कैलेंडर वर्ष 2021 में स्टार्टअप क्षेत्र ने जब 36 से 40 अरब डॉलर जुटाए तो ड्रोन स्टार्टअप श्रेणी महज 1.5 करोड़ डॉलर ही क्यों जुटा पाई? साल 2021 के आंकड़े अभी भी पिछले वर्षों के मुकाबले अधिक हैं। ट्रैक्सन के आंकड़ों के अनुसार, साल 2020 में यह आंकड़ा 70 लाख डॉलर था जबकि 2019 में 30 करोड़ डॉलर और 2018 में 50 लाख डॉलर।
स्काइलार्क ड्रोन्स के सह-संस्थापक मरुनल पई ने कहा, ‘ड्रोन परिवेश 2018 तक निनियमों के दायरे से बाहर काम कर रहा था। उसके बाद एक नीति आई जो प्रभावी तौर पर ड्रोन के उपयोग को प्रतिबंधित करती थी क्योंकि हरेक टेक-ऑफ से पहले आपको सरकार से मंजूरी लेने की आवश्यकता थी।’
पिछले साल सितंबर तक स्थिति पूर्ववत थी लेकिन अनुपालन एवं शुल्क को आसान बना दिया गया। उदाहरण के लिए, नए ड्रोन नियमों के तहत पंजीकरण अथवा लाइसेंस जारी करने से पहले सुरक्षा संबंधी मंजूरियों की आवश्यकता को खत्म कर दिया गया, येलो जोन (जिस क्षेत्र के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता होती है) के दायरे को किसी हवाई अड्डे से किसी भी दिशा में 45 किलोमीटर से घटाकर 12 किलोमीटर कर दिया गया और बिना रिमोट पायलट लाइसेंस के माइक्रो ड्रोन एवं नैनो ड्रोन के उपयोग को मंजूरी दी गई। विशेषज्ञों का कहना है कि अब कुल मिलाकर देश का 80 फीसदी हिस्सा ग्रीन जोन के दायरे में है जहां ड्रोन के दैनिक परिचालन के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
हालांकि अब भी निवेशक इस क्षेत्र में बड़ा दांव लगाने से कतराते दिख रहे हैं।
ड्रोन स्टार्टअप एयूएस में निवेश करने वाली वेंचर कैपिटल फर्म 3वन4 कैपिटल के मैनेजिंग पार्टनर सिद्धार्थ पई ने कहा, ‘ड्रोन विनिर्माण के लिहाज से भारत को अभी भी ड्रोन बनाने वाली दुनिया के सबसे बड़े विनिर्माता चीन को पकडऩा बाकी है। ड्रोन के लिए उत्पादन से जुड़़ी प्रोत्साहन योजना के साथ नियुक्तियों में तेजी आई है क्योंकि मेक इन इंडिया का सहारा मिला है। निवेशक फिलहाल इस क्षेत्र पर नजर रख रहे हैं और अच्छी बौद्धिक संपदा वाले स्टार्टअप की तलाश कर रहे हैं जो वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए राजस्व को रफ्तार देने में समर्थ हो।’
कम वित्त पोषण का एक कारण यह भी है कि बिजनेस टु गवर्नमेंट बाजार अभी भी नए नियमों के इंतजार में है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह कहा था कि सशस्त्र बलों द्वारा ड्रोन कंपनियों को 500 करोड़ रुपये के ऑर्डर दिए गए हैं लेकिन उद्योग प्रतिभागियों का कहना है कि निवेशक अभी कतरा रहे हैं जबकि सरकार किसी छोटी कंपनी के लिए सबसे बड़ा ग्राहक बन सकती है।
एक अन्य समस्या यह है कि इस क्षेत्र में शायद ही बी2सी की मौजूदगी है जबकि पिछले कुछ महीनों के दौरान बी2बी खुला है।
