हालांकि सरकार ने सीमेंट और इस्पात उत्पादक कंपनियों की कार्टेल यानी गुट बनाकर काम करने की प्रवृत्ति की भर्त्सना की है लेकिन भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) इस संबंध में किसी प्रकार की कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है।
कार्टेल का मुद्दा और सरकार की अक्षमता उस वक्त सामने आई जब वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सीमेंट और इस्पात निर्माता कंपनियों द्वारा कार्टेल बनाकर उपभोक्ताओं का शोषण किए जाने की आलोचना की। उन्होंने इन कंपनियों को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने अपना रवैया नहीं बदला तो सरकार कड़े कदम उठाने में नहीं हिचकेगी। सीमेंट उद्योग में कार्टेल बनाने की बात पिछले एक साल से कही जा रही है। अभी इस मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है क्योंकि इस प्रक्रिया में इस्पात उद्योग भी शामिल हो गया है।
सीसीआई का गठन अक्टूबर 2003 में किया गया था। इसके गठन का उद्देश्य गैर-प्रतिस्पर्धी अनुबंधों को रोकना, बाजार में प्रभुत्व बनाने की कवायद पर अंकुश लगाना और विलय या गठजोड़ का दिशा निर्देश तय करना शामिल है। इसका गठन एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार आयोग (एमआरटीपी) कानून 1969 की समीझा और प्रतिस्पर्धा कानून 2002 की घोषणा के बाद किया गया।
इस कानून के तहत एमआरटीपी एक्ट और एमआरटीपी आयोग को हटाकर इसे मिला दिया गया और इसकी घोषणा के बाद ही सीसीआई को सारे अधिकार हस्तांतरित कर दिये गए। वैसे अभी तक इन अधिकारों को सरकार द्वारा प्रदान करना बाकी है और सारी समस्याओं की जड़ भी यहीं है।
एक तरफ एमआरटीपी कानून के जरिये बाजार में किसी कंपनी के प्रभुत्व पर अंकुश लगाया जाता है। दूसरी तरफ सीसीआई के पास इन मुद्दों को नियंत्रित करने के लिए अधिकार तो हैं लेकिन सीसीआई अधिकारी बताते हैं कि जब तक संसद इसकी घोषणा नहीं करता तब तक इसका क्रियान्वयन करना मुश्किल है।
वैसे इसकी अधिसूचना इस साल के मध्य तक आनी है लेकिन इसके तुरंत बाद सीसीआई अपनी प्रक्रिया शुरू नहीं कर पाएगा। ऐसा इसलिए है कि अभी तक इसके तीन सदस्यों का चयन नही हो पाया है। अभी तक आयोग में कामचलाऊ कर्मचारियों की नियुक्ति होनी भी बाकी है। एक सूत्र ने बताया कि अधिसूचना के बाद भी सारी प्रक्रियाएं शुरू होने में चार से पांच महीने का वक्त लग जाएगा।
यह भी तब होगा जब सरकार इस दिशा में जल्दी से अपने कामों को निपटारा करती है। सूत्रों ने बताया कि कंपनी मामलों के मंत्रालय इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से लगातार संपर्क में है। एक अधिकारी ने बताया कि अगर कार्टेल की बात है तो सीसीआई के क्रियान्वयन की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए। राजिंदर नारायण ऐंड कंपनी की सहयोगी और जानी मानी वकील कुमकुम सेन ने कहा कि जब तक एमआरटीपीसी को समेटा नही जाता तबतक सीसीआई की प्रक्रिया चालू नही हो सकती।
उन्होंने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में अधिकारों का झगड़ा है। हम लोगों को अपने विदेशी क्लाइंटों को समझाने में काफी दिक्कतें आती हैं क्योंकि अभी तक हमारे यहां इस कार्टेल से निबटने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है।
सीमेंट कंपनियों को दिसंबर 2007 में कार्टेल बनाने को लेकर एमआरटीपीसी ने चेतावनी भी दी थी। लेकिन कंपनियों ने इस तरह की किसी भी आरोप को खारिज कर दिया था और कार्टेल का आरोप जिन 44 कंपनियों पर लगाया गया था उसने तो इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में अपील तक कर रखी है। आयोग ने अक्टूबर 1990 में एक जांच भी की थी और जांच एवं पंजीकरण महानिदेशक ने यह आरोप लगाया था कि सीमेंट कंपनियां कार्टेल बनाकर बाजार को प्रभावित कर रही है।