जब मैं राकेश झुनझुनवाला का नाम सुनता हूं तब मेरे दिमाग में उनको लेकर जो पहली चीज आती है, वह देश के प्रति उनकी प्रेम की भावना के साथ ही बाजार, दोस्तों और जिंदगी के लिए उनका प्यार है। राकेश एक व्यक्ति के ओहदे से कहीं ऊपर थे। उनकी सबसे अच्छी बात यह थी कि वह यह चाहते थे कि लोग, उनके दोस्त और आम लोग भी खूब पैसे कमाएं। यही वजह है कि टेलीविजन साक्षात्कार में उनकी कोई दिलचस्पी न होने के बावजूद भी वह हर जगह मीडिया में छाए रहते थे। वह अपने ही नियमों के खिलाफ जाकर लोगों को पैसे कमाने में मदद करते थे। वह उत्साह से भरे व्यक्ति थे।
अगर थोड़ी गहराई से उनका आकलन करें तो परोपकार में उनका भरोसा था और वह हमेशा इस बात पर ध्यान देते थे कि उनकी कमाई का 25-30 प्रतिशत परोपकार के काम में जाए। मैं उन्हें वर्ष 1988 से जानता था और उस वक्त से ही मैं भारत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, शेयरों, बाजार की स्थिति पर उनका दृढ़ विश्वास देख रहा हूं। वह हमेशा कहते थे कि यह सब कुछ पैसा बनाने के बारे में नहीं बल्कि सही होने से जुड़ा है। वह हमेशा कंपनियों, अर्थव्यवस्था और दुनिया के बारे में भविष्यवाणी करने में यकीन करते थे।
राकेश को बाजारों की काफी अच्छी समझ थी। वह हमेशा दांव लगाने वाले शेयर में समय से काफी आगे जाकर फैसला करते थे और इसकी वजह से उनका अपना व्यापक शोध था। अगर किसी शेयर के प्रदर्शन की भविष्यवाणी करने की बात हो तो वह दूरदर्शी साबित होते थे। कई लोगों के उलट राकेश अपनी स्थिति का खुलासा करने में संकोच नहीं करते थे और वह हमेशा अपने द्वारा खरीदे गए शेयरों के बारे में बताते थे कि उन्होंने कितने शेयर खरीदे, उसकी कीमत क्या थी और इस खरीद के पीछे की वजह क्या थी। इस लिहाज से वह एक निजी निवेशक थे जो अपने पैसे का निवेश करते थे। वह जिस तरह के जोखिम लेते थे और उनमें जिस तरह का दृढ़ विश्वास था, यह सब भी उसकी वजह थी।
मुझे याद है कि उन्होंने वर्ष 2002-03 में बड़े भरोसे के साथ टाइटन खरीदा था। टाटा समूह की कंपनियां उन्हें भाती थीं। कुछ शेयर ब्रोकर 25-50 लाख शेयरों को बेचना चाहते थे। वह हमेशा मोल-तोल करने वाले खरीदारों में से थे।