गन्ने की खोई से उत्पन्न होने वाली बिजली को कभी चीनी क्षेत्र की कमाई का मुख्य वैकल्पिक स्रोत बताया जाता था। मगर वित्त वर्ष 2024 में उत्तर प्रदेश में नवीकरणीय ऊर्जा से पैदा होने वाली कुल बिजली में खोई से बनी बिजली की हिस्सेदारी घटकर 41 फीसदी रह गई। यह बीते छह वर्षों में सबसे कम है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024 में चीनी मिलों ने खोई से करीब 292.35 करोड़ यूनिट बिजली उत्पन्न की हैं। वित्त वर्ष 2019 में इसकी करीब 76 फीसदी हिस्सेदारी थी। वित्त वर्ष 2019 के बाद से राज्य में सह उत्पादन के जरिये उत्पन्न की गई कुल बिजली में 32.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
गन्ने में खोई निकलती है और इसे बॉयलर पर जलाकर भाप बनाया जाता है जिससे फिर बिजली पैदा की जाती है। खोई से उत्पन्न बिजली को ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत माना जाता है। उत्तर प्रदेश के कुल 122 चीनी मिलों में से 44 के पास खोई से बिजली उत्पादन की सुविधा है। इनमें से अधिकतर निजी क्षेत्र के हैं। पिछले 10 से 15 वर्षों में चीनी कंपनियों ने सह-उत्पादन के लिए करीब 7,000 से 8,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है। चीनी कंपनियों के पास सह उत्पादन सुविधाओं के जरिये कुल मिलाकर 2,000 मेगावॉट की स्थापित क्षमता है। मगर वे सिर्फ 600 से 700 मेगावॉट ही उत्पादन करते हैं।
सूत्रों ने बताया कि इस गिरावट का बड़ा कारण सरकार द्वारा चीनी कंपनियों से बिजली खरीद की कीमत नहीं बढ़ाना है। उद्योग के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, चीनी कंपनियां पहले सह उत्पादन के जरिये उत्पन्न होने वाली बिजली 5 रुपये प्रति यूनिट की दर पर आपूर्ति करती थीं। मगर साल 2019 में कीमत घटा कर 3.8 रुपये प्रति यूनिट कर दिया गया।
इससे पहले सरकार ने खोई की कीमत 2,100 रुपये प्रति क्विंटल के आधार पर मानकर सह उत्पादन से उत्पन्न होने वाली बिजली की दर तय की थी और जब दरें कम की गईं तो खोई की कीमत 1,100 रुपये प्रति क्विंटल मानी गई। एक चीनी मिल के वरिष्ठ अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि सरकार खुले बाजार से 8 से 12 रुपये प्रति यूनिट पर बिजली खरीदना चाह रही है मगर हमें पांच रुपये नहीं दे रही है।