बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) ने मोटर पूल को समाप्त करने की संभावना से इंकार कर दिया है।
विदित हो कि साधारण बीमा कंपनियों ने इरडा को मोटर पूल समाप्त करने का सुझाव दिया था।मोटर पूल जिसका नाम ‘इंडियन मोटर थर्ड पार्टी पूल’ है की शुरूआत लगभग एक साल पहले की गई थी।
जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के महासचिव के एन भंडारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कुछेक साधारण बीमा कंपनियां ही इरडा को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग कर रही थी लेकिन नियामक ने इस मांग को ठुकरा दिया था। इसे इस बात से समझा सकता है कि बीमा कंपनियों को भेजे गए पत्र में नियामक ने मोटर पूल को समाप्त करवाने की उनकी इच्छा पर दुख और आश्चर्य प्रकट किया है।
साधारण बीमा कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी दी कि मोटर पूल को हो रहे लगातार घाटे को देखते हुए बीमाकर्ताओं ने महसूस कि या कि इसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए। इस पूल के दावा प्रबंधन का काम अभी शुरू होना बाकी है और बीमाकर्ता उनके द्वारा जारी की गई पॉलिसियों के मोटर थर्ड पार्टी दावों को निपटाती आ रही है।
भंडारी के अनुसार प्रीमियम के तौर पर पूल ने 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का संग्रह किया जबकि दावे की रकम संग्रहित प्रीमियम से 25 प्रतिशत अधिक थी। उन्होंने कहा कि पूल अभी घाटे में चल रहा है और आने वाले समय में कमी आ सकती है। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि निजी क्षेत्र की कंपनियां अब सोच रही हैं कि मोटर संबंधित पोर्टफोलियो का प्रबंधन उनके द्वारा किया जा सकता है और इसे एक लाभोत्पादक व्यवसाय बनाया जा सकता है।
जब तक यह पूल नहीं बना था तब तक मोटर बीमा के तहत थर्ड पार्टी दायित्वों के प्रस्तावों को अस्वीकार करने की अनुमति नियामक ने बीमाकर्ताओं को नहीं दी थी। लेकिन ऐसा लगता था कि बीमाकर्ता मोटर थर्ड पार्टी कवर के जोखिमों को अंडरराइट नहीं करके इससे बचते थे और इस प्रकार विधिक तरीके से इसे नामंजूर कर देते थे।
थर्ड पार्टी कवर को घाटे का पोर्टफोलियो समझा जाता है इसलिए अधिकांश बीमाकर्ता इसे बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं हैं।
मोटर बीमा के घाटे का प्रभाव सबसे अधिक सरकारी साधारण बीमा कंपनियों पर हुआ है क्योंकि निजी क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों का सौदों के लिए सीधे-सीधे विनिर्माताओं से गठजोड़ होता है।
इसलिए इरडा वर्ष 2007-2008 के आरंभ में मोटर पूल बनाकर अबीमित वाहनों के मालिकों के लिए एक समाधान लेकर आई। एक ओर जहां शुल्कों का निर्धारण नियामक द्वारा किया जाएगा वहीं दूसरी ओर सभी कंपनियों को किसी बीमा चाहने वाले व्यक्ति को बीमा उपलब्ध कराना होगा, जबकि पॉलिसी पूल खाते के लिए लिखी जाएगी। जिसका मतलब है कि प्रीमियम के पैसे पूल के खाते में जाएंगे जिसमें से दावों का निपटान किया जाएगा।