आईबीबीआई दिवालिया मामलों के समाधान के लिए मध्स्थता को लागू करने पर काम कर रहा है। नियामक की तरफ से इस पर विमर्श पत्र लाए जाने के आसार हैं।
इस चर्चा के बारे में जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि अदालतें खुद दिवालिया प्रक्रिया को अटकाती हैं और अदालत के बाहर निपटारे से इस मुद्दे का समाधान निकल सकता है। सूत्र ने कहा, ‘कंपनी विधि न्यायाधिकरण अपनी आधी क्षमता पर काम कर रहे हैं। इस संस्थान के पास बहुत से मामले हैं, लेकिन पर्याप्त कार्मिक नहीं हैं।’
आईबीबीआई के अनुसार, मार्च 2022 तक 1,852 दिवालिया मामले चल रहे थे।
फिलहाल संसद में एक मध्यस्थता विधेयक भी पेश किया गया है। उन्होंने कहा, ‘इस विधेयक के तहत दिवालिया कोई अपवाद नहीं है। इसलिए भविष्य में ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के तहत प्रावधान लाया जा सकता है।’
सूत्र ने कहा कि अदालतों में होने वाली देरी दिवालिया मामलों से संबंधित सभी समस्याओं की जड़ है और इससे कई लेनदारों को नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘भारत में दिवालिया संबंधी मुकदमेबाजी के विकल्प के तौर पर मध्यस्थता अधिक वसूली की गारंटी दे सकती है और इससे अदालतों में कामकाज का बोझ भी कम हो सकता है।’आईबीबीआई के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी से मार्च की अवधि में वित्तीय लेनदारों की वसूली उनके स्वीकृत दावों के 10.21 फीसदी के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई। साल 2021 की दिसंबर तिमाही में यह आंकड़ा 13.41 फीसदी थी।
मध्यस्थता लाए जाने के बावजूद कुछ मुद्दों को निर्धारित करने की आवश्यकता है जैसे दिवाला मामलों में मध्यस्थता किस स्तर पर चलन में आएगी आदि। उन्होंने कहा, ‘आईबीबीआई को इस पर जोर देने और लोगों को मध्यस्थता के फायदे से अवगत कराने की जरूरत होगी।’
सूत्र ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों का झुकाव वाणिज्यिक विवाद मामलों में मध्यस्थता की ओर है। उदाहरण के लिए, पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय ने किर्लोस्कर बंधुओं को संपत्ति बंटवारा संबंधी पारिवारिक विवाद को मध्यस्थता के जरिये सुलझाने का निर्देश दिया था। यहां तक कि शीर्ष अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश को मध्यस्थता करने का भी सुझाव दिया था।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल आईबीबीआई और सरकार को अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाकर एनसीएलटी को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए। एक प्रमुख कानून फर्म के पार्टनर ने कहा, ‘मध्यस्थता से आईबीसी के कार्यान्वयन में आने वाली मौजूदा कठिनाइयों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसकी घोषणा का सीमित अथवा शून्य प्रभाव नहीं दिखेगा।’
अमेरिका और इटली जैसे कई देशों में बीमारू कंपनियों के उपचार के लिए मध्यस्थता को एक प्रभावी उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में सरकार ने मध्यस्थता को बढ़ावा देने के लिए कंपनी अधिनियम 2013 जैसे कानून बनाए हैं। इसके तहत नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी), अपीलीय ट्रिब्यूनल एनसीएलएटी और वाणिज्यिक अदालत अधिनियम, 2015 के जरिये वाणिज्यिक विवादों में मध्यस्थता प्रक्रिया को आगे बढ़ाई जाती है। हालांकि फिलहाल आईबीसी के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
