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कामयाब है हमारा बिजनेस मॉडल

Last Updated- December 07, 2022 | 9:03 AM IST

भारत की दूसरी सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी सिप्ला लिमिटेड शायद ऐसी एकमात्र प्रमुख भारतीय कंपनी है जो अपने विकास के लिए विदेशी अधिग्रहणों से परहेज करती रही है।


रैनबैक्सी और डॉ. रेड्डीज जैसी कंपनियां विदेश में अधिग्रहण को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन 170 देशों में पहुंच वाली सिप्ला अपनी दवाओं की बिक्री विदेश में पूंजी निवेश किए बगैर अपने विपणन भागीदारों के जरिये करती है। सिप्ला के संयुक्त प्रबंध निदेशक अमर लूला से कंपनी के विकास मॉडल के बारे में जो मैथ्यू ने बातचीत की।

रैनबैक्सी-दायची सौदे के बाद कई विशेषज्ञों ने भारतीय जेनरिक कंपनियों के ताबड़तोड़ विकास के तरीके पर सवाल खड़ा किया है। आपकी इस बारे में क्या प्रतिक्रिया है?


रैनबैक्सी का निर्णय व्यावसायिक फैसला था। इसे नया चलन मानने की जरूरत नहीं। अधिग्रहण पहले भी हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। लेकिन हर बार कंपनियों की स्थिति एक जैसी नहीं रहती है। हर कंपनी के सामने अलग तरह के अवसर और चुनौतियां हैं। सिप्ला के पास अपना बिजनेस मॉडल है और उसमें काफी कम जोखिम है। हालांकि हमारे अलावा और कंपनियों के पास भी सफलता भरे मॉडल हो सकते हैं।

माना जा रहा है कि रैनबैक्सी-दायची सौदे की तरह दो चार अधिग्रहण और होने पर भारत सस्ती दवाओं के आपूर्तिकर्ता के रूप में दुनिया भर में मौजूद अपनी प्रतिष्ठा खो देगा। क्या आप इससे सहमत हैं?

नहीं, विलय और अधिग्रहण इस दर्जे को बदल नहीं सकते। लेकिन इस तरह से निकट भविष्य में दवा निर्माण के मुकाबले में भारत चीन से पिछड़ सकता है। हमारा दवा बनाने में खर्च बढ़ रहा है। भारत में निर्माण कई अन्य कारणों से और अधिक महंगा होगा। इन कारणों में हाल ही में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें में तेज वृध्दि और मुद्रास्फीति में तेजी का होना भी शामिल है।

क्या सिप्ला अपने शेयर बेचने के बारे में सोच रही है?

नहीं, बिल्कुल नहीं। दरअसल सिप्ला के बारे में यह अफवाह पिछले कई वर्षों से फैलाई जा रही है। लेकिन हमने शेयर बेचने के बारे में कभी नहीं सोचा।

सिप्ला के बिजनेस मॉडल की क्या विशेषता है?

हमने वैश्विक निवेश नहीं किया है। हमारे पास मार्केटिंग साझेदार हैं, जो हमारी दवाओं को तमाम देशों में बेचते हैं। सिप्ला ने प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित किया है। पूरे भारत में हम 40 विनिर्माण संयंत्रों में उत्पादन कर रहे हैं। हम विश्व भर की कंपनियों को दवा और प्रौद्योगिकी बेचते हैं। हमारा तकनीकी सेवा विभाग बेहद सशक्त है और इससे अन्य कंपनियों को भी उत्पाद विकसित करने और नए संयंत्र स्थापित करने में मदद मिलती है।

पिछले वर्ष (2007-08 में) इस विभाग से हमारा राजस्व 150 करोड़ रुपये से अधिक का रहा। अन्य कंपनियों के विपरीत सिप्ला का कारोबार समान रूप से जारी रहता है। हमारे पास राजस्व का तेज प्रवाह है। आप सिप्ला के बैलेंस शीट की अन्य कंपनियों के साथ ठीक तरीके से तुलना करें तो पाएंगे कि हमारा बिजनेस मॉडल  कितना लाभदायक है।

कई लोग कहते हैं कि जेनरिक दवाओं का कारोबार भविष्य के लिहाज से बहुत अच्छा कारोबार नहीं है। उनके मुताबिक इसमें मुनाफा मिलना लगातार कम हो रहा है और कंपनियों को भी अपना कारोबारी मॉडल बदलना पड़ रहा है। ऐसे में सिप्ला के भविष्य के बारे में आप क्या सोचते हैं?

हमें ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा है। दुनिया भर में जेनरिक दवाओं की मांग बनी रहेगी।

First Published - July 3, 2008 | 10:48 PM IST

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