ओला के संस्थापक भवीश अग्रवाल द्वारा शुरू की गई एआई स्टार्टअप कृत्रिम अनुवाद और तथ्यात्मक गड़बड़ियों एवं तार्किक मसलों के कारण उपयोगकर्ताओं के निशाने पर आ गई है। लोगों के लिए कृत्रिम का बीटा वर्जन इस साल फरवरी में पेश किया गया था। मगर कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि प्लेटफॉर्म पर हर हफ्ते सुधार हो रहा है।
नई दिल्ली में आयोजित बिज़नेस स्टैंडर्ड मंथन कार्यक्रम के इतर कृत्रिम के रणनीति प्रमुख रवि जैन ने कहा, ‘किसी भी एआई मॉडल में भ्रम की समस्या हो सकती है। यह एक संभावना वाला मॉडल है। यही कारण है कि हम उपयोगकर्ताओं का फीडबैक लेने और उस आकड़े का उपयोग कर मॉडल में सुधार करने के लिए इसका बीटा प्रोग्राम लेकर आए हैं। लगभग हर हफ्ते हम देख रहे हैं कि उपयोगकर्ता जो भी शिकायत कर रहे हैं हम उसमें सुधार देख रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि अशुद्धियां दूर करने के लिए कृत्रिम तथ्यात्मक और प्रासंगिक आंकड़ों का उपयोग करते हुए अपने मॉडल को तैयार करने में भारी निवेश कर रही है।
जैन ने कहा, ‘हम अपना मॉडल तैयार करने के लिए भारतीय वेब से सभी प्रासंगिक और तथ्यात्मक आंकड़ों को देख रहे हैं। हमारे महत्त्वपूर्ण स्तंभों में से एक डेटा
की गुणवत्ता, मात्रा और प्रासंगिकता है और हम इन क्षेत्रों में निवेश कर रहे हैं।’
कृत्रिम इस साल जनवरी में भारत की पहली यूनिकॉर्न बन गई। तब उसने मैट्रिक्स पार्टनर्स इंडिया जैसे बड़े निवेशकों से 5 करोड़ डॉलर की शुरुआती रकम जुटाई थी। वह यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल करने वाली देश की पहली एआई कंपनी बनी और उसने देश की सबसे तेज यूनिकॉर्न बनने का खिताब भी हासिल किया।
कृत्रिम को अप्रैल 2023 में अग्रवाल और ओला एवं ओला इलेक्ट्रिक की मालिक एएनआई टेक्नोलॉजिज के बोर्ड सदस्य कृष्णामूर्ति वेणुगोपाल तेन्नेती ने शुरू किया था। जैन से जब पूछा गया कि बीटा प्रोग्राम से मिले फीडबैक के आधार पर कुछ उल्लेखनीय उपयोग के मामले क्या हैं तो उन्होंने कहा कि बहुत दिलचस्प रुझान हैं।
जैन ने कहा, ‘हम शिक्षा और कंटेंट क्रिएशन जैसे क्षेत्रों में इसके उपयोग को लेकर लोगों की काफी दिलचस्पी देख रहे हैं। मझोले और छोटे शहरों में हम कई सारे बहुभाषी ऐप्लिकेशन देख रहे हैं।’