देश के रियल एस्टेट क्षेत्र ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। शीर्ष अदालत ने डेवलपर और वित्तीय संस्थानों के बीच ‘खतरनाक सांठगांठ’ की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का आदेश दिया है। सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल याचिका में 1,200 से अधिक मकान खरीदारों और कर्जदारों ने कहा था कि उन्हें अब तक मकान नहीं सौंपा गया है मगर हर महीने किस्त चुकाने का दबाव डाला जा रहा है।
आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय के अधीन स्वनियामक निकाय नैशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (नार्डेको) के अध्यक्ष जी हरि बाबू ने कहा कि अदालत के इस फैसले से मकान खरीदने वालों के बीच अधिक पारदर्शिता आएगी और डेवलपरों के साथ-साथ बैंकों की भी जवाबदेही तय होगी।
जी हरि बाबू ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘शीर्ष अदालत का फैसला ग्राहकों के पक्ष में है और हम इसका स्वागत करते हैं। एक डेवलपर के नाते हम ग्राहकों की सेवा करते हैं। हमें अपनी परियोजनाओं में उनके निवेश की जिम्मेदारी लेनी होगी और जवाबदेह होना होगा। ग्राहकों को बिल्डर से सवाल पूछने का अधिकार है। बैंकों की भी जिम्मेदारी है कि वे निर्माण कार्य की निगरानी और देखरेख करें तथा पहले से ऋण न दें। इस फैसले से मकान खरीदने वालों के बीच अधिक पारदर्शिता आएगी।’
उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सर्वोच्च अदालत के इस फैसले न न केवल रियल एस्टेट की प्रथाओं बल्कि वित्तीय संस्थानों की भी अच्छे से जांच और संतुलन बनाने पर जोर दिया है। इससे भविष्य में ऐसे मसलों को रोकने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, ‘मकान खरीदने वालों के अधिकारों की सुरक्षा करना ही सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। उद्योग जगत में सतत नियामकीय निगरानी और जिम्मेदारी की दमदार भावना के साथ यह क्षेत्र उपभोक्ताओं की जरूरतों पर अधिक ध्यान दे सकता है।’
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को रियल एस्टेट डेवलपर और अन्य के बीच खतरनाक सांठगांठ की सात शुरुआती जांच करने को कहा गया है। इनमें सुपरटेक और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के बैंक शामिल हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह के पीठ ने कहा, ‘यह बैंकों और बिल्डरों के बीच पूरी तरह से मिलीभगत ही है और मकान खरीदने वाले निर्दोष लोगों को ठगा गया है।’ अदालत को पहली नजर में ही नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेस वे, गुरुग्राम और गाजियाबाद में परियोजनाओं को पूरा करने में बड़े बैंकों और बिल्डरों के बीच सांठगांठ मिली।
सुपरटेक को बड़ा चूककर्ता बताया गया और अदालत ने सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने से पहले चरणबद्ध तरीके से कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा के रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) के अधिकारी, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के पुलिस अधिकारी और भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आईसीएआई) द्वारा नामित एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की जाएगी। एकॉर्ड ज्यूरिस के मैनेजिंग पार्टनर अलट रिज्वी ने कहा कि सीबीआई जांच से रियल एस्टेट क्षेत्र मंश अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाई जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘इससे सख्त नियमन और निगरानी हो सकती है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि वित्तीय संस्थान और डेवलपर निष्पक्ष कार्य करेंगे। अंततः यह आने वाले समय में मकान खरीदने वालों को इस तरह की परेशानियों से भी बचा सकता है और आवास बाजार में विश्वास की फिर से विश्वास की भावना पैदा कर सकता है।’
अल्फा पार्टनर्स के मैनेजिंग पार्टनर अक्षत पांडे ने कहा कि रिजर्व बैंक की निगरानी के बावजूद बैंकों के शामिल होने का मुद्दा इस फैसले के जरिये ही सामने आया है। उन्होंने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक ने उन मामलों में क्या किया जहां संदिग्ध परिस्थितियों में ऋण स्वीकृत किए गए थे। इसके अलावा अगर कोई कार्रवाई की गई तो उसका क्या असर रहा। सब्सिडी योजनाएं त्रुटिपूर्ण हैं क्योंकि वे रिजर्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों को आकर्षित करती हैं। ये डेवलपर को रिजर्व बैंक की मंजूरी के बगैर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) जैसी बनाती है। इसके अलावा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की मंजूरी के बगैर भी सामूहिक निवेश योजना जैसी बनाती है।’ पांडे ने कहा कि फ्लैट खरीदने वालों को रियल एस्टेट लेनदेन की समीक्षा करनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि हर फ्लैट अथवा दुकान अथवा दफ्तर की खरीद में कोई खामियां न हों।