वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) या बड़ी बहुराष्ट्रीय फर्मों के कैप्टिव देश में विस्तार कर रहे हैं और घरेलू आईटी सेवा फर्मों की प्रतिभा तथा बाजार हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम कर रहे हैं।
आम तौर पर कैप्टिव या संपर्क केंद्र के नाम से पहचाने जाने वाले जीसीसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ऐसी अपतटीय इकाइयां होती हैं, जो निर्धारित प्रौद्योगिकी का परिचालन करती हैं। ये 1990 के दशक के दौरान जीई, टेक्सस इंस्ट्रूमेंट्स, सिटीग्रुप जैसी बड़ी कंपनियों के रूप में उभरी थीं और अमेरिकन एक्सप्रेस ने इस प्रारूप को अपनाना शुरू किया।
वैश्विक अनुसंधान फर्म एवरेस्ट ग्रुप में साझेदार (प्रौद्योगिकी) नीतीश मित्तल के अनुसार आईटी सेवा प्रदाताओं ने वर्ष 2012-13 के दौरान लगभग 75 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी की कमान संभाली थी, बाकी हिस्सा जीसीसी के पास था।
उन्होंने कहा कि अब इसमें लगभग 65 प्रतिशत तक कमी आ चुकी है, लेकिन इस अवधि में कुल बाजार 8-10 प्रतिशत सीएजीआर (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) से बढ़कर लगभग 2.5 गुना हो गया। इसलिए जीसीसी की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है, लेकिन दोनों तीसरे पक्ष के आईटी – कारोबारी प्रक्रिया और इंजीनियरिंग सेवाओं पर कुल खर्च मात्रा और मूल्य के दृष्टिकोण से काफी बढ़ चुका है।
प्रतिभा सेवा फर्म रैंडस्टैड सोर्सराइट, भारत और जापान के प्रबंध निदेशक हरीश पिल्लई कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान आउटसोर्सिंग का लगभग 30 प्रतिशत काम जीसीसी में चला गया है और यह एक निरंतर प्रक्रिया है।
पिल्लई ने कहा कि मौजूदा जीसीसी में से कई तो काम के स्तर और जटिलता प्रबंधन की क्षमता के लिहाज से सेवा कंपनियों की तरह बन गए हैं। एक तरह से वे अपने मूल संगठनों के लिए इन-हाउस सेवा इकाइयों की तरह बन गए हैं।
कैप्टिव को अधिक काम इसलिए भी मिल रहा है क्योंकि वे दीर्घावधि में बेहतर लागत प्रस्ताव उपलब्ध कर रहे हैं और आम तौर पर समाधान वास्तुकला, डिजाइन और आरऐंडडी जैसे काम में शामिल होते हैं क्योंकि उद्यम इन्हें इन-हाउस रखना पसंद करते हैं तथा विकास और रखरखाव से संबंधित कार्य को आउटसोर्स करते हैं।
पिल्लई ने कहा कि हालांकि शुरुआत में जीसीसी की स्थापना का पूंजीगत व्यय अधिक होता है, लेकिन आगे चलकर आरओआई (निवेश पर प्रतिफल) बेहतर होता है। उन्होंने कहा कि सेवा कंपनियों में केवल कुछ ही लोगों के पास उस स्तर का वैश्विक संपर्क होता है। बाकी कार्य उन्मुख काम करते हैं।
नैसकॉम-जिन्नोव की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 23 तक भारत में 1,580 जीसीसी थे। कई वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने मुख्यालय से बाहर अपना पहला वैश्विक केंद्र भारत में स्थापित करने का विकल्प चुन रही हैं।