कंपनी मामलों के मंत्रालय (एमसीए) द्वारा संसद के मॉनसून सत्र में ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (संशोधन) विधेयक पेश किए जाने की संभावना है। रियल एस्टेट दिवालियापन को लेकर कानून में प्रस्तावित बदलावों के संबंध में मंत्रालय रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) के साथ बातचीत कर रहा है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापे जाने के अनुरोध के साथ कहा, ‘हम यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि कानून का गलत इस्तेमाल न हो।’
एमसीए ने प्रस्ताव रखा है कि यदि दिवालिया प्रक्रिया किसी रियल एस्टेट परियोजना के प्रवर्तक के खिलाफ शुरू की जाती है तो सीआईआरपी (कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस) प्रावधान उन परियोजनाओं पर ही लागू होंगे जो चूक से जुड़ी रही हों।
मंत्रालय को मौजूदा आईबीसी नियम में बदलाव के संबंध में अपने परामर्श पत्र पर सुझाव मिले हैं और वह अंतिम रूप देने की दिशा में काम कर रहा है।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम अभी भी परामर्श प्रक्रिया में हैं। हमसे व्यक्तिगत दिवालिया प्रक्रिया के बारे में कहा गया है, लेकिन हम सबसे पहले कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहेंगे।’
अन्य मुख्य बदलावों में से एक प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी योजनाओं से जुड़ा है, जो मौजूदा समय में सिर्फ एमएसएमई के लिए उपलब्ध है। एमसीए ने इस योजना का दायरा एमएसएमई से आगे भी बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था और एक ऐसा ढांचा मुहैया कराया जो कॉरपोरेट देनदारों की खास श्रेणियों पर लागू होगा।
सरकारी अधिकारियों ने संकेत दिया है कि कंपनियों के लिए उस दायरे की जानकारी स्पष्ट की जाएगी जिससे कि वे प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी तक पहुंच बना सकें और इसे बाद में धीरे धीरे बढ़ाया जाएगा। अधिकारी ने कहा, ‘इसकी शुरुआत छोटी कंपनियों से की जाएगी। यह एक ऐसा प्रयोग है जिसकी शुरुआत एमएसएमई से की गई थी, लेकिन बहुत कम कंपनियों ने इस प्रक्रिया के तहत आवेदन किए हैं।’
मंत्रालय यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कंपनी पंजीयकों (आरओसी) के समक्ष लंबित मामलों को घटाने की दिशा में भी काम कर रहा है कि दो साल से पुराने सभी मामले सुलझाए जा सकें। एमसीए के अनुसार, मौजूदा समय में, 3,000 मामले आरओसी के पास लंबित हैं। इनमें से, उसने इस साल कम से कम 1,000 मामले निपटाने की योजना बनाई है।