कहते हैं कि जब कोई गम बहुत सताए तो फिल्मों की रुमानी दुनिया, काफी हद तक उस गम को भुलाने में मददगार साबित होती है।
इसीलिए बॉलीवुड इंडस्ट्री के दिग्गज यह तर्क दे रहे हैं कि रोजाना की मुश्किलों को झेलने वाला आदमी फिल्में देखना नहीं छोड़ सकता क्योंकि अपने दुख-दर्द को भुलाने का यह बेहद अच्छा जरिया है।
लेकिन दुनिया भर में फैली मंदी का कहर लगभग हर सेक्टर पर पड़ रहा है तो ऐसे में बॉलीवुड अछूता कैसे रह सकता है? मशहूर फिल्मकार मधुर भंडारकर, परसेप्ट पिक्चर कंपनी की एक फिल्म ‘जेल’ का निर्देशन कर रहे हैं जिसका बजट 16 करोड़ रुपये तय किया गया था लेकिन भंडारकर को 4 करोड़ रुपये बजट कम करने के लिए कहा गया।
फिलहाल यह फिल्म 12 करोड़ रुपये में बन रही है। मधुर का कहना है, ‘बॉलीवुड की हालत बहुत खराब है। इस वक्त तो न बड़ी बजट की फिल्में चल पा रही हैं और न छोटे बजट की। चुनाव और आईपीएल ने भी बॉलीवुड कारोबार का जायका बिल्कुल बिगाड़ दिया है। जून-जुलाई के बाद ही बॉलीवुड के टे्रंड को समझा जा सकता है।’
कैसा है बदलाव
वक्त के साथ बॉलीवुड में भी बदलाव का मंजर देखने को मिल रहा है। साल के शुरुआती तीन महीने में 55 फिल्में आई जिसमें से 22 फिल्में डब होकर आई। इन फिल्मों में बहुत कम फिल्में थीं जिनका कारोबार बेहतर रहा और दर्शकों ने फिल्म की सराहना की।
इस वक्त आर्थिक मंदी के खौफ से बड़े बैनर ज्यादा बजट वाली फिल्में बनाने से परहेज कर रहे हैं लेकिन छोटे बैनर और छोटे फिल्मकार चांदी कांट रहे हैं। कॉर्पोरेट जगत, रुपहले पर्दे के कारोबार में ज्यादा मुनाफे की गुंजाइश को देखते हुए फिल्म निर्माण के क्षेत्र में उतरे लेकिन आर्थिक मंदी ने उनकी रणनीति पर पानी फेर दिया।
हालात ऐसे बन रहे हैं कि मेगाबजट की फिल्मों को लेकर बहुत ज्यादा संदेह है। हाल के दिनों में गजनी के अलावा किसी भी मेगाबजट फिल्म ने बेहतर कारोबार नहीं किया। बड़े बजट और बड़े स्टार के बावजूद चांदनी चौक टू चाईना, बिल्लू का कारोबार बेहतर नहीं रहा वहीं रब ने बना दी जोड़ी का कारोबार भी औसत ही रहा।
लेकिन छोटे बजट वाली फिल्में देव डी, लिटिल जीजू, ओए लकी, लकी ओए, ए वेडनसडे, आमिर ने लागत के मुकाबले बेहतर कारोबार किया। फिल्म निर्माता और निर्देशक करण राजदान कहते हैं कि यह बॉलीवुड के लिए दिलचस्प हो सकता है क्योंकि यह साल पहले के मुकाबले बॉलीवुड में ट्रेंड के बदलाव का साल है।
बजट पर असर
मंदी को देखते हुए बड़े फाइनेंसर दांव लगाने के लिए तैयार नहीं हैं। इस साल दर्शकों को बड़े बजट की फिल्में कम ही देखने को मिलेंगी, मसलन विपुल शाह की लंदन ड्रीम्स, करण जौहर की माई नेम इज खान, अनुराग बासु की काइट्स।
इस साल रिलीज होने वाली साजिद नाडियाडवाला की फिल्म कमबख्त इश्क भी एक बड़े बजट की फिल्म है जिसमें हॉलीवुड के बड़े सितारे भी काम कर रहे हैं। कई बड़ी बजट की फिल्में बनाने वाले निर्माताओं को पैसे की कमी के झंझट से जूझना पड़ रहा है। गदर जैसी फिल्में बनाने वाले अनिल शर्मा, सलमान खान को लेकर ‘वीर’ बना रहे हैं।
वीर की बजट के बारे में वह कहते हैं, ‘यह बहुत बड़े बजट की फिल्म है, लेकिन अब इसमें कोई कटौती करने की भी गुंजाइश नहीं है। लेकिन भविष्य में हमें सोच-समझ कर ही कदम उठाना होगा’ धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले करण जौहर भी वेकअप सिड जैसी छोटे बजट की फिल्में बना रहे हैं। हाल ही में रिलीज हुई लिटिल जीजू जो महज 2 करोड़ की फिल्म थी इसने भी अच्छा कारोबार किया।
छोटी बजट की फिल्में अब मंदी के इस दौर में बॉलीवुड को राहत दे रही हैं। मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल भी छोटे बजट की एक फिल्म बना रहे हैं वह इस ट्रेंड को एक सुधार के तौर पर देखते हैं। उनका कहना है, ‘कॉर्पोरेट सेक्टर ने बॉलीवुड इंडस्ट्री के गणित को बिगाड़ने का काम किया है लेकिन अब लोग अच्छी कहानी पर ध्यान देंगे और कम बजट में अच्छी फिल्में बनाएंगे।’
इस उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो इस साल 2 करोड़ से लेकर 25 करोड़ तक की फिल्में बन सकती हैं। के्र जी फोर जैसी फिल्म बनाने वाले जयदीप सेन की फिल्म स्क्रिप्ट तैयार होने के बावजूद फंड की वजह से रुकी है। जयदीप सेन मंदी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।
वहीं निर्देशक और अदाकार रजत कपूर का कहना है, ‘मुझे लगता है कि मंदी ने हर निर्माता निर्देशकों को यह सबक दिया है कि बड़े बजट के बजाए स्क्रिप्ट पर बेहतर काम करके ही फिल्म को सफल बनाया जा सकता है।’
कैसी है रणनीति
मंदी का असर बड़े फिल्मकारों और फिल्म प्रोडक्शन हाउस पर भी पड़ रहा है, ऐसे में नई रणनीति के तहत काम करने के लिए मजबूर हैं बॉलीवुड के दिग्गज। करण जौहर ने यश चोपड़ा से किनारा कर धर्मा प्रोडक्शन के वितरण का अधिकार यूटीवी को दिया है। वहीं यूटीवी स्पॉट ब्वॉय प्रोडक्शन के नाम से छोटी फिल्में बनाने की कवायद में जुटी है।
बिग पिक्चर्स ने भी सुधीर मिश्रा प्रोडक्शन के साथ कश्मीर की पृष्ठभूमि पर सिकंदर जैसी फिल्म बनाई है। अब महंगी फिल्में, महंगे कलाकार और महंगे निर्देशकों के बजाय कम बजट में अच्छे स्क्रिप्ट के साथ फिल्में बनाने वालों का बढ़ रहा है बोलबाला।
कुछ बड़े कलाकारों ने वक्त का तकाजा देखते हुए अपनी फीस में कटौती करने का फैसला किया है। बड़े स्टार के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने के बजाय निर्देशक नील नितिन, शाहिद और रणवीर जैसे अदाकारों को तरजीह दे रहे हैं। वहीं कम बजट की फिल्में बनाने वाले नीरज पांडेय, राजकुमार गुप्ता, रजत कपूर, पीयूष झा जैसे निर्देशकों की अपनी अलग पहचान बनी है।
मधुर भंडारकर उत्साह से ही कहते हैं, ‘आपको मानना ही पड़ेगा कि अब इन्हीं कलाकारों का जमाना आ रहा है। यकीनन इस वक्त अच्छी स्क्रिप्ट के साथ काम करने वाले प्रतिभाशाली निर्देशकों को अपना हुनर दिखाने बेहतर मौका है।’
हालांकि मशहूर फिल्मकार महेश भट्ट इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं कि बॉलीवुड में कम बजट की फिल्मों का दौर होगा। उनका कहना है, ‘कम बजट की फिल्म की स्क्रिप्ट दमदार हो तभी चलेगी और यही बात बड़े बजट की फिल्म पर भी लागू होती है। लेकिन यह भी सच है कि इस उद्योग पर मंदी का असर साफतौर पर देखा जा रहा है।’
फिल्म कारोबार के विशेषज्ञ तरण आदर्श का कहना है कि फिल्में ज्यादातर फ्लॉप हो रही हैं। ऐसे में मध्यम या कम बजट की फिल्में बनाना ही एक विकल्प बचता है। हालांकि इस इंडस्ट्री से जुड़े कुछ लोग मानते है कि बड़े फिल्मकार मंदी का हौवा खड़ा कर रहे हैं।
… उम्मीद की लौ है कायम
बिग सिनेमाज का कोई प्रोजेक्ट स्थगित नहीं हुआ है और हम जल्द ही दर्शकों के लिए मेगाप्लेक्स लेकर आ रहे हैं। – तुषार ढींगरा, सीओओ, बिग सिनेमाज
चुनाव, आईपीएल और मंदी से मल्टीप्लेक्स उद्योग का कारोबार कमजोर होने के संकेत मिल रहे हैं। लेकिन मल्टीप्लेक्स उद्योग से जुड़े लोग मंदी से बहुत ज्यादा परेशान नहीं दिख रहे हैं। आईनॉक्स के प्रमुख उत्पल आचार्य का कहना है, ‘अगर अच्छी फिल्में आएंगी तो मंदी का असर मल्टीप्लेक्स के कारोबार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
रब ने बना दी जोड़ी, गजनी और स्लमडॉग करोड़पति के साथ ही छोटे बजट की देव डी और लिटिल जीजू ने भी बेहतर कारोबार किया।’ इस साल के शुरुआती तीन महीने में फिल्में तो बहुत आई हैं लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्में अपना जलवा दिखाने में बहुत कामयाब नहीं रहीं। फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लेक्स के बीच टिकट की कमाई के बंटवारे को लेकर विवाद परवान चढ़ चुका है। लेकिन कुछ इस उद्योग से जुड़े लोगों को कुछ उम्मीदें भी हैं।
बेहतर मौका
मल्टीप्लेक्स उद्योग को परोक्ष रुप से मंदी का फायदा मिल रहा है। बिग सिनेमाज के सीओओ तुषार ढींगरा कहते हैं, ‘मुल्क में मल्टीप्लेक्स के विस्तार से बेहतर मुनाफे की संभावनाएं बन रही हैं। इस वक्त रियल एस्टेट की कीमतों में गिरावट से हमें फायदा ही होगा। इस वक्त हम मनमाने दाम के साथ समझौता नहीं करेंगे।’ अब छोटे और मझोले शहरों में भी मल्टीप्लेक्स का विस्तार हो रहा है।
बिग सिनेमाज 10 से 12 मेगाप्लेक्स खोलने की योजना बना रही है। बिग सिनेमाज के सीईओ तुषार ढींगरा का कहना है, ‘बिग सिनेमाज का कोई प्रोजेक्ट बंद नहीं होगा। मुंबई में मई महीने में मेगाप्लेक्स दर्शकों के लिए मौजूद होगा।’ फिल्म कारोबार विशेषज्ञ तरण आदर्श का कहना है कि मल्टीप्लेक्स का भविष्य आने वाले दिनों में बेहतर ही होगा।
आईनॉक्स हैदराबाद, इंदौर और बेंगलुरु में भी मल्टीप्लेक्स खोलने की तैयारी कर रही है। उत्पल आचार्य के मुताबिक मल्टीप्लेक्स के विस्तार की प्रक्रिया धीमी पड़ गई है। पीवीआर आने वाले दिनों में 4-5 शहरों में 40 स्क्रीन बनाने की योजना भी है। पीवीआर लिमिटेड के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर गौतम दत्ता का कहना है, ‘भविष्य में आने वाले प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पडेग़ा इसमें फायदा होने की ही गुंजाइश है। हालांकि निवेश के अनुपात में मुनाफे पर थोड़ा संदेह है।’
मंदी का असर
इस हकीकत को सभी स्वीकार रहे हैं कि मंदी, चुनाव और आईपीएल की वजह से कई फिल्में रिलीज नहीं हो पा रही है और दर्शकों की तादाद में भी कमी आ रही है। सीडी डीवीडी पर फिल्में देखने वाले दर्शक भी हैं। लेकिन तुषार ढींगरा का कहना है, ‘फिल्म अच्छी है तब दर्शक मल्टीप्लेक्स में ही फिल्में देखने का लुत्फ उठाते हैं।’
वैसे इस साल फिल्में भी कम ही रिलीज होंगी क्योंकि मल्टीप्लेक्स विवाद, सेटेलाइट अधिकार से मिलने वाले पैसे में कमी और फिल्मों के लिए फंड का इंतजाम न हो पाने की वजह से ऐसे हालात बन रहे हैं। केपीएमजी की एक रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2008 में 747 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन थे और यह इस साल बढ़कर 850 स्क्रीन होने वाले हैं। वर्ष 2010 तक यह तादाद बढ़कर 1000 स्क्रीन तक हो सकती है।
विवाद का मसला
मल्टीप्लेक्स के साथ फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स और प्रोडयूसर्स के साथ विवाद कमाई की हिस्सेदारी को लेकर है। मल्टीप्लेक्स का कहना है कि फिल्म निर्माताओं को सैटेलाइट, म्युजिक, होम वीडियो अधिकार के जरिए काफी फायदा होता है।
उत्पल आचार्या का कहना है कि फिल्म हिट हो तब ज्यादा हिस्सेदारी की मांग जायज है। लेकिन अगर फिल्म फ्लॉप हो रही है तो कमाई में ज्यादा हिस्सेदारी की मांग करना ठीक नहीं है।
