भारतीय कंपनी जगत के जनवरी-मार्च 2022-23 के तिमाही नतीजे के लिए बाजार तैयार हो रहा है, ऐसे में आलियांज इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट की मुख्य कार्याधिकारी (CEO) व मुख्य निवेश अधिकारी (एशिया) रितु अरोड़ा ने पुनीत वाधवा को दिए साक्षात्कार में कहा कि वित्तीय सेवा व उपभोग आधारित क्षेत्र यहां से बाजार में सुधार की अगुआई करेंगे। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
क्या यह मानना सुरक्षित है कि वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए बुरे दिन पीछे रह गए हैं?
यह कहना जल्दबाजी होगी कि बुरे दिन पीछे रह गए हैं। 1980 के बाद से ब्याज दरों में सबसे तेज बढ़ोतरी से जुड़ा व्यवस्थित जोखिम, लंबे समय तक ज्यादा दरें, भूराजनीतिक संकट, उभरते हुए कुछ देशों में कर्ज का मामला और वृद्धि में नरमी की आशंका के चलते उतारचढ़ाव जारी रह सकता है। केंद्रीय बैंकों को वित्तीय व्यवस्था को सुरक्षित रखने की खातिर जब भी जरूरत हो, हस्तक्षेप जारी रखना चाहिए।
क्या वैश्विक केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं?
अब आक्रामकता से ब्याज दरें बढ़ाने की दरकार नहीं है। दर बढ़ोतरी पर विराम कटौती का केंद्रीय बैंकों का फैसला मोटे तौर पर अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं में मुख्य महंगाई और आर्थिक हालात पर आधारित होगा। भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय बैंक पहले ब्याज बढ़ोतरी पर विराम लगा चुके हैं। कैलेंडर वर्ष 2023 में नीतिगत दरें स्थिर बनी रह सकती हैं जबकि बाजार का अनुमान 2023 में ब्याज दरों में कई बार कटौती का है। हम उम्मीद करते हैं कि अगले साल की शुरुआत से नीतिगत दरें कम होंगी।
भारतीय इक्विटी बाजारों पर आपका क्या नजरिया है?
हम मध्यम से लंबी अवधि के लिहाज से भारतीय इक्विटी बाजारों में स्थिर बढ़त की संभावना देख रहे हैं, हालांकि अल्पावधि में उतारचढ़ाव रहेगा। वृद्धि में नरमी या कम होने का मामला पहले ही विकसित बाजारों में आकार ले चुका है और यह देसी अर्थव्यवस्था व उभरते बाजारों पर थोड़ा असर डालना शुरू करेगा। भारतीय इक्विटी का मूल्यांकन हालांकि बहुत महंगा नहीं है, पर एक साल आगे की आय 19 गुने के मुकाबले सस्ते भी नहीं हैं। प्राइस टु अर्निंग अल्पावधि में वृद्धि में सुस्ती शायद मानकर नहीं चल रहा है। क्षेत्र में भारत सबसे महंगा इक्विटी बाजार बना बुआ है और वैश्विक स्तर भी सबसे ज्यादा महंगे बाजारों में शामिल है। हमारा मानना है कि भारतीय बाजार कैलेंडर वर्ष 2023 में टूट सकते हैं और प्रवेश का बेहतर मौका मुहैया करा सकते हैं। उच्च गुणवत्ता वाले कारोबार बेहतर करेंगे।
एशिया व उभरते बाजारों में कौन से अन्य इक्विटी बाजार भारत से ज्यादा आकर्षक नजर आ रहे हैं?
भारत के अलावा इंडोनेशिया व फिलिपींस अपेक्षाकृत आकर्षक बाजार हैं क्योंकि वहां अनुकूल देसी डेमोग्राफिक हैं व शहरीकरण जारी हैं। ये अच्छी तरह से संचालित अर्थव्यवस्थाएं हैं और इक्विटी मूल्यांकन एक साल आगे की आय 12-13 गुने पर उचित हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिहाज से भी दोनों देश आकर्षक बने हुए हैं। सिंगापुर व मलेळिया के बाजार आकर्षक लाभांश प्रतिफल की पेशकश कर रहे हैं, साथ ही पूंजी में बढ़ोतरी की क्षमता भी यहां है।
चीन के बारे में क्या कहेंगे?
अल्पावधि के लिहाज से नजर रखने के मामले में चीन एक अन्य बाजार हो सकता है, जो उसकी देसी अर्थव्यवस्था में सुधार और संपत्ति क्षेत्र में संभावित रिकवरी पर निर्भर करेगा। समान वृद्धि की क्षमता के लिहाज से भारत इस इलाके में सबसे ज्यादा महंगा बाजार है। हालांकि वृद्धि में नरमी इन सभी अर्थव्यवस्थाओं पर असर डालेगी और इसे सावधानी से देखे जाने की दरकार है।
भारतीय इक्विटी में कब एफआईआई निवेश जोर पकड़ने की उम्मीद है?
एफआईआई निवेश का संबंध मोटे तौर पर वैश्विक ब्याज दर परिदृश्य, आर्थिक वृद्धि का परिदृश्य, परिसंपत्ति वर्ग का सापेक्षिक आकर्षण और देश के मूल्यांकन से होता है। चूंकि वैश्विक स्तर पर उच्च ब्याज दर का मौहाल खुद ही नरम हो रहा है, ऐसे में हम अगली तीन से चार तिमाहियों में इसमें सुधार की उम्मीद कर रहे हैं। इसके बाद भारतीय इक्विटी बाजारों में अपेक्षाकृत ज्यादा आकर्षक निवेश मौके होंगे। यह भारतीय इक्विटी में एफआईआई निवेश में खासा इजाफा करेगा। हम मार्च व अप्रैल 2023 में एफआईआई निवेश देख चुके हैं, जो भारतीय इक्विटी बाजार का अच्छा संकेतक है।
क्या अगली कुछ तिमाहियों में भारतीय कंपनियों की आय बाजार के सेंटिमेंट पर असर डालेगी?
भारतीय व उभरते बाजारों की वृद्धि दर में नरमी आएगी और ये चीजें अगली कुछ तिमाहियों में कंपनियों की आय में प्रतिबिंबित होगी। ये चीजें हालांकि अल्पावधि में सेंटिमेंट प्रभावित करेगी, लेकिन लंबी अवधि वाले निवेशकों को तिमाही आय के आंकड़ों से आगे देखने की दरकार है। लंबी अवधि के लिए रणनीतिक परिसंपत्ति आवंटन के लिहाज से हम उम्मीद करते हैं कि आय की रफ्तार एक से दो अंकों में होगी। यह दुनिया भर में सबसे ज्यादा होगी, जिसे देसी मांग व बुनियादी ढांचे पर जोर से सहारा मिलेगा।