शास्त्रीय गायक शुभा मुद्गल जब कोई शो नहीं कर रही होतीं तब वे अपने ब्लॉग पर रोचक प्रसंग लिखती हैं।
चाहे उनके कार्यक्रम के स्थान की साफ-सफाई पर चर्चा हो या किसी कार्यक्रम को लेकर मीडिया की आलोचना की बात, मुद्गल हमेशा अपने ब्लॉग पर साफ-साफ बिना किसी हिचकिचाहट के लिखती हैं।
वह उन शास्त्रीय संगीतकारों की हिमायती हैं जिन्होंने पिछले कुछ सालों में इस तरह की लय का प्रयोग किया है कि आम आदमी भी उनके संगीत को आसानी से समझ सके। अपने खयाल और ठुमरी या फिर इंडी-पॉप अवतार के जरिये, वह अपनी आवाज का जादू बिखेरती हैं।
वह अपनी अलग सी आवाज के जरिये एक नए श्रोता वर्ग तक संगीत को फैला रही हैं और उन्होंने भारतीय संगीत को सुनने वालों के तरीके में भी बदलाव ला दिया है। हालांकि संगीत में प्रयोग भी उतने ही पुराने हैं, जितना कि खुद संगीत।
लेकिन नई पीढ़ी के तकनीक में विस्तार के साथ तेजी से और नव परिवर्तनों ने उन्हें प्रतिस्पर्धा की बेड़ियों में जकड़ लिया है। संगीत उद्योग में यही प्रतिस्पर्धा बनी हुई थी, लेकिन अब लोकप्रिय संगीत घरानों के ये गायक या संगीतकार भी अब इससे अछूते नहीं हैं।
इसलिए जहां युवा संगीतकारों जैसे सितारवादन की दुनिया के उस्ताद पंडित रवि शंकर की बेटी अनुष्का शंकर खुद को विरासत में मिले हुनर से मुंह नहीं फेर सकती, वहीं इसके समान वैश्विक स्तर पर दुनिया के सामने आना काफी उपयोगी साबित हो रहा है।
29 वर्षीया संगीतकार ने कुछ साल पहले अनुष्का शंकर प्रोजेक्ट शुरू किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य उनके प्रयोग के बाद पैदा हुई रचना को संगीत की दुनिया में जगह मुहैया कराना है। चौथी एकल एलबम ‘राइस’ की रिलीज के बाद शंकर को लगने लगा कि प्रायोगिक काम और शास्त्रीय काम के बीच में साफ-साफ अंतर बनाए रखने की जरूरत है।
‘राइस’ में भारतीय और पाश्चात्य अकॉस्टिक और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग किया गया है। ‘दी स्केल्स ऑफ इंडियन म्यूजिक’ के लेखक पेरिस के संगीत विश्लेषक पृथ्वीन्द्र मुखर्जी ने इस झुकाव को समझाने की कोशिश की है।
उनका कहना है, ‘आज के संगीतकार जिंदगी की तेज रफ्तार के चलते हमारी परंपरा की कुछ बारीकियों और काफी लंबे समय से अपने घरानों के नाम के बोझ को छोड़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं।’ हालांकि अनुष्का शंकर ने अपने प्रायोगिक अवतार में दो अलग-अलग उपकरणों, सितार और पियानो, बांसुरी या सेलो से निकलने वाले सुरों को सजाने की कोशिश की है।
अनुष्का शंकर प्रोजेक्ट उत्तर और दक्षिण भारत की संगीतमय परंपराओं और फ्लैमेंको और जैज की शैली के बीच झूल रहा है। आमतौर पर इस तरह के घरानों को विशुध्द घरानों की ओर से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ता है कि घरानों के मूल नियम कहीं खोते जा रहे हैं।
ग्वालियर घराने से ताल्लुक वाली इस गायिका की शैली में आगरा-अतरौली और जयपुर घराने की छवि भी दिखाई देती है। उनका कहना है, ‘ दोनों युवा और वृध्द संगीत के कई छात्र हैं, जो किसी एक घराने को चुनते हैं। दूसरे लोग इंडी-पॉप या इस तरह की किसी दूसरी तेज शैली को पसंद करते हैं। और मेरे लिहाज से दोनों ही रास्ते बराबर वैध हैं।
और यहां तक कि मेरे जैसे कुछ और जो इंडी पॉप या इसी तरह की दूसरी शैली को चुनते हैं, वे संगीत की किसी न किसी दूसरी शैली के साथ भी बने रहते हैं।’ पुणे के गायक संजीव अभ्यंकर मेवाती घराने और पंडित जसराज के शिष्य हैं, उनकी ध्यान लगाकर गाने की शैली महाराष्ट्र में खासतौर पर लोकप्रिय है।
उनका कहना है, ‘गाने या प्रदर्शन के लिए कोई एक शैली ऐसी नहीं है, जिसे आप सबसे बेहतर कह सकते हैं। यहां असंख्य संभावनाएं हैं। जब तक किसी के एकल प्रदर्शन पर कोई असर न होता हो, क्यों न तब तक क्यों न मेल प्रदर्शन किया जाए?’
नमिता देवीदयाल ने अपनी किताब ‘दी म्यूजिक रूम’ में जयपुर घराने और उनके शिष्यों की कहानियों को लिखा है। उनका कहना है कि रूढ़िवादी संगीतमय परंपरा से अलग धारा संरक्षण के तंत्र में बदलाव से सीधे जुड़ी हुई है। उनका कहना है, ‘संगीत के दूसरे तत्वों में इतना कुछ है कि दूसरे घरानों और उनके खुद के घरानों की परंपराओं के अलावा भी युवा पीढ़ी काफी कुछ सीख सकती है।
पहले, घराने प्रस्तुतिकरण को अलग बनाते थे, ताकि वे अपने संरक्षकों को आकर्षित लगें। लेकिन आज, संगीतकार खुद को किसी एक परंपरा में बांधे नहीं रखना चाहते।’ लेकिन जयपुर घराने की उनकी गुरु धोंडुतई जो केसरबाई और अलादिया खान की शिष्य रह चुकी हैं, वे इसे घरानों की सभ्यता में आ रही कमी नहीं मानतीं।
उनका कहना है, ‘घराने हमेशा इतने ही अहम रहेंगे, जितनी कि हर घर में दाल है जिसे पकाया अलग-अलग तरीके से जाता है। इस खास स्वाद को पूरा बनाए रखना होगा। अगर आप इसे मिला देंगे तो यह आगे नहीं चलेगा। साथ ही श्रोता में भी इस अंतर को पहचानने की समझ होनी चाहिए। हम अपनी परंपराएं तोड़ रहे हैं। घरानों में दीवारों को तोड़ने की कोशिश करना गलत है।’
पंडित विश्व मोहन भट्ट के बेटे सलिल भट्ट संगीत पर इस तरह की पांबंदियों के खिलाफ हैं। उनका कहना है, ‘मैं रूढ़िवादी तंत्र में विश्वास नहीं करता, जो बाज पर पांबदियां लगा दे। आखिर कोई यह निर्णय क्यों करे कि कैसे, कब और क्या किया जाए?’
वे कहते हैं, यह समकालीन समय है, ‘लोग वहीं पुराने राग नहीं सुनना चाहते। पाबंदियों के चलते लोगों की संगीत में दिलचस्पी कम हो रही है और बहुत अधिक अनुशासन जेल की तरह है।’ सलिल भट्ट स्पष्ट रूप से मानते हैं कि यह धरती एक ‘खेल के मैदान’ की तरह है और उसमें खुल कर खेलना चाहिए।
भट्ट ने हाल ही में ताइवान के आदिवासी संगीतकार हेई यॉन (जो संयोगवश, एक पेड़ पर रहता है) के साथ भूमिका निभाई है। भट्ट का फ्यूजन एलबम ‘मुंबई 2 म्यूनिख’ इस महीने सुर्खियों में था। इस एलबम में भट्ट ने जर्मन जैज कलाकार मथियाा मूलर के साथ जुगलबंदी की है। विदेशों में आयोजित किए जाने वाले फ्यूजन कंर्सटों में भट्ट काफी लोकप्रिय हैं।
उन्होंने कनाडा में आयोजित किए जाने वाले सबसे बड़े संगीत कार्यक्रम में भी भूमिका निभाई है। कनाडा में आयोजित सबसे बड़े संगीत कार्यक्रम का शीर्षक ‘स्लाइड टू फ्रीडम’ था। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में देश के संगीतकारों ने हिस्सा लिया था। इस संगीत कार्यक्रम में शामिल होने वाले सभी संगीतकार विभिन्न क्षेत्रों यानी ब्लाू, फंक, फोक, जैज और शास्त्रीय संगीत से जुड़े हुए थे।
संगीत के क्षेत्र में भट्ट की शुरुआती प्रशिक्षण परंपरागत मेहर घराने में हुई थी। यह वही घराना है जिससे यंत्र-वादक उस्ताद अलाउद्दीन खान और अली अकबर खान ताल्लुक रखते हैं। लेकिन इसके बावजूद पश्चिमी संगीतकार बी बी किंग, कार्लोस सैन्टाना, जौ सैटराइनी और जैरी डगलस की शैली से वे अछूते न रह सकें और इस ओर खींचे चले आए।
हालांकि यह सही है कि भारतीय संगीत और पश्चिमी शैली में काफी गठजोड़ देखने को मिल रहा है लेकिन मालूम हो कि आज के दौर में हर संगीतकार ऐसे प्रयोग करने के लिए उत्सुक नहीं है। वर्तमान में अमेरिका के दौरे पर गए उस्ताद शुजात खान का मानना है कि फ्यूजन संगीत बनाने की तुलना में दुनिया भर के दर्शकों से मेल-मिलाप करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।
खान ने बताया, ‘नए प्रयोग करना मेरी अभिप्रेरणा नहीं है। फ्यूजन संगीत हमेशा सुसंगत नहीं होता है। यहां इतना सब कुछ है कि हम प्रत्येक राग से बहुत कुछ कर सकते हैं और हमें नहीं लगता है कि इसके अलावा कुछ नए प्रयोग करने की जरूरत है।’ रिकॉर्ड कंपनी से जुड़ी हाल ही की एक घटना के बारे में खान ने बताया, ‘पिछले साल हमारी एक एल्बम ‘कॉल ऑफ दी रिवर’ रिलीज हुई थी।
उसी के मद्देनजर एक रिकॉर्ड कंपनी ने हमसे संपर्क किया और वे चाहते थे कि मैं उनके लिए ‘कॉल ऑफ दी रोड’ कंपोज करूं। क्या इन कंपनियों को चलाने वाले संचालक वास्तव में संगीत के बारे में कुछ जानते हैं?’ संतूर वादक पंडित भजन सोपोरी के बेटे अभय सोपोरी थोड़ा लीक से अलग हटकर काम कर रहे हैं। अभय सोपोरी उन कलाकारों के लिए एक मंच प्रदान कर रहे हैं जो लोगों के बीच बहुत ज्यादा चर्चित कलाकार नहीं हैं।
वे कम चर्चित कलाकारों को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। अभय सोपोरी के संगठन का नाम सामापा यानी सोपोरी एकेडमी ऑफ म्यूजिक एंड पर्फामिंग ऑर्ट है। इस संगठन का उद्देश्य ‘आम जन तक संगीत को पहुंचाना’ है। यह संगठन एक ओर जहां नए संगीतकारों को प्रमोट करने के लिए उत्सवों का आयोजन करता है वहीं शिक्षण संस्थानों में लेक्चर के जरिए छात्रों को शिक्षित करने का काम भी करता है।
अभय सोपोरी ने बताया, ‘यहां बहुत कम रास्ते हैं जिसमें आप युवा संगीतकारों के लिए अवसर पैदा कर सकते हैं। चूंकि मुझे मेरे पिताजी का समर्थन मिल रहा था इस वजह से मैं उन लोगों के निशाने पर था जो गुटबाजी करते थे। हालांकि मैं इस तरह की राजनीति से बाहर रहने में सक्षम रहा हूं। लेकिन उन लोगों का क्या होगा जिनको किसी का कोई समर्थन प्राप्त नहीं है।’
सोपोरी का मानना है कि यहां एक ईमानदार उत्सव आयोजक की आवश्यकता है। घरानों की परंपरा का बचाव करते हुए सोपोरी बताते हैं कि आज के समय में भी घरानों की परंपरागत अनुशासन को बनाए रखना बेहद आवश्यक है। मालूम हो कि यह युवा संतूर वादक और संगीतकार सूफियाना घराना से ताल्लुक रखते हैं।
सोपोरी ने बताया, ‘पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के संकेतों को सीखना हमारे लिए काफी फायदेमंद रहा। यह शिक्षा हमारी रचनाओं के लिए बेहद मददगार साबित हुई और जिसे हमने कई टीवी धारावाहिकों के लिए भी बनाया है। हमारा प्रशिक्षण उस वक्त काम आया जब मैंने दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था।
इस संगीत कार्यक्रम में मैनडोलिन, सिंथेसाइजर, लद्दाखी, ड्रम, टूम्बैक, मटका, सारंगी और संतूर से जुड़े संगीतकार शामिल हुए थे। लेकिन इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से उत्तर भारत के संगीतकारों ने ही हिस्सा लिया था। मैं भारत के अन्य भागों के लोक संगीतकारों को भी लाने के लिए उत्सुक हूं।’
अभय सोपोरी और सलिल भट्ट आज की पीढ़ी के उन कुछ कलाकारों में से हैं, जिन्हें उनके उपकरणों को पुनर्गठित करने के लिए श्रेय दिया जा सकता है।
5 सर्वश्रेष्ठ फ्यूजन एल्बम
पूरब-पश्चिम का मिलन
ब्रीदिंग अंडर वॉटर
(मेनहट्टन रिकॉर्ड)
सितार वादक अनुष्का शंकर ने अंतरराष्ट्रीय संगीतकार कर्श काले के साथ काम किया।
मुंबई 2 म्यूनिख
सलिल भट्ट ने जर्मन जैज गिटारवादक मथियाा मूलर के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नया आयाम दिया है।
फ्रैंड्स-एक्रॉस बॉउंड्रीज
(निनाद म्यूजिक)
उस्ताद सुल्तान खान ने बास गिटारवादक जोनास हेलबॉर्ग और फाल कुरैशी के साथ काम किया है।
सारंगी फंक
(म्यूजिक टूडे)
सारंगी वादक कमल साबरी जैज एवं फोक ताल के साथ संगीत पेश किया है।
लास्टिंग इम्प्रैशन
(मूमेंट रिकॉर्ड)
उस्ताद जाकिर हुसैन और पंडित कृष्ण भट्ट ने जार्ज ब्रूक के साथ काम किया है।
