प्रतीकात्मक तस्वीर
भारतीय आईटी सेवा कंपनियों को आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और जेनरेटिव एआई (जेनएआई) में अभी तक बड़े सौदे हासिल नहीं हुए हैं। लेकिन लागत कम करने और परियोजना दक्षता बढ़ाने के लिए इनका अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे ग्राहकों को अपनी बचत का कुछ हिस्सा डिस्क्रेशनरी से जुड़ी पहलों में फिर से निवेश करने की सुविधा मिल रही है, भले ही मौजूदा माहौल अनिश्चितताओं से भरा है।
एआई और जेनएआई का बढ़ता इस्तेमाल पारंपरिक आईटी परियोजनाओं की लागत में बचत के तरीके में बदलाव बताता है जिसे रन-साइड के रूप में ज्यादा जाना जाता है। पिछले तीन वर्षों में इसने जोर पकड़ा है क्योंकि लेबर आर्बिट्राज और आईटी प्रक्रियाओं के मानकीकरण जैसी पारंपरिक लागत बचत तकनीकों की लोकप्रियता घट रही है।
सभी क्षेत्रों के उद्यम महसूस करने लगे हैं कि परियोजनाओं में जब तक एआई और जेनएआई जैसी तकनीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, तब तक लागत में अपेक्षित बचत नहीं मिलेगी। आईटी सेवा अधिकारियों का कहना है कि यह एक ऐसा रुझान है जो सभी चर्चाओं का हिस्सा बन गया है।
टीसीएस के मुख्य कार्याधिकारी के कृतिवासन ने कहा कि हालांकि पारंपरिक लागत अनुकूलन सौदे फिर से चर्चा में हैं, लेकिन इनमें अतिरिक्त कारक भी शामिल हैं, जैसे कि विक्रेता समेकन या एआई-आधारित लागत अनुकूलन।
उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘कुछ खास सौदों में, एआई लागत घटाने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, हमने अपने एक ग्राहक को बताया कि वे अपने पोर्टफोलियो के कुछ हिस्से में एआई को शामिल कर 20 प्रतिशत लागत बचत कर सकते हैं। इसके बाद ग्राहक ने हमसे बड़े पोर्टफोलियो को संभालने, वैसा ही एआई समाधान अपनाने और सभी क्षेत्रों में समान बचत के तरीके पूछे।’
इन्फोसिस ने कहा कि उसके अधिकांश ग्राहक प्रक्रिया समाधान, इंजीनियरिंग और ग्राहक सेवा जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण उत्पादकता लाभ पर ध्यान दे रहे हैं।