किसी भी कंपनी को हुए नुकसान में कंपनी के कर्मचारियों के कारण लगभग 60 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ता है।
कंपनी को यह नुकसान कर्मचारियों की की धोखाधड़ी, गलत जानकारी और संपत्ति की चोरी के रूप में उठाना पड़ता है। लेकिन इसके बाद भी किसी कर्मचारी का क्रिमिनल रिकॉर्ड ढूंढना भूसे के ढेर में सुई खोजने के बराबर ही है।
भारतीय कंपनियों की बात करें तो लगभग 98 फीसदी कंपनियां अपने कर्मचारियों के बैकग्राउंड की जानकारी नहीं रखती हैं। धोखाधड़ी के कितने ही किस्से कंपनी की फाइलों में ही बंद होकर रह जाते हैं। सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट इंडस्ट्री और द एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट डिटेक्टिव्स ऐंड इन्वेस्टिगेटर्स के चेयरमैन कुंवर विक्रम सिंह के अनुसार इसमें से भी जो दो फीसदी कंपनियां ऐसा करती हैं उनकी 80 फीसदी जानकारी गलत होती है।
इस समस्या की जड़ें काफी गहरी हैं। दरअसल भारत में नकली डिग्रियां काफी आसानी से मिल जाती हैं। एक अध्ययन के अनुसार लगभग 29 फीसदी किस्सों में धोखाधड़ी शिक्षा के कागजातों को लेकर होती हैं। इसमें से भी लगभग 85 फीसदी उम्मीदवार शिक्षा से संबंधित नकली कागजात देते हैं। लगभग 70 फीसदी लोग पिछली नौकरी के बारे में गलत जानकारी देते हैं। फर्स्ट एडवांटेज के प्रबंध निदेशक (पश्चिम एशिया) आशीष दिहाडे ‘बैकग्राउंड चैक’ के इस कॉनसेप्ट को थोड़ा और आगे ले जाना चाहते हैं। इसीलिए वो नियुक्ति के बाद भी कर्मचारियों के बारे में छानबीन करते रहना चाहिये।
उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 40 कंपनियां इस कॉनसेप्ट को अपना रही हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर किसी कर्मचारी का बैकग्राउंड रिकॉर्ड ठीक है तो इसका मतलब ये तो नहीं है कि वह आगे भी ठीक ही रहेगा। इसके लिए हम नियुक्ति के बाद भी साल में एक बार छानबीन की सलाह देते हैं।’ इस बात से ज्यादा लोग सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि भारत में पुलिस के रिकॉर्ड देखने का हक आम जनता को नहीं है जिससे देश भर में किसी व्यक्ति के बारे में छानबीन करना मुमकिन नहीं है।
किसी भी व्यक्ति के बारे में छानबीन करने के लिए उस क्षेत्र के सही पुलिस स्टेशन का पता करना जरूरी होता है। अगर कोई व्यक्ति एक ही शहर में कई जगह रहा हो तो ऐसे में उसके बारे में जानकारी पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। नियुक्ति से पहले कर्मचारियों की छानबीन करने वाली कंपनी इनक्वेस्ट ने तो अपनी वेबसाइट पर चेतावनी भी लिख रखी है। इस चेतावनी में साफ लिखा है, ‘ऐसी किसी भी एजेंसी से सावधान रहें जो यह दावा करती हो कि उसने जिला न्यायालय या फिर उच्च न्यायालय में किसी भी व्यक्ति के क्रिमिनल रिकॉर्ड की छानबीन कर रखी है।
दरअसल, भारत में किसी भी न्यायालय में ऐसे कोई भी रिकॉर्ड मौजूद नहीं हैं।’ फाउंडेशन फोर इन्फोरमेशन सिक्योरिटी ऐंड टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष विजय मुखी ने इस मामले पर साफ कहा, ‘किसी भी कर्मचारी की नियुक्ति से पहले उसके बारे में छानबीन कर पूरी जानकारी हासिल करना बेहद जरूरी है। लेकिन मैं भारत में किसी भी ऐसी छानबीन के लिए इतना पैसा खर्च नहीं करूंगा। बगैर किसी भी केंद्रीय डाटाबेस के आप कैसे कह सकते हैं कि इस इन्सान का पिछला रिकॉर्ड सही है।’
छानबीन नहीं है आसान
बैकग्राउंड जांचने की कीमत- 200-5,000 रुपये प्रति कर्मचारी
500 से ज्यादा जांच एजेंसियां- 500 करोड़ का कारोबार
भारत में कर्मचारियों के पिछले रिकॉर्ड वाला कोई केंद्रीय डाटाबेस नहीं है। इस डाटाबेस को अपडेट करना काफी महंगा पड़ता है
नकली डिग्रियां आसानी से मिलती हैं और इनकी जांच पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता है
‘प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसीज रेग्यूलेशन बिल, 07’ के बाद बदल सकते हैं हालात