उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अगर कोई भारतीय कंपनी किसी विदेशी कंपनी से सॉफ्टवेयर खरीदती है तो स्रोत पर कर कटौती का कोई दायित्व नहीं बनता है। न्यायालय ने इस सिलसिले में आयकर विभाग का तर्क खारिज कर दिया है।
इस फैसले से सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स, आईबीएम, हेवेलेट पैकर्ड, एमफेसिस, सोनाटा सॉफ्टवेटर लिमिटेड, जीई इंडिया व कई अन्य कंपनियों का कर विभाग से लंबे समय से चल रहे विवाद का समाधान हो गया है।
न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, हेमंत गुप्ता और बीआर गवली के पीठ ने फैसले में कहा है, ‘भारत में में रह रहे अंतिम उपभोक्ताओं/वितरकों द्वारा प्रवासी कंप्यूटर सॉफ्टवेयर विनिर्माताओं/आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान की गई राशि, जिसमें रीसेल/कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल ईयूएलए (अंतिम उपभोक्ता लाइसेंस समझौते)/वितरण समझौते के माध्यम से करते हैं, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में कॉपीराइट के इस्तेमाल के लिए किया गया रॉयल्टी भुगतान नहीं है।’
इस मामले को साफ करते हुए नांगिया एंडरसन के चेयरमैन राकेश नांगिया ने कहा कि आयकर विभाग ने गैर प्रवासियों को सॉफ्टवेयर खरीद के लिए किए गए भुगतान को व्यापकर रूप से रॉयल्टी के रूप में चिह्नित किया था। नांगिया ने कहा कि वहीं दूसरी तरफ करदाताओं का तर्क था कि सॉफ्टवेयर की बिक्री पर इस तरह का भुगतान कारोबारी आमदनी की प्रकृति का है, जो प्रवासी हाथों में जाता है।
कंपनियों का तर्क था कि भारत में प्रवासी विक्रेता का स्थायी प्रतिष्ठान/बिजनेस कनेक् शन नहीं होता है और ऐसे कारोबारी आमदनी पर भारत में कर नहीं लग सकता।
इस मसले पर पहले भी कई न्यायालयों में बहस हो चुकी थी।
इसमें दो महत्त्वपूर्ण व टकराव वाले नियम आए। सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स मामले में कर्नाटक उच्त न्यायालय ने राजस्व विभाग के पक्ष में फैसला दिया था और दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला इरिक्सन के मामले में करदाताओं के पक्ष में था।
इसके बाद तमाम न्यायालयों ने इस मसले पर अलग विचार दिए और इसकी वजह से करदाताओं के मन में बहुत भ्रम और अनिश्चितता की स्थिति बन गई।