विदेशी मुद्रा उल्लंघन कानून (फेरा) में फंसे करीब 3500 लोगों को राहत देने के लिए सरकार कदम उठाने जा रही है।
इसके लिए सरकार ने रिजर्व बैंक से कहा है कि वह इस प्रकरण में लंबित मामलों की समीक्षा करे। साथ ही पूछा है कि क्या फेरा के मामलों को अपेक्षाकृत ज्यादा उदार कानून विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के जरिए सुलझाया जा सकता है? अगर ऐसा हुआ तो फेरा में फंसे लोग आपराधिक मुकदमों से बच जाएंगे और केवल आर्थिक जुर्माना भर कर मुक्त हो जाएंगे।
सूत्रों के अनुसार, वैसे सरकार की यह सलाह सभी मामलों में लागू नहीं होगी और रिजर्व बैंक अलग-अलग इन मामलों की समीक्षा करेगा। सरकार चाहती है कि बैंक ऐसे मामलों की जांच करे, जिनमें विदेशी मुद्रा प्रबंधन का बड़ा लेन-देन नहीं है या फिर विदेशी मुद्रा के भुगतान के छोटे-छोटे मामले हैं। बैंक ऐसे मामलों को सहेजने और इनमें शामिल विदेशी मुद्रा की राशि के आकलन में जुट भी गया है।
अधिकारियों ने साफ किया कि इसका मतलब यह नहीं होगा कि इससे फेरा के मामले अपने आप खत्म हो जाएंगे। अगर रिजर्व बैंक को लगेगा कि कानून का किया गया उल्लंघन बहुत बड़ा नहीं है तो उसकी राय को जांच के लिए अदालत भेजा जाएगा। ऐसे हालात में आरोपित फेमा के तहत जुर्माना भरकर छूट सकता है और उसे फेरा का सामना नहीं करना पड़ेगा।
फेरा को हटाने के लिए लाए गए विधेयक में कहा गया था कि फेरा के तहत किए गए सभी अपराधों पर फेरा के प्रावधान ही लगेंगे, भले ही कानून को हटा लिया गया है। नजीर के तौर पर वे थाईलैंड के प्रवासी भारतीय एस. चावला के लंबे समय से लटके शेयर हस्तांतरण मामले का उदाहरण देते हैं। चावला ने कैथोलिक सीरियन बैंक में 38 फीसदी हिस्सेदारी हासिल की थी। चूंकि उस पर फेरा का मामला था लिहाजा सौदे को इजाजत नहीं दी गई।
हाल ही में रिजर्व बैंक और प्रवर्तन निदेशालय ने शेयर हस्तांतरण को मंजूरी दी है और अपनी राय सुप्रीम कोर्ट को भेज दी है। पहले फेरा के मामले देखने और सन 2000 से फेमा के तहत नियमन देखने वाले प्रवर्तन निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस पर टिप्पणी से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकारी एजेंसी पुराने कानून, यानी फेरा से संबंधित किसी भी मामले की जांच नहीं कर रही है।
क्या है फेरा?
फेरा मूल रूप से 1947 में लाया गया था। अप्रैल 1956 तक इसके तहत विदेशी मुद्रा नियंत्रण के मामलों की जांच रिजर्व बैंक के अधीन विदेशी मुद्रा नियंत्रण विभाग का प्रवर्तन विभाग करता रहा। हालांकि बाद में वित्त मंत्रालय में प्रवर्तन इकाई बना दी गई, जो यह काम देखने लगी। इसी इकाई को बाद में प्रवर्तन निदेशालय का नाम दिया गया।
क्यों पड़ी जरूरत?
देश की सारी विदेशी मुद्रा सरकार की संपति है लिहाजा उसे तुरंत रिजर्व बैंक को सौंपना चाहिए।
यदि किसी केपास विदेशी मुद्रा पायी जाती तो उसे इस कानून के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ता था।
फेरा के बाद आया फेमा
साल 2000 में फेरा की जगह फेमा ने ली।
इसके तहत आपराधिक दंड की बजाय आर्थिक जुर्माने का प्रावधान किया गया।
कितना जुर्माना
बड़ी राशि होने पर पायी गयी राशि का दोगुना जुर्माना
छोटी राशि होने पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना
बार-बार इस अपराध को दोहराने पर पहले अपराध के दिन से ही 5000 रुपये रोज तक का जुर्माना।