आवागमन की प्रवृत्तियों में बदलाव और लोगों द्वारा कम प्रदूषण करने वाले ऊर्जा स्रोतों को तेजी से चुनने के बीच पिछले पांच साल में संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) से चलने वाले वाहनों की बिक्री में 80 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है।
‘वाहन डैशबोर्ड’ के अनुसार वर्ष 2017-18 के 4,00,825 के मुकाबले वर्ष 2022-23 में कुल 7,29,902 सीएनजी वाहन बेचे गए। हालांकि सीएनजी से चलने वाले वाहनों की बिक्री में खासा इजाफा हुआ है, लेकिन कुल वाहनों की बिक्री में उनकी हिस्सेदारी काफी कम रही है, जैसा कि इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के मामले में रहा है। वित्त वर्ष 23 में भारत में बेचे गए कुल 22,224,702 वाहनों में से सीएनजी वाहनों की हिस्सेदारी केवल 3.28 फीसदी रही।
ईवी की हिस्सेदारी भी वित्त वर्ष 23 में कुल वाहन बिक्री में बढ़कर 5.3 प्रतिशत हो गई, जबकि वित्त वर्ष 18 में यह 0.40 प्रतिशत। हालांकि इलेक्ट्रिक चौपहिया वाहनों की बिक्री की हिस्सेदारी कुल ईवी बिक्री में लगभग चार प्रतिशत रही।
वित्त वर्ष 23 में कुल 49,822 इलेक्ट्रिक चौपहिया वाहन बेचे गए, जबकि वित्त वर्ष 18 में 2,714 चौपहिया वाहन बेचे गए थे। हालांकि ग्राहकों ने पिछले पांच साल में तेजी हरित और स्वच्छ वाहनों को चुना है, लेकिन पेट्रोल और डीजल वाले वाहनों की हिस्सेदारी क्रमशः 18 प्रतिशत और 13 प्रतिशत की गिरावट के बावजूद काफी अधिक बनी हुई है। ‘वाहन’ के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2023 में पेट्रोल और डीजल वाहनों की हिस्सेदारी क्रमशः 78 प्रतिशत और 10 प्रतिशत थी।
बदलाव
विशेषज्ञों ने कहा, डीजल-पेट्रोल से कार चलाने के मुकाबले कम लागत, नई पेशकश और ज्यादातर नकद प्रोत्साहन सीएनजी वाहनों की मांग में इजाफा कर रहा है।
उन्होंने कहा, सीएनजी से कार चलाने की लागत करीब 2.5 रुपये प्रति किलोमीटर है जबकि पेट्रोल-डीजल से 5.30 रुपये प्रति किलोमीटर। अहम ब्रांडों ने डीजल वाहनों का उत्पादन बंद कर दिया है। देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुजूकी ने डीजल मॉडल पूरी तरह से बंद कर दिया है।
टाटा मोटर्स ने भी छोटी क्षमता वाले डीजल इंजन बंद कर दिए हैं जबकि होंडा इंडिया ने हाल में कहा है कि वह डीजल इंजन वाले कार बनाना बंद कर सकती है। हुंडई ने भी हाल में पेश वेरना 2023 में डीजल वेरिएंट बंद कर दिया है।इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है।
नीति आयोग ने 2030 तक सभी वाणिज्यिक कारों के लिए ईवी बिक्री के प्रसार का लक्ष्य 70 फीसदी तय किया है, प्राइवेट कारों के लिए 30 फीसदी, बसों के लिए 40 फीसदी और दोपहिया व तिपहिया के लिए 80 फीसदी लक्ष्य तय किया है।
इसके अतिरिक्त उत्सर्जन के सख्त नियम के अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में बढ़ोतरी भी डीजल इंजन कारों के लिए नुकसानदायक साबित हुई है।
क्या हैं चुनौतियां
सीएनजी की बढ़ती लागत और फ्यूल स्टेशन की कमी सीएनजी सेगमेंट की बढ़त को बाधित कर रहा है। सीएजी कारों का मोटे तौर पर शहरों में टैक्सी व वाणिज्यिक वाहनों पर वर्चस्व है। अक्टूबर 2022 तक भात के शहरों में कुल 4,679 सीएनजी पंप थे, जो 2014 में 900 रहे थे। दिल्ली में सीएनजी की कीमत 2017 के मुकाबले दोगुनी होकर 2023 में 79.56 प्रति किलोग्राम हो गई। अन्य राज्यों में यह और भी ज्यादा है।
भारत हर दवा कंपनी के लिए खास बाजार
ल्यूपिन के प्रबंध निदेशक नीलेश गुप्ता ने उन नए उपक्रमों के संबंध में अपने विचार साझा किए, जिनमें उनकी फर्म ने प्रवेश किया है। सोहिनी दास के साथ बातचीत में गुप्ता बताते हैं कि किस तरह भारतीय बाजार दवा कंपनियों के लिए आकर्षक बनता जा रहा है। संपादित अंश :
आप डायग्नोस्टिक्स और डिजिटल स्वास्थ्य उद्यमों में विविधता की राह पर क्यों गए?
मैं इसे विविधीकरण नहीं कहना चाहूंगा, बल्कि भारत में अपनी पेशकशों को बढ़ाना कहूंगा। भारत में काफी ज्यादा संभावनाएं हैं और हम अब भी भारत में छोटे हैं, घरेलू फार्मा बाजार में करीब छठे स्थान पर। ये उद्यम हमारे कारोबार को और ज्यादा चमकाते हैं, जबकि इसका केंद्र स्पष्ट रूप से प्रिस्क्रिप्शन कारोबार और ओटीसी कार्यक्षेत्र रहा है। ये सभी बड़ी योजना का हिस्सा हैं।
हमें भारत में विकास करना है और हम स्पष्ट रूप से चौथे स्थान की राह देख रहे हैं। विकास करने के लिए काफी गुंजाइश है। हम भारत में बाजार के विकास में पिछड़ रहे हैं; जो मंजूर नहीं है। अब साफ तौर पर जरूरत है बाजार की वृद्धि की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बढ़ने का है। दूसरी तिमाही के बाद से हम उसी प्रकार की वृद्धि की वापसी देख रहे हैं। अगर हम बाजार के अगुआ बनना चाहते हैं, तो हमें बाजार से आगे बढ़ना होगा।
अपने नए उपक्रमों में आपकी नजर किस बाजार हिस्सेदारी पर है?
डायग्नोस्टिक्स अभी भी बंटा हुआ और असंगठित है। डायग्नोस्टिक्स में स्पष्ट रूप से अधिक भरोसेमंद प्रयोगशालाओं तथा बड़े स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। यहां तक कि अमेरिका में भी करीब 40 प्रतिशत अब भी छोटी स्थानीय दुकानें हैं। इस उद्योग के समेकन की ओर बढ़ने की उम्मीद है। एक डिजिटल स्वास्थ्य उद्यम में मैं उन क्षेत्रों में जाना पसंद करुंगा, जहां हमारे पास डॉक्टरों के साथ हिस्सेदारी है। श्वसन ऐसा क्षेत्र है जिसमें मेरी काफी दिलचस्पी है। यह एक स्वतंत्र पेशकश नहीं है, बल्कि इसे रोगी के समग्र रोग प्रबंधन के साथ मिलकर काम करना होगा।
आप आगे चलकर इन नए उपक्रमों से कमाई करेंगे?
प्रिस्क्रिप्शन सबसे महत्वपूर्ण है और यह ऐसा ही रहेगा। ये कारोबार मूल्यांकन बढ़ाएंगे, वे बढ़ेंगे। एक बार जब हम बड़े स्तर पर पहुंच जाते हैं, तो हमें अपने डिजिटल कार्य आदि के लिए केवल ल्यूपिन की पूंजी के साथ ही काम नहीं करना चाहिए। हम अंततः इन कंपनियों में धन जुटा सकते हैं। तत्काल ऐसा होने के आसार नहीं हैं।
आवश्यक दवाओं की कीमत में पिछले दो साल में दो अंकों की वृद्धि देखी गई है। क्या भारत अब विदेशी बाजारों की तुलना में ज्यादा आकर्षक बाजार बन रहा है?
भारत में दवाओं का मूल्य निर्धारण बहुत उचित रूप से होता है। पिछले कुछ साल में इनपुट लागत बढ़ी है। सरकार द्वारा तय किए गए अधिकतम दाम मूल्य को नियंत्रण में रखते हैं और इन्हें समय-समय पर संशोधित किया जाता है। प्रतिस्पर्धा आपने आप कीमतों को नियंत्रण में रखती है। भारत हर भारतीय दवा कंपनी के लिए सबसे महत्वपूर्ण बाजार है। हमने पिछले साल भारतीय बाजार में 1,300 लोगों को शामिल किया।