बीएस बातचीत
देश की सबसे बड़ी खुदरा ईंधन विक्रेता कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) को ऐसे समय पर मांग में सुधार नजर आ रही है जब उत्पाद की कीमतें रिकॉर्ड उच्च स्तर पर हैं। ज्योति मुकुल और त्वेष मिश्र के साथ बातचीत में श्रीकांत माधव वैद्य ने वैश्विक तेल आपूर्ति में कटौती के बीच पेट्रोलियम उद्योग के परिदृश्य पर चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:
एक बार फिर तेल की कीमतें बढ़ रही हैं, आपके मुनाफे पर इसका कितना असर है?
कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हो रहा है लेकिन शोधन मार्जिन उत्पाद क्रैक्स से प्रभावित होते हैं। इसमें अभी पूरी तरह से सुधार होना बाकी है। पेट्रोल क्रैक्स सामान्यतया 7 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहता है जो नवंबर-दिसंबर 2020 में 2-2.5 डॉलर प्रति बैरल के बीच था। डीजल क्रैक्स महज 3 डॉलर के आसपास है जो जिसका सामान्य स्तर 10 डॉलर है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होने से लाभ पर खराब असर पड़ता है। हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होने से मार्जिन बढऩे की उम्मीद है क्योंकि भंडार में इजाफा होगा बशर्ते कि कीमत इन स्तरों पर स्थिर हो जाए।
रिफाइनरी क्षेत्र के लिए क्या संभावना है?
मांग में हो रहे सुधार से भारतीय रिफाइनरों को 2021 में लाभ मिलता रहेगा। दीर्घावधि में भारत वैश्विक तेल मांग का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। टीकाकरण शुरू होने से 2021 में तेल बाजार में अधिक निश्चित सुधार के संकेत मिले हैं, लेकिन मांग की अनिश्चितता अभी भी बनी हुई है। एक ओर फरवरी और मार्च में उत्पादन में प्रतिदिन 10 लाख बैरल की कटौती करने की सऊदी अरब की घोषणा से बाजार को मजबूती मिली है, दूसरी ओर मांग अब भी चिंता का विषय बनी हुई है।
क्या आपको उत्पाद शुल्क में कटौती किए जाने की कोई गुंजाइश नजर आती है?
सीमा शुल्क की दरों में बदलाव का निर्णय सरकार करती है जो वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह, विनिवेश और व्यापक स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने के बोझ पर निर्भर करेगा। सीमा शुल्क दरों में कटौती किए जाने के लिए हमें राजकोषीय स्थिति के सामान्य होने का इंतजार करना पड़ सकता है।
बजट से क्या उम्मीदें हैं?
पेट्रोलियम उद्योग की लंबे समय से मांग रही है कि पेट्रोल, डीजल, विमानन टर्बाइन ईंधन, प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस सहित इन पेट्रोलियम उत्पादों जिनकी रिफाइंड उत्पाद संस्करणों में करीब 60 फीसदी की हिस्सेदारी है को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने से तेल और गैस कंपनियों को नुकसान होता है। इन्हें पूंजीगत सामानों, कच्चा माल और इनपुट सेवाओं की खरीद पर चुकाए जाने वाले जीएसटी का गैर-जीएसटी कारोबार के अनुपात में इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता है।
क्या पेट्रोलियम की मांग में सुधार हुआ है?
हां, दिसंबर में लगातार चौथे महीने तेल खपत में महीने दर महीने के आधार पर वृद्घि हुई है और इसके परिणामस्वरूप अक्टूबर-दिसंबर 2020 के दौरान तेल खपत पिछले वर्ष की तीसरी तिमाही में खपत के स्तर से महज 1 फीसदी कम रही। प्रतिबंधों में छूट मिलने से परिवहन क्षेत्र में मांग में सुधार आया है। कृषि क्षेत्र से लगातार मजबूती मिल रही है और देश में कारोबारी गतिविधियां भी पटरी पर लौट रही हैं। हमने विनिर्माण, रेल ट्रैफिक, वाहन बिक्री, आयातों, बंदरगार ट्रैफिक और जीएसटी संग्रह में जबरदस्त वृद्घि और सुधार देखी है। दिसंबर 2020 में जीएसटी संग्रह में सालाना आधार पर 11.6 फीसदी की जबरदस्त वृद्घि हुई और यह 1.15 लाख करोड़ रुपये हो गई।
अर्थव्यवस्था के सुस्ती में जाने पर पेट्रोलियम क्षेत्र पर आपने इसका कैसा असर अनुभव किया?
अप्रैल-जून तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था को जोरदार झटका लगा था और सकल घरेलू उत्पाद में सालाना आधार पर 24 फीसदी का संकुचन आया था। हालांकि, चरणबद्घ अनलॉक की प्रक्रिया से अर्थव्यवस्था को खोलने से यह पटरी पर लौट रही है। भारत के विनिर्माण पीमएआई में लगातार तीन महीने से विस्तार हो रहा है। कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्घि के संकेत मिलने लगे हैं।