भूषण पावर ऐंड स्टील की समाधान योजना खारिज करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश पर अब जेएसडब्ल्यू स्टील पुनर्विचार याचिका दायर करने वाली है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने यह बताया।
इस अदालती आदेश के नतीजों से चिंता में पड़ी सरकार सर्वोच्च स्तर पर मामले में हस्तक्षेप करने की तैयारी कर रही है। सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इसके लिए संबंधित सरकारी विभागों और मंत्रालयों से जानकारी ली जा रही है तथा मशविरा किया जा रहा है।
जेएसडब्ल्यू स्टील को इस बारे में आज एक ईमेल भेजा गया। लेकिन खबर प्रकाशित होने तक उसका कोई जवाब नहीं आया था। इस बीच आज ही कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने आगे की राह तय करने के लिए विमर्श किया और दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में तय समयसीमा का सख्ती से पालन करने पर जोर दिया। सूत्रों ने संहिता में किसी भी तरह के बदलाव की संभावना से इनकार किया। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने भी संहिता में कोई कमी नहीं बताई है बल्कि अपने आदेश में इसके प्रावधानों को सही बताया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने भूषण पावर ऐंड स्टील के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना शुक्रवार को खारिज कर दी थी और कंपनी के परिसमापन का आदेश दिया था। अदालत के फैसले के बाद जेएसडब्ल्यू स्टील का शेयर 5 फीसदी गिर गया मगर आज शेयर 1.18 फीसदी चढ़कर 967 रुपये पर बंद हुआ।
सूत्रों ने बताया कि जेएसडब्ल्यू स्टील को पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए 30 दिन मिले हैं और वह यह मियाद खत्म होने से ठीक पहले अपनी याचिका तैयार कर दाखिल कर सकती है। रिजर्व बैंक ने 12 सबसे बड़ी गैर निष्पादित परिसंपत्तियां समाधान के लिए भेजी थीं, जिनमें भूषण पावर ऐंड स्टील भी थी। कंपनी ने 47,200 करोड़ रुपये का कर्ज नहीं चुकाया था। 2021 में इसके लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की 19,350 करोड़ रुपये की समाधान योजना मंजूर कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा के पीठ ने शुक्रवार को अपने फैसले में कहा कि समाधान योजना गैर कानूनी है और यह आईबीसी के प्रावधानों से उलट है। इसके बाद विशेषज्ञों ने इस फैसले को समाधान और दिवालिया योजना के लिए करारा झटका बताया।
एसऐंडए लॉ ऑफिस में सीनियर पार्टनर विजय के सिंह ने कहा, ‘ समाधान पेशेवर और ऋणदाताओं की समिति को लापरवाही के साथ काम करने और सफल समाधान आवेदक के साथ मिलीभगत करने के मामले में जवाबदेह ठहराने के पर्याप्त प्रावधान आईबीसी में नहीं हैं। इससे ऋणदाताओं और शेयरधारकों के हित को नुकसान पहुंचता है।’
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था, ‘ऋणदाताओं की समिति जेएसडब्ल्यू की समाधान योजना को मंजूर करते समय वाणिज्यिक विवेक का उपयोग करने में विफल रही, जो आईबीसी और सीआईआरपी विनियमों के अनिवार्य प्रावधानों का घोर उल्लंघन था।’
सर्वोच्च न्यायालय ने समाधान पेशेवर की भी आलोचना की, जिसे दिवाला प्रक्रिया शुरू होने के बाद स्टील कंपनी की देखभाल का जिम्मा सौंपा गया था। अदालत ने कहा कि समाधान पेशेवर आईबीसी और सीआईआरपी विनियमों के तहत अपने वैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करने में पूरी तरह विफल रहा।