भले ही सत्यम के संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष बी रामलिंग राजू ने खुद ही कंपनी में फर्जीवाड़े को स्वीकार करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन अब उन पर कानूनी कार्रवाई का खतरा मंडरा रहा है।
उन्हें लगता है कि वह बच गए हैं, तो यह उनकी गलतफहमी है। दरअसल कानून के मुताबिक यदि राजू इसके बाद भी अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। हो सकता है कि इस घोटाले के बाद उन्हें जेल की सजा भी काटनी पड़े।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस पर्दाफाश के बाद कंपनी के खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सकता है और निजी पक्ष भी अपना पैसा वापस पाने के लिए कंपनी को अदालत में घसीट सकते हैं।
कारोबारी जगत के पंडितों की मानें तो इस मामले में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ही जांच नहीं करेगी बल्कि, अमेरिकी प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (एसईसी) भी अपने स्तर से कार्रवाई कर सकता है।
दरअसल, जब किसी कंपनी को शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया जाता है तो कंपनी इसके लिए एक समझौता करती है जिसमें यह उल्लेख मिलता है कि कंपनी शेयर बाजार को अपने लेखा संबंधी कोई गलत जानकारी नहीं देगी।
पर सत्यम ने शेयर बाजारों और सेबी को अपने इस्तीफे में यह साफ किया है कि कंपनी काफी समय से गलत वित्तीय जानकारियां देती रही है।
सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक (कानून) संदीप पारिख ने बताया कि इस फर्जीवाड़े के लिए फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन (एफसीआर) ऐक्ट की धारा 23 के लिए अधिकतम 25 करोड़ रुपये का जुर्माना और घोटाले में शामिल व्यक्तियों को 10 साल कैद की सजा सुनाई जा सकती है।
उन्होंने बताया कि भले ही राजू ने खुद इस घोटाले को स्वीकार किया है पर उसके बाद भी कोई अधिकारियों को इसकी पुष्टि करनी होगी।