नए लेखा मानक का असर कंपनियों के मार्च, 2008 में समाप्त हो रही चौथी तिमाही के लाभ पर दिख सकता है।
नए मानक के तहत डेरिवेटिव्स उत्पादों के कारोबार पर किसी भी तरह के नुकसान या लाभ का ब्यौरा देना होगा।इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने शनिवार को घोषित नए लेखा मानक के तहत सभी कंपनियों से डेरिवेटिव अनुबंधों (वायदा कारोबार को छोड़ कर जिसमें कंपनी को अकाउंटिंग स्टैंडर्ड एएस11 के पालन करने की जरूरत होती है) से हुए नुकसान का खुलासा करने को कहा है।
एक प्रमुख कंपनी के सीएफओ ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, ‘चौथी तिमाही का परिणाम घातक होगा और इसका असर शेयर बाजारों पर पड़ेगा। निवेशकों की चिंताएं विदेशी संस्थागत निवेशक प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं।’उन्होंने कहा ‘यह अच्छी बात है कि सच्चाई सामने आ रही है, लेकिन कई बुरी खबरों के साथ बाजार के लिए खराब समय है।’
फॉरेन एक्सचेंज के विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय कारोबार को फॉरेन एक्सचेंज डेरिवेटिव्स के जोखिम के कारण 12 हजार करोड़ रुपये से 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।कंसल्टेंसी फर्म केपीएमजी के लिए वित्तीय सेवाओं के निदेशक (नेशनल इंडस्ट्रीज) संजय अग्रवाल ने कहा कि लोग स्पष्ट रूप से यह असर महसूस करेंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि डेरिवेटिव्स पर कंपनी को होने वाले लाभ या नुकसान का खुलासा करने की जरूरत होगी।
अब तक कंपनियों को डेरिवेटिव्स उत्पादों पर अपने लाभ या नुकसान का खुलासा करने की जरूरत नहीं थी। लेकिन आईसीएआई के नए अकाउंटिंग मानदंड एएस 30 के तहत उन्हें 1 अप्रैल, 2011 से इस लाभ या नुकसान का खुलासा करना जरूरी होगा।फॉरेन एक्सचेंज के एक कंसल्टेंट ने कहा कि कंपनियां अपनी कमाई पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर से बचने के लिए उपाय तलाशेंगी।
अग्रवाल ने कहा, ‘वे कंपनियां जिन्हें मार्च में समाप्त हो रही तिमाही के लिए एमटीएम नुकसान का पता लगाने की जरूरत होगी, अपनी हेजिंग रणनीति में सुधार के लिए नई डेरिवेटिव्स संविदाओं पर भी विचार कर सकती हैं।’ वैसे, कंपनियां नए अकाउंटिंग स्टैंडर्ड की सुनिश्चितता को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं।