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कंपनी बंद करने के नियम बदले, अब निदेशकों को बतानी होगी पूरी जानकारी!

आईबीसी के तहत कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन के नियम किए गए सख्त

Last Updated- February 06, 2024 | 10:22 PM IST
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भारतीय ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) के संशोधित नियमों में ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) के तहत स्वैच्छिक परिसमापन प्रक्रिया के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों के निदेशकों को अब किसी लंबित कार्यवाही, आकलनों और याचिकाओं के बारे में वैधानिक प्राधिकारियों को सूचना देना अनिवार्य कर दिया गया है।

निदेशकों को यह भी पहले से घोषित करना होगा कि लंबित कार्यवाही के कारण उत्पन्न होने वाले संभावित दायित्वों को पूरा करने के लिए पर्याप्त प्रावधान किया गया है।

आईबीबीआई ने स्वैच्छिक परिसमापन प्रक्रिया के लिए नियमों में संशोधन किया है। इसका मकसद स्वैच्छिक परिसमापन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना है। साथ ही कॉरपोरेट से जुड़े व्यक्ति के दायित्वों की समाप्ति के पहले हितधारकों को दावा न की गई आमदनी के वितरण की सुविधा प्रदान करना है।

आईबीसी नियामक ने 5 फरवरी को किए गए संशोधनों में यह भी कहा है कि कॉरपोरेट स्वैच्छिक परिसमापन खाते में धन की पात्रता का दावा करने वाले हितधारक निकासी के लिए परिसमापक के पास आवेदन कर सकते हैं। यह कंपनी को समाप्त किए जाने से पहले की अवधि में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद किया जा सकता है।

आईबीबीआई ने कहा है, ‘इस तरह के आवेदन मिलने पर परिसमापक दावे की पुष्टि करेगा और आगे के वितरण के लिए बोर्ड से उसे धन जारी करने का अनुरोध करेगा।’

संशोधित नियमों में यह भी आवश्यक किया गया है कि परिसमापक कॉरपोरेट व्यक्ति के अंशदाताओं के साथ एक बैठक करेगा, अगर प्रक्रिया 90 से 270 दिन के भीतर नहीं पूरी कर ली जाती है। इसके अलावा अवधि पूरी होने पर 15 दिन के भीतर स्थिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी और उसमें बताया जाएगा कि देरी होने की वजह क्या है।

आईबीबीआई ने कहा है कि परिसमापक प्रक्रिया पूरी होने के लिए लगने वाले अतिरिक्त समय के बारे में बैठक में स्पष्ट करेगा। संकट में फंसी कंपनी के कॉरपोरेट दिवाला समाधान और परिसमापन की प्रक्रिया के विपरीत स्वैच्छिक परिसमापन में कर्जदाताओं या हिस्सेदारों की परामर्श समिति इसकी निगरानी नहीं करती है।

इस तरह का नियम न होने की स्थिति में चिंता थी कि कुछ लोग प्रक्रिया का दुरुपयोग कर सकते हैं और सक्षम प्राधिकारी को सूचित किए बगैर अपने मुताबिक परिसमापन प्रक्रिया बंद कर सकते हैं। संशोधित नियम 31 जनवरी, 2024 से प्रभावी हैं।

किंग स्टब ऐंड कासिवा, एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नीज में मैनेजिंग पार्टनर जिदेश कुमार ने कहा, ‘इन नियमों के कार्यान्वयन में कुछ चुनौतियां आ सकती हैं। इनमें प्रावधानों का अनुमान लगाना, बैठकें करना और दावों का सत्यापन करना शामिल हैं।’

अगर किसी कंपनी के बहुसंख्य निदेशक या साझेदार यह घोषणा करते हैं कि कंपनी के ऊपर कोई कर्ज नहीं है या कंपनी प्रस्तावित परिसमापन के तहत बेची जाने वाली संपत्तियों की आय से अपने पूरे कर्ज के भुगतान में सक्षम है तो वह स्वैच्छिक परिसमापन कार्यवाही की पहल कर सकती है।

यह भी घोषित करना होगा कि कंपनी का परिसमापन किसी व्यक्ति के साथ धोखाधड़ी करने के लिए नहीं किया जा रहा है। आईबीबीआई के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 तक 1,562 कंपनियों ने स्वैच्छिक परिसमापन की पहल की थी, जिसमें 1,039 मामलों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल की गई, जबकि 17 मामले वापस ले लिए गए।

करीब 69 प्रतिशत कंपनियों ने कारोबार न होने की वजह से स्वैच्छिक परिसमापन का विकल्प चुना था। वहीं 16 प्रतिशत कंपनियों ने कहा कि उनका काम कारोबार के हिसाब से व्यावहारिक नहीं है। अन्य कंपनियों ने कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने या प्रवर्तकों द्वारा कंपनी के मामलों को देख पाने में अक्षमता को वजह बताया था।

First Published - February 6, 2024 | 10:22 PM IST

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