ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) के जरिए दिए जाने वाले सभी ऑर्डर को अल्गोरिदमिक यानी अल्गो ऑर्डर मानने के बाजार नियामक सेबी के प्रस्ताव ने सॉफ्टवेयर व ऐप्लिकेशन की ट्रेडिंग से जुड़े टेक फर्मों को परेशान कर दिया है।
कई फर्में नियामक से संपर्क करने की योजना बना रही हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह कदम नवोन्मेष पर असर डालेगा और बाजार को पीछे धकेल देगा।
देश की सबसे बड़ी ब्रोकिंग फर्म जीरोधा के सीईओ नितिन कामत का मानना है कि अगर यह प्रस्ताव क्रियान्वित हुआ तो ब्रोकरों को एपीआई की पेशकश बंद करनी पड़ सकती है।
उन्होंने कहा, भारत दुनिया भर मेंं टेक कैपिटल के तौर पर उभर रहा है। इसका मतलब तकनीक को तवज्जो दी जाने वाली दुनिया मेंं दो कदम पीछे खींचने जैसा होगा। एपीआई की अनुमति न देने से गैर-विनियमित अल्गो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की समस्या का समाधान नहींं निकलेगा। यह ब्रोकर एपीआई से थर्ड पार्टी ऑटोमेशन टूल की तरफ चला जाएगा, जो ब्रोकरों के नियंत्रण में नहीं है।
ऑटोमेटेड ट्रेडिंग सॉल्युशंस विकसित करने वाली फर्म रेन टेक्नोलॉजिज के सह-संस्थापक हरीश अग्रवाल ने कहा, एपीआई के जरिए आने वाले सभी ऑर्डर को अल्गो ट्रेड मानने का कोई मतलब नहीं बनता है। एपीआई के कई उपयोग हैं और अल्गो ट्रेडिंग के बाहर भी इसकी वैल्यू है। वास्तव में अल्गो इस बाजार के काफी छोटे हिस्से की भरपाई करता है। हम अब निश्चित तौर पर एपीआई ट्रेडिंग फॉर अल्गोरिदम को लेकर भ्रमित हैं।
एपीआई एक तरह का सॉफ्टवेयर है, जो एक दूसरे से बातचीत करने के लिए दो ऐप्लिकेशन की इजाजत देता है। हाल के वर्षो में थर्ड पार्टी फर्मों ने एपीआई विकसित की है जिसे जीरोधा या एचडीएफसी सिक्योरिटीज के ट्रेडिंग ऐप्लिकेशन से जोड़ा जा सकता है। एक बार इसे लगा लेने के बाद एपीआई किसी ट्रेडिंग अकाउंट में कई तरह के काम करने के लिए अधिकृत हो जाता है मसलन खरीद व बिक्री का ऑर्डर देना, उसे रद्द करना आदि।
उदाहरण के लिए स्मॉलकेस व वेल्थबास्केट्स जैसी फर्मों ने एक दर्जन से ज्यादा ब्रोकरेज फर्मों के साथ गठजोड़ किया है और उन्हें कई ट्रेडिंग स्ट्रैटिजी की पेशकश करती है। बताया जाता है कि ऐसे प्लेटफॉर्म के 50 लाख यूजर हैं और इसके जरिए बाजार में 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा लाने में मदद मिली है।
डीएसके लीगल के सहायक पार्टनर सौरभ मिस्त्री ने कहा, मोटी कमाई ने कई ब्रोकरों व थर्ड पार्टी प्लेटफॉर्म को अपने रिटेल क्लाइंटों को एपीआई की पेशकश करने को प्रोत्साहित किया है, जिसका इस्तेमाल निवेशक अपने ट्रेड को स्वचालित बनाने में करते हैं। गैर-विनियमित या बिना मंजूरी वाले अल्गो बाजार के लिए जोखिम पैदा करते हैं और अल्गो रणनीति के नाकाम होने के समय खुदरा निवेशकों को भारी नुकसान हो सकता है। ऐसे में सेबी का चर्चा पत्र स्वागत योग्य है क्योंंकि माना जा रहा है कि पारदर्शिता से जुड़े कदम लागू किए जाएंगे।
एनएसई के आंकड़ों के मुताबिक, नकदी बाजार का करीब 14 फीसदी वॉल्यूम अल्गो के जरिए आता है। हालांकि उद्योग के प्रतिभागी अल्गो की हिस्सेदारी 40 से 45 फीसदी बताते हैं क्योंंकि कई अनधिकृत अल्गो भी मौजूद हैं।
