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कारीगरों की कमी और बढ़ी लागत के बोझ तले दबे भदोही के कालीन, देश- विदेश से घट रही मांग

भदोही में कारीगर घट गए हैं, इसलिए वहां के व्यापारी कच्चा माल खरीदते हैं और हाथ की महीन कारीगरी के लिए बदायूं, शाहजहांपुर और साहिबाबाद भेज देते हैं।

Last Updated- September 29, 2024 | 11:17 PM IST
Bhadohi carpets are burdened by shortage of artisans and increased cost, demand from abroad is also decreasing कारीगरों की कमी और बढ़ी लागत के बोझ तले दबे भदोही के कालीन, देश- विदेश से घट रही मांग

भदोही के कालीन एक जमाने से ही अपनी बारीक बुनाई और नफीस कारीगरी के लिए देश-विदेश में मशहूर रहे हैं। लेकिन अब उनके सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है। यहां का कालीन उद्योग हुनरमंद कारीगरों की कमी से तो अरसे से जूझ ही रहा था मगर अब चीन, तुर्किये और बेल्जियम से भी खतरे की घंटी बज रही है। वहां मशीनों से बनने वाले कालीन अंतरराष्ट्रीय बाजार में भदोही के सामने ताल ठोंक रहे हैं।

कालीनों के लिए इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल दिनोंदिन महंगा हो रहा है और हुनरमंद बुनकरों की भी खासी किल्लत है। महंगाई और बुनकरों की बढ़ती मजदूरी के कारण भदोही के हाथ से बुने कालीन महंगे होने लगे हैं। इसलिए देसी बाजारों में मशीन से तैयार सस्ते कालीनों की बिक्री बढ़ने लगी है।

विदेश से घट रही मांग

दिलचस्प है कि कारोबारियों को देश के भीतर सस्ते और मशीनी कालीन छाने की खास परवाह नहीं है क्योंकि भदोही के कालीन का असली बाजार हमेशा से विदेश में ही रहा है। मगर उन्हें असली चोट विदेशी बाजारों में लगने का खटका है। वे कहते हैं कि यूरोप में आज भी तुर्की और चीन में बने सिंथेटिक धागे के कालीनों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है। उनके बजाय भदोही के बने कालीनों की मांग ज्यादा रहती है। किंतु रूस-यूक्रेन युद्ध चलते रहने और यूरोप में कई देशों की आर्थिक हालत डांवाडोल होने की वजह से ऑर्डर में पहले के मुकाबले काफी कमी आई है।

ऑर्डर घटने का एक बड़ा कारण हाथ से बने कालीनों के दाम बढ़ना भी है। हाथ के कालीन की बुनाई करने वाले हुनरमंद बुनकरों की कमी हो जाने के कारण माल बाहर से तैयार कराना पड़ रहा है। भदोही से बाहर बुनकरी महंगी हो जाती है और माल की ढुलाई का खर्च भी उसमें जुड़ जाता है। कालीन में कच्चे माल के तौर पर ऊन और दूसरे धागों का इस्तेमाल होता है, जिनके दाम पहले के मुकाबले 7 से 10 फीसदी बढ़ गए हैं।

गायब हुए हुनरमंद कारीगर

भदोही के कालीन कारोबारी एसएन सिंह कहते हैं, ‘बुनकरी के पेशे में नए लोग नहीं आ रहे हैं। पुराने कारीगर भी सेहत बिगड़ने और दूसरे कारणों काम छोड़ रहे हैं। वैसे तो भदोही और मिर्जापुर में करीब 24 लाख लोग इस पेशे से जुड़े हैं और उनमें करीब एक तिहाई महिलाएं हैं। फिर भी कालीन उद्योग कुशल कारीगरों की कमी से जूझ रहा है।’

कालीन निर्माताओं का कहना है कि कुशल कारीगरों की कमी के कारण लागत बढ़ती जा रही है। नौजवान अब बुनकरी का काम करना नहीं चाहते और उम्रदराज कारीगरों के लिए महीन काम करना मुश्किल होता जा रहा है। कालीन निर्यातक शोभनाथ बताते हैं कि भदोही-मिर्जापुर के तमाम हुनरमंद कारीगर अब महाराष्ट्र में भिवंडी और मुंब्रा जैसी जगहों पर जाकर पावरलूम में काम करने लगे हैं।

भदोही के बाहर बनते कालीन

भदोही में कारीगर घट गए हैं, इसलिए वहां के व्यापारी कच्चा माल खरीदते हैं और हाथ की महीन कारीगरी के लिए बदायूं, शाहजहांपुर और साहिबाबाद भेज देते हैं। नतीजा यह है कि कालीन बनाने की लागत बढ़ती जा रही है।

कारोबारियों का कहना है कि भदोही से बाहर कच्चा माल भेज कर कालीन की बुनाई करवाने से ही लागत में 10 से 15 फीसदी का इजाफा हो जाता है। इसमें भाड़े के अलावा मजदूरी का बढ़ा खर्च शामिल है। साथ ही माल तैयार होने में समय भी ज्यादा लगता है। इस सूरत में कालीन की लागत लगभग 20 फीसदी बढ़ जाती है। चूंकि बढ़ी लागत का पूरा बोझ आयातकों पर डालना मुमकिन नहीं होता, इसलिए निर्माताओं और निर्यातकों के मार्जिन पर भी चोट पड़ती है।

कालीन निर्यातक मुशाहिद हसन हुनरमंद कारीगरों के इस उद्योग से पलायन की एक और वजह बताते हैं। वह कहते हैं, ‘हाथ से बुने कालीन की कीमत 1.50 लाख रुपये से शुरू होती है और इनके ज्यादातर खरीदार यूरोप के देशों में ही हैं। भारत में तो इनकी मांग नहीं के बराबर है, इसलिए आम तौर पर विदेश से ऑर्डर आने पर ही माल तैयार कराया जाता है। जब ऑर्डर नहीं होते हैं तो कारीगरों के पास काम की कमी हो जाती है, इसलिए वे रोजी-रोटी के लिए दूसरे काम पकड़ लेते हैं।’

सस्ते कालीन की मार

मुशाहिद बताते हैं कि हाथ से कालीन बुनने में महीनों लगते हैं क्योंकि उनमें हर इंच पर 100 से ज्यादा गांठ लगती हैं। उनके मुकाबले मशीन पर कुछ ही घंटों में कालीन तैयार हो जाता है। सिंथेटिक धागों का इस्तेमाल होने के कारण मशीन से बुने कालीन में चमक दिखती है और वे हल्के भी होते हैं। जाहिर है कि इन सस्ते कालीनों के खरीदार बढ़ रहे हैं और भदोही के पारंपरिक कालीनों की बिक्री कम हो रही है।

विदेशी खरीदारों के भरोसे धंधा चमकाने की आस लगाकर बैठे कालीन निर्यातकों से उत्तर प्रदेश के नोएडा में चल रहे इंटरनैशनल ट्रेड शो के दौरान विदेशी व्यापारी काफी पूछताछ कर रहे हैं। भदोही के एक्सपो मार्ट में 15 अक्टूबर से प्रदर्शनी भी होने जा रही है, जिसमें 700 विदेशी खरीदारों ने आने की रजामंदी दे दी है। निर्यातकों को उम्मीद है कि विदेशी खरीदारों के सीधे भदोही आने से ऑर्डर बढ़ेंगे और हाथ से बुने कालीनों की मांग भी बढ़ेगी।

कालीन निर्यात संवर्द्धन परिषद के मुताबिक 2022-23 में इस उद्योग ने करीब 14,776 करोड़ रुपये कारोबार किया था, जो 2021-22 में 16,600 करोड़ रुपये था। वित्त वर्ष 2023-24 के आंकड़े अभी आने बाकी हैं। परिषद के मुताबिक देश में लगभग 1,500 कालीन निर्यातक हैं, जिनमे से करीब 800 यानी आधे से ज्यादा उत्तर प्रदेश से ही हैं। इनमें भी 500 से ज्यादा निर्यातक भदोही जिले में काम करते हैं।

First Published - September 29, 2024 | 11:17 PM IST

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