टाटा और शापूरजी पलोनजी समूह के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद के खत्म होने का संकेत मिला है। शापूरजी समूह ने उच्चतम न्यायालय को आज बताया कि उचित और न्यायोचित समाधान दिया जाता है तो वह टाटा संस से निकल सकता है। अगर ऐसा हुआ तो देश के दो बड़े समूहों के बीच 70 साल के रिश्ते खत्म हो जाएंगे। शापूरजी पलोनजी समूह अपनी 18.5 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 1.78 लाख करोड़ रुपये मूल्यांकन की उम्मीद कर रहा है।
समूह ने बयान में कहा है कि टाटा समूह से अलग होना अवश्यक हो गया है क्योंकि कानूनी दांव पेच के कारण अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। शापूरजी पलोनजी समूह ने कहा, ‘यह शीघ्रता से उचित और न्यायोचित समाधान पर पहुंचना आवश्यक है, जिसमें सभी संपत्तियों के मूल्य सही तरीके से प्रतिबिंबित हो।’ शापूरजी समूह ने कहा, ‘शापूरजी-टाटा के बीच 70 साल से ज्यादा के रिश्ते की बुनियाद आपसी विश्वास, नेक भावना और दोस्ती पर टिकी थी। आज मिस्त्री परिवार को भारी मन से समूह के सभी शेयरधारकों के हितों को ध्यान में रखते हुए अलग होना बेहतर लग रहा है।’
टाटा समूह ने उच्चतम न्यायालय में बताया कि शापूरजी समूह की हिस्सेदारी खरीदने के लिए तैयार है। इसके कुछ घंटे बाद ही शापूरजी समूह का यह बयान आया है। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने मिस्त्री समूह को टाटा संस में अपने शेयर को गिरवी रखने या बेचने पर रोक लगाते हुए मिस्त्री परिवार को 28 अक्टूबर को अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया।
मिस्त्री समूह ने कहा कि सबसे बड़े अल्सांश शेयरधारक (18.37 फीसदी हिस्सेदारी) होने के नाते शापूरजी पलोनजी समूह हमेशा टाटा समूह के श्रेष्ठ हित में एक अभिभावक की भूमिका अदा करता रहा है। हालांकि कोरोना महामारी के कारण उसे वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। उसने कहा कि शापूरजी समूह ने शेयरधारक के तौर पर अपने मताधिकार का उपयोग हमेशा टाटा समूह के बेहतर हित में किया है। 2000 से पहले टाटा ट्रस्ट्स परमार्थ न्यास था और उसे मत देने का अधिकार नहीं था। ऐसे में शापूरजी समूह टाटा समूह के हितों की रक्षा के लिए अपने मत का उपयोग करता था।
बयान में कहा गया कि 2012 में जब मिस्त्री समूह का वारिस सायरस मिस्त्री टाटा संस के चेयरमैन बने तब इसमें गर्व की भावना के साथ ही कर्तव्य भी जुड़ा था। उस दौरान टाटा समूह महत्त्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रहा था।
दुर्भाग्यवश, अक्टूबर 2016 को जब मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाया गया तब वे संचालन में सुधार लाने का प्रयास कर रहे थे। बयान में कहा गया कि टाटा का मौजूदा नेतृत्व न केवल मूल्यों को नष्ट करने वाला कारोबारी निर्णय ले रहा है बल्कि भ्रमित करने का भी प्रयास कर रहा है। बीते समय में कई ऐसे मामले हुए हैं जिसकी वजह से टाटा समूह को अभी भी परेशानी झेलनी पड़ रही है।