारत सरकार को झटका लगा है। पीसयू में गंवाने वाली बड़ी कंपनियां हैं भारत पेट्रोलियम, गेल, पंजाब नैशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा शामिल है।
स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन पीएसयू में सबसे ज्यादा लाभ अर्जित करने वाली पीएसयू रही, जिसके बाजार पूंजीकरण में सालाना आधार पर 72.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और इसके बाद सेल (72.7 फीसदी) और इंडियन बैंक (57.4 फीसदी) का स्थान रहा।
कुल मिलाकर नमूने में शामिल 60 पीएसयू में से 36 पीएसयू ने साल 2020 में बाजार पूंजीकरण में गिरावट दर्ज की जबकि 24 ने अपने शेयर कीमतों में तेजी दर्ज की। बाजार पूंजीकरण के लिहाज से अब भारतीय स्टेट बैंक सबसे बड़ा पीएसयू है और उसका बाजार पूंजीकरण 2.45 लाख करोड़ रुपये है। इसके बाद ओएनजीसी (1.17 लाख करोड़ रुपये) और पावर ग्रिड (1 लाख करोड़ रुपये) का स्थान है। सभी पीएसयू के संयुक्त बाजार पूंजीकरण में पांच अग्रणी पीएसयू की हिस्सेदारी अब 42 फीसदी है और सभी सूचीबद्ध पीएसयू में सरकारी हिस्सेदारी की बाजार कीमत में इसका योगदान 39 फीसदी है।