भारतीय कला के शानदार कामों की फेहरिस्त बनाना ज्यादा नहीं तो कम से कम इतना तो मुश्किल है, जितना यह अनुमान लगाना कि आम चुनावों का नतीजा क्या होगा।
खासतौर पर तब जब हमें सिर्फ 10 सबसे अहम पेंटिंगों को इसमें शामिल करना था। इस फेहरिस्त में ऐसे कामों को शामिल किया गया, जिन्हें आज से पहले कभी किसी ने न किया हो।
टैगोर की पेंटिंगों को हम कैसे छोड़ सकते हैं? अगर भूपेन कक्कड़ को शामिल करते हैं तो अर्पिता सिंह को कैसे भूल सकते हैं। हम कैसे आधुनिक काल की शुरुआत से पहले और आधुनिक पेंटिंगों को समकालीन पेंटिंगों के साथ एक ही जगह पर रख सकते हैं?
आखिर कुछ भी हो, यह फेहरिस्त तो तैयार करनी ही थी। इसके लिए हमारा पैमाना क्या हो, कीमत, प्रसंग, सामग्री? कला जगत के ही एक छोटे निर्णायक मंडल के साथ लगभग नामुमकिन इस काम को पूरा किया गया। इस सूची का फायदा तो तभी है जब यह मुख्यधारा में बहस का दौर शुरू कर पाने में कामयाब रहे।
1 एफ एन सूजा
डेथ ऑफ अ पोप
माध्यम : कैनवस पर ऑयल
वर्ष :1962
संग्रह : टेट, ब्रिटेन
इस बात में कोई शक नहीं है कि एफ एन सूजा भारत के सबसे अहम कलाकार हैं। एफ एन सूजा एक ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने ‘भारतीय’ की पूरी धारणा को ही बदल कर रख दिया। लंदन और पेरिस में नकदी की कमी झेल रहे उनके अपनों के लिए उन्होंने कैनवस पर रंग बिखेरे।
‘बर्थ’ यानी जन्म नीलामी में अब तक की उनकी सबसे महंगी पेंटिंग थी, जिसे टीना अंबानी ने क्रिस्टी में 10.6 करोड़ रुपये में नीलामी में बोली लगाकर खरीदा और गैलरी के मालिक अरुण वडेरा और कई अन्य लोगों ने ‘क्रुसिफिकेशन’ को बताया है। ‘डेथ ऑफ पोप’ बेशक शानदार काम है।
2 तैयब मेहता
सेलिब्रेशन
माध्यम :कैनवस पर ऐक्रेलिक
वर्ष :1985
संग्रह : निजी संग्रह
मेहता अपने ही काम को बिगाड़ने के लिए जाने जाते हैं, फिर चाहे वह बिक चुका हो। उन्हें सिर्फ इतना समझने की देर है कि वह अपने काम से खुश नहीं हैं। इब्राहिम अल्काजी ने उनकी पेंटिंगों के बारे में कहा था, ‘भावों के लिए मेहता के काम में कोई जगह नहीं है।’
यह बात उन्होंने 1959 में बातचीत के दौरान कही थी, हालांकि उन्होंने एक ओर बता भी कही थी, ‘ऐसी कला निराशा नहीं उम्मीदों की कला है।’ एक साल पहले उनकी महिषासुर पेंटिंग निलामी के दौरान 8 करोड़ रुपये की बिकी थी।
हो सकता है कि मूल्य के लिहाज से यह उनकी सबसे अहम पेंटिंग रही हो, लेकिन निर्णायक मंडल के मुताबिक नितिन भयाना के संग्रह में मौजूद उनकी ‘काली’ पेंटिंग, जिसे टेट को दे दिया गया था और पिछले साल वह वैलेनेशिया प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई, और ‘शांतिनिकेतन’, ‘डाइग्नल’ सीरीज भी काफी अहम थीं, लेकिन ‘सेलिब्रेशन’, जिसमें दबी और अंतर्विरोधी ऊर्जा को दिखाया गया, मेहता की शानदार पेंटिंग है।
3 एम एफ हुसैन
जमीन
माध्यम : कैनवस पर ऑयल
वर्ष : 1955
संग्रह : नैशनल गैलेरी ऑफ मॉर्डन आर्ट (एनजीएमए)
हुसैन अपने घोड़ों और राजनीतिक मामलों में इंदिरा गांधी और मदर टेरेसा पर काम को लेकर ज्यादा जाने जाते हैं। लेकिन एक बार उनके अहम कामों पर ध्यान दिया जाए तो वे दूसरे कलाकारों के मुकाबले काफी आगे हैं। अब तक उनके बेहतरीन काम के लिए ‘बिटवीन दी स्पाइडर ऐंड दी लैंप’ को जाना जाता है।
50 के दशक से उनकी ‘मैन’ पेंटिंग को काफी प्रसिध्दि मिली, हालांकि कई लोगों को उनकी ‘महाभारत’ सीरीज पसंद आई तो कुछ को ‘बैटल ऑफ गंगा ऐंड जमुना’। नितिन भयाना कहते है जमीन भारत का जिक्र करने वाला यह पहला काम है।
4 अमृता शेरगिल
ब्राइडज टॉयलेट
माध्यम :कैनवस पर ऑयल
वर्ष :1938
संग्रह :एनजीएमए
अमृता शेरगिल भारतीय आधुनिक कला का चेहरा थीं। इनकी मां हंगरी की रहने वाली थीं। अमृता उससमय भारत वापस लौटीं, जब दूसरे भारतीय कलाकर प्रेरणा हासिल करने के लिए पश्चिम की ओर रुख कर रहे थे। उनकी छोटी सी जिंदगी में कला से भी अधिक मुखर हो गई चकाचौंध, लेकिन अब इस समय वह कला के इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं।
कुछ विशेषज्ञों ने तो यह तक कहा कि नैशनल गैलरी ऑफ मॉर्डन आर्ट, दिल्ली में शेरगिल गैलेरी काफी खास है। हमेशा की तरह इस बार भी किसी एक बेहतरीन काम को चुनना काफी विवादास्पद रहा। भयाना ने विशुध्द रूप से भारतीयता को दर्शाने वाली ‘ब्रह्मचारी’, ‘साउथ इंडियन विलेज गोइंग टु दी मार्केट’ और ‘हिल वुमन’ को चुना लेकिन बिजनेस स्टैंडर्ड ने जिसे सबसे बढ़िया के ताज से नवाजा है, वह है, ‘ब्राइडज टॉयलेट’।
5 वी एस गायतोंडे
शीर्षक नहीं दिया गया
माध्यम :कैनवस पर ऑयल
वर्ष : 1971
संग्रह :एनजीएमए
कोई भी एक ऐसे कलाकार के बारे में क्या कह सकता है, जिनके पूरे काम को उन्होंने कोई नाम नहीं दिया हो। नाम की गैरमौजूदगी के बावजूद वे इतने अहम हैं कि कोई उन्हें ‘भूरी कलाकृति’ या ‘पीली रेखाओं से सजी पेंटिंग’ आदि कह सकता है।
गाइटोंडे उन शुरुआती कलाकारों में शामिल थे, जो भावों को कैनवास पर उकेरा करते थे, लेकिन वे खुद इस तरह का वर्गीकरण पसंद नहीं करते थे। बिना शीर्षकों के पेंटिंगों की वजह से मुख्यधारा में उनकी मौजूदगी बहुत यादगार नहीं रही। लेकिन गायटोंडे भारत के सबसे अहम कलाकारों में शामिल हैं। उनके कैनवस कला प्रेमियों के लिए प्रकाश स्रोत है, जो प्रतीकों और खूबसूरत लेखनी को रंगों, प्रकाश और कैनवस के टेक्सचर में तब्दील करने के पक्ष में हैं।
6 एस एच राजा
ला टेरे-2
माध्यम : कैनवस पर ऐक्रेलिक
वर्ष : 1987
इसे सोच पाना भी बहुत मुश्किल है कि राज कभी चर्च या लैंडस्केप या लोगों के पोट्रेट भी पेंट किया करते थे। हालांकि उन्होंने यूरोपीय कला को अपना आधार बनाया, जिसमें सूजा को भी महारत हासिल थी। लेकिन रजा कुछ ऐसा पेंट करना चाहते थे, जो भारत से जुड़ा हो। उनकी यह खोच ‘बिंदू’ से शुरू हुई यहां तक कि कुछ का मानना है कि वह खोज यहां खत्म हो गई।
इसके बारे में रजा का कहना है, ‘यह हिंदु आध्यात्मिक्ता का ही नहीं, बल्कि भारतीय कला, पवित्र और जीवन की जागृति का भी है।’ राजा का काम अहम भारतीय कामों में शामिल ही नहीं हुआ, बल्कि उनका केंद्र भी बना। राजा का काम देखने वालों में शामिल अरुण वडेरा का कहना है, ‘मां’, जिसका पूरा नाम ‘मां, मैं लौट कर कब आऊंगा?’
शानदार काम है, जबकि दिनेश वाजिरानी का कहना है कि ‘सतपुड़ा’ या ‘तपोवन’ काफी बढ़िया पेंटिंग हैं। हालांकि गैलेरी की मालकिन सुनैना आनंद का कहना है, ‘ला टेरे-2’ ऐसा काम है, जिसे न कभी दोबारा देखा और न सोचा गया।
7 राजा रवि वर्मा
लक्ष्मी
माध्यम : कैनवस पर ऑयल
वर्ष : 1890
संग्रह :गायकवाड परिवार, लक्ष्मी विला पैलेस, बड़ौदा
यह पेंटिंग लगभग 1890 की है। शायद भारत के लिए सबसे उल्लेखनीय कलाकार के रूप में अपना योगदान देने वाले इस कलाकार की ज्यादातर कलाएं नकारात्मक छवियों के जरिए ही जगजाहिर हो पाई है।
हालांकि शुरुआत में इस पेंटर की किसी भी कला को कोई खास तवज्जों नहीं मिल पाई थी लेकिन एक दशक बीत जाने के बाद उनकी पेंटिंग को जितनी तारीफ मिली है, शायद ही किसी अन्य भारतीय कलाकार को आज तक मिली होगी।
पोस्टर और प्रिंट पर उनके द्वारा उकेरी गई पेंटिंग आज भी लोगों के जहन में घर की हुई है। राजा राजीव वर्मा की पेंटिंग का माध्यम कैनवस पर ऑयल था। इस कलाकार की क्रिएटिविटी का कोई जवाब नहीं।
परंपरागत, पौराणिक या धार्मिक संदर्भों का इस्तेमाल कर देश भर के पूजे जाने वाली देवी-देवताओं, राजा-रानियों और परियों की पेंटिंग को जिस खूबसूरती के साथ उसे उकेरा है, वह निस्संदेह काबिले गौर है।
हालांकि बाद में उन्होंने प्रिंट पर पेंटिंग शुरू कर दी थी। राजीव वर्मा की पेंटिंग के संदर्भ में नेविल तुली बताते हैं कि इनकी तस्वीरें अन्य पेंटरों के मुकाबले और अधिक प्रभावशाली दिखाई पड़ती है और यही वजह है कि इनके द्वारा बनाई गई लक्ष्मी की तस्वीर पर इतनी प्रसिध्दि मिली है। पेंटिंग में जिस तरह ये तस्वीरों की आंखें उकेरते हैं, वह बेहद कमाल की होती हैं।
8 नंदलाल बोस
शिवा ड्रिंकिंग दी वल्ड्र्स पॉयजन
माध्यम : लाइन वॉश और वॉटर कलर
वर्ष :1933
संग्रह : एनजीएमए
यह पेंटिंग 1933 में बनाई गई थी। इसकी एक पेंटिंग नैशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट और दूसरी ओसियान आर्काइव ऐंड लाइब्रेरी कलेक्शन में संग्रह के रूप में रखी हुई है। इसमें कोई शक नहीं नंदलाल बोस देश के पहले और सच्चे नवयुग पेंटर थे।
उनके नाम से आज भी अधिकांश लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं। मालूम हो कि नंदलाल बोस की कलाकृतियों को भारतीय संविधान को चित्रित करने के लिए इस्तेमाल में लाया गया था। यह एक ऐसे पेंटर थे जिन्होंने पेंटिंग के कई माध्यमों का इस्तेमाल किया।
इन्होंने अपनी पेंटिंग के माध्यम से आधुनिक आंदोलनों के विभिन्न स्वरूपों, सीमाओं और शैलियों को उकेरा, जिसे शांतिनिकेतन में बड़े पैमाने पर रखा गया। निस्संदेह नंदलाल बोस की पेंटिंग में एक अजीब सा जादू था जो किसी को भी बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उनकी पेंटिंग में खूबसूरती की एक अमिट छाप दिखाई पड़ती थी।
बोस की पेंटिंग तकनीक भी कमाल की थी जिसका कोई जवाब नहीं है। नंदलाल की पेंटिंग का एशिया में बहुत प्रभाव था। हालांकि उनकी पेंटिंग को पश्चिम में भी काफी तवज्जो मिला है।
9 चित्तप्रसाद
हालांकि ऐसे देखा जाए तो एक डॉक्यूमेंटर कलाकार के रूप में इस कलाकार को वह स्थान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे। सच तो यह है कि चित्तप्रसाद इससे कहीं अधिक प्रसिध्दि के हकदार थे। चित्तप्रसाद एक सच्चे कलाकार थे जिन्होंने अपने आसपास के अदृश्य चीजों को ग्राफिक तस्वीरों में रिकॉर्ड किया और उसे पेंटिंग के माध्यम से उकेरा।
सच मानिए, इनकी पेंटिंग इतनी आकर्षक है कि आप देखते रह जाए। मालूम हो कि चित्तप्रसाद अपनी जिंदगी के अधिकांश वर्षों तक नजरअंदाज किए जाते रहें। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह ऐसी तस्वीरें उकेरते थे जो किसी सुंदरता को नहीं बल्कि उनके दर्द को बयां करती थी।
10 भूपेन कक्कड़
मैन विद अ बुके ऑफ प्लास्टिक फ्लावर
माध्यम : कैनवस पर ऑयल
वर्ष : 1975
संग्रह : निजी संग्रह
भारत में डेविड हॉकनी के रूप में जाने जाने वाले भूपेन कक्कड़ न केवल प्रयोगों और अनुभवों के प्रतिनिधि हैं बल्कि उससे कहीं बढ़ कर एक महान कलाकार हैं। शुरुआत में उन्होंने खुद को ऑर्ट फैक्लटी के साथ जोड़े रखा और उसके बाद बड़ौदा के कला समुदाय से जुड़े रहें।
इनकी तस्वीरें कुछ इस तरह की होती हैं कि एक ही फ्रेम में बहुत सारी कहानियां कहती तस्वीरें होंगी लेकिन उस तस्वीरों का समग्र विषय किसी एक ही बिंदु पर केंद्रित होगा। निस्संदेह ऐसी तस्वीरें व पेंटिंग बेहद आकर्षक व काबिले तारीफ होती हैं। कक्कड़ की पेंटिंग की खासियत है कि वे लोगों के दिलों में जल्द ही घर बना लेती हैं।
कक्कड़ की ज्यादातर कलाकृतियां कारोबारी लोगों से जुड़ी होती हैं। हालांकि कक्कड़ उम्र के ज्यादातर सालों में एक अहम कलाकार थे, लेकिन लोगों की जानकारी से दूर बने रहें। पर जब उन्होंने खुद को समलैंगिक के तौर पर घोषित कर दिया तभी उनके बारे में लोगों ने सुना। इसके बाद वह समलैंगिक मुद्दों से जुड़े मामलों पर जोरशोर से कलाकृतियां बनाते रहें।
