पिछले साल बड़े जोर शोर से कई दिग्गजों ने आईपीएल की टीमें खरीदी थीं। मोटी रकम लगाने के बाद जाहिर है इनका मकसद भी मोटा मुनाफा कमाना ही था।
लेकिन इनको पहले से ही अंदाजा था कि आईपीएल चाहे कितना ही सफल क्यों न हो जाए, शुरुआती सालों में इन्हें मोटा मुनाफा नहीं होने जा रहा और यह बात काफी हद तक सही भी साबित हुई क्योंकि पिछले साल दो टीमों को छोड़कर बाकी टीमों को घाटा ही उठाना पड़ा।
अब जब आईपीएल दक्षिण अफ्रीका कूच कर गया है तब इन टीम मालिकों के खर्चे में और बढ़ोतरी होना बिलकुल तय है। ऐसे में घाटे को कम करना और अपनी गाड़ी को मुनाफे की पटरी पर लाना ही इस वक्त इनके एजेंडे में सबसे ऊपर है।
शाहरुख खान की कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) पिछले साल प्रदर्शन के लिहाज से भले ही नीचे से तीसरे पायदान पर रही हो लेकिन मुनाफा कमाने के मामले में यह टीम अव्वल रही थी। इसके अलावा मुनाफा कमाने वाली दूसरी टीम थी जयपुर की राजस्थान रॉयल्स।
दरअसल कारोबार जगत के दिग्गज अपने कौशल से जो नहीं कर पाए। शाहरुख ने अपने स्टारडम से जरूर उसको हासिल कर लिया। अपनी छवि के दम पर उन्होंने केकेआर पर 45 करोड़ रुपये का दांव लगाने वाले प्रायोजक ढूंढ ही लिए। वहीं राजस्थान रॉयल्स अपनी कम लागत और बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर मुनाफा कमाने में कामयाब रही।
अगर स्टारडम ने शाहरुख को सहारा दिया तो प्रीति जिंटा को यह नहीं बचा पाया। चंडीगढ़ की उनकी टीम किंग्स इलेवन पंजाब भी घाटा उठाने वाली टीमों की फेहरिस्त में शामिल थी। केकेआर के मनीष थोरवाल का कहना है, ‘अगर आपका ब्रांड मजबूत है तो आप कमाई कर सकते हैं। वैसे तो कमाई के कई जरिये हैं लेकिन हमारा ध्यान प्रायोजकों के जरिये कमाई पर ही मुख्य रूप से लगा है।’
वैसे प्रायोजकों के अलावा स्टेडियम के गेट पर लगने वाले विज्ञापन, स्थानीय स्पाँसरशिप, लाइसेंसिंग, टिकट बिक्री और प्रीमियम सीटिंग के जरिये भी फ्रैंचाइजी कमाई कर सकते हैं लेकिन इनका प्रायोजकों से कमाई पर ही इनका मुख्य रूप से जोर होता है क्योंकि प्रायोजक मोटी रकम देते हैं। लेकिन इस बार यही प्रायोजक टीमों को धोखा देते दिखाई पड़ रहे हैं।
दरसअल पिछले साल तक जो मुख्य प्रायोजक 12 से 15 करोड़ रुपये दे रहे थे अब 8 से 10 करोड रुपये से ज्यादा देने के मूड में नहीं दिख रहे। असल में प्रायोजकों के साथ-साथ विज्ञापनदाताओं के दिमाग में विदेश में आईपीएल की सफलता को लेकर संदेह पैदा हो गया है।
रही सही कसर विदेश में होने वाले आयोजन ने पूरी कर दी है। इससे स्टेडियम में टिकट बिक्री और इनग्राउंड विज्ञापनों के जरिये होने वाली आमदनी पर फर्क पड़ेगा। इसके अलावा विदेश में रहने और खाने-पीने पर होने वाले खर्च में भी इजाफा हो जाएगा। ऐसे में अपने घाटे को काबू में करने का इन टीम मालिकों पर काफी दवाब है।
हालांकि बीसीसीआई ने कहा है कि विदेश में आयोजन से जितना खर्च इन टीम मालिकों पर पड़ेगा, वह खुद ही उठाएगा। लेकिन फ्रैंचाइजियों के लिए उम्मीद की किरणें भी कम नहीं हैं। आईपीएल के प्रसारण अधिकार दोबारा बेचने से हर टीम मालिक के हिस्से में 25 करोड़ रुपये आएंगे।
पहले पांच साल तक केंद्रीय स्पांसरशिप का 60 फीसदी और मीडिया अधिकारों की 80 फीसदी रकम टीम मालिकों को दी जाएगी। आईपीएल-2 में टीम मालिक विज्ञापनों और मार्केटिंग के खर्चे में भी कटौती करने जा रहे हैं, जिस पर पिछले साल 15 से 20 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।
मिसाल के तौर दिल्ली डेयरडेविल्स ने अक्षय कुमार और मुंबई इंडियंस ने ऋतिक रोशन को स्टेडियमों में भीड़ खींचने के लिए 5-5 करोड़ रुपये का भुगतान किया था, इस दफे ऐसे अभियान नहीं चलाए जा रहे हैं। आईपीएल में किया गया निवेश दीर्घकालिक निवेश की तरह ही है, जिसका असर आगे नजर आएगा। जैसे कि दो साल बाद टीम मालिक शेयर बाजार में सूचीबद्ध होकर या फिर वेंचर फंड के जरिये भी पैसे जुटा सकते हैं।
शाहरुख खान अपने स्टारडम के दम पर कोलकाता नाइट राइडर्र्स के लिए 45 करोड़ रुपये के विज्ञापन जुटाने में कामयाब रहे थे। दूसरी ओर कम लागत और बेहतरीन सफलता की वजह से जयपुर की राजस्थान रॉयल्स केकेआर के बाद मुनाफा कमाने वाली दूसरी टीम थी। इस साल खर्च बढ़ने के बावजूद बीसीसीआई ने टीम मालिकों का घाटा कुछ कम करने का वायदा किया है। प्रायोजकों की बेरुखी झेल रहीं आईपीएल की कुछ टीमें खर्चे कम करने की रणनीति को दोबारा तैयार कर रही हैं। कुछ टीमों ने तो सपोर्टिंग स्टाफ कम किया है तो मार्केटिंग और विज्ञापन बजट को घटाया है। प्रसारण अधिकार दोबारा बेचे जाने से भी हर टीम के हिस्से में आएंगे 25 करोड़ रुपये।