जब 28 वर्ष की उम्र में कुमार मंगलम बिड़ला 15,000 करोड़ रुपये की पूंजी वाले आदित्य बिड़ला समूह में बतौर चेयरमैन शामिल हुए थे तब भारतीय उद्योग जगत में किसी तरह का उत्साह नहीं देखा गया था।
यह उस वक्त की बात है जब आदित्य बिड़ला समूह का मुख्यालय दक्षिण मुंबई में था। लेकिन बहुत जल्द ही युवा बिड़ला समूह का कायाकल्प कर भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक घरानों में शुमार हो गए। आइडिया सेल्युलर की ओर से स्पाइस कम्युनिकेशंस की खरीद भारत में चौथा सबसे बड़ा विलय एवं अधिग्रहण (एम ऐंड ए) सौदा है।
इसी के साथ 41 वर्षीय बिड़ला 2010 तक फॉरच्यून-500 की सूची में शामिल होने के अपने सपने को पूरा करने के करीब पहुंच गए हैं। सौदे को अंजाम तक पहुंचाने के लिहाज से बिड़ला को एक अच्छा कारोबारी भी माना जाता है। पिछले साल से स्पाइस के चेयरमैन बीके मोदी की बिड़ला के सलाहकारों के साथ बातचीत चल रही थी, लेकिन कोई सफल परिणाम नहीं निकला था।
चार्टर्ड अकाउंटेंट और लंदन बिजनेस स्कूल के छात्र रहे कुमार मंगलम ने भारत के कई सबसे बड़े विलय और अधिग्रहण सौदों में मध्यस्थता की है जिनमें आइडिया सेल्युलर में शेयरों की खरीद से जुड़ा टाटा समूह का मामला भी शामिल है। उन्होंने लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) के शेयरों की खरीद के लिए अंबानी बंधुओं के साथ भी बातचीत की थी। बाद में उन्होंने एलऐंडटी की सीमेंट इकाई के बिक्री सौदे में भी अहम भूमिका निभाई थी। उनके दादा बी. के. बिड़ला कहते हैं, ‘कुमार मंगलम के काम का तरीका अपने पिता से अलग है। वह कार्यभार सौंपने में विश्वास रखते हैं। उनकी शैली समूह-आधारित है।’
अब बिड़ला चाहते हैं कि उनके समूह के राजस्व का बड़ा हिस्सा नए व्यवसायों और रिटेल से जुटाया जाए। उनकी समूह कंपनी ‘मोर’ नाम से अपने ब्रांड के तहत रिटेल स्टोरों को खोल रही है और स्पाइस के अधिग्रहण से आइडिया सेल्युलर भारतीयों की मौजूदगी वाले क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति और बढ़ाएगी। बिड़ला की सफलता के बारे में जिक्र करते हुए उनके दादा कहते हैं कि उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण यह है कि वह बेहद अच्छी ‘टीम ए’ बनाने में सफल रहे हैं। दादा बताते हैं, ‘हमारी पॉलिसी थी कि बाहरी लोगों को नियुक्त नहीं किया जाए। बिड़ला ने इसमें बदलाव किया।’
उन्होंने नई टीम बनाई और हिन्दुस्तान लीवर से आए संतृप्त मिश्रा को एचआर सिस्टम्स की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने आदित्य बिड़ला नूवो के लिए 1996 में भरत सिंह, आइडिया सेल्युलर के लिए 1999 में संजीव आगा और रिटेल पहल के लिए 2002 में सुमंत सिंह को समूह से जोड़ा। अब बिड़ला अपनी नजर फर्ॉच्यून-500 सूची पर लगाए हुए हैं। आदित्य बिड़ला समूह एक ऐसे संस्थान के रूप में अपनी छवि विकसित कर रहा है जिस पर कॉर्पोरेट जगत को गर्व होगा।