Lok Sabha Elections 2024: जालंधर के बस्ती नौ में एक व्यस्त सड़क पर रिक्शा चालक 58 वर्षीय शिवेश यादव बकाया पैसे को लेकर एक ग्राहक से बहस में उलझे थे। जब उनसे इतना गुस्सा होने की वजह पूछी तो थोड़ा नरम पड़े, जुबां पर असली दर्द उभर आया, ‘अब बहुत कम पर्यटक यहां आते हैं। हमारा काम धंधा तो लगभग ठप ही हो गया है।’
धूल भरी गलियों से रिक्शा ले जाते हुए यादव कम ग्राहकी के कारण रोजाना की आमदनी में आई कमी से परेशान दिखते हैं। वह कहते हैं, ‘जब तक ऑनलाइन खरीदारी का चलन शुरू नहीं हुआ था, इस बाजार में बड़ी रौनक रहती थी। रविवार या सोमवार में फर्क दिखाई नहीं देता था। हमने इस बाजार के बारे में बिहार में सुना था और अच्छी आमदनी की आस में 25 साल पहले यहां आ गए थे। अब धंधा इतना मंदा हो चला है कि कुछ महीने बाद ही अपने पैतृक गांव लौटना पड़ता है।’
जालंधर में खेल उद्योग की जड़ें देश के बंटवारे के समय से हैं। वर्ष 1947 में लोग सियालकोट से यहां आए थे। शुरुआत में वे बटाला में रुके। इसके बाद वे जालंधर और मेरठ पहुंच गए, जहां कच्चा माल बहुत आसानी से मिल जाता था। जालंधर में खेल उद्योग कोविड महामारी आने तक खूब फलफूल रहा था। स्पार्टन के जनरल मैनेजर धीरज कुमार कहते हैं, ‘कोविड ने हमें बुरी तरह तोड़ दिया। चार साल भी कारोबार महामारी के पहले वाले स्तर पर नहीं पहुंच पाया है। वैसे स्थिति में बहुत सुधार हुआ है, लेकिन पहले जैसी बात नहीं है। हम नई सरकार से उम्मीद कर रहे हैं कि वह इस तरफ ध्यान देगी।’
खेल उद्योग के समक्ष सबसे बड़ी समस्या जीएसटी की अलग-अलग दरें हैं। धीरज कुमार कहते हैं, ‘केंद्र में बनने वाली नई सरकार सबसे पहले जीएसटी दरों को सुसंगत बनाकर कारोबारियों को इस परेशानी से निजात दिलाए। इस समय खेल से जुड़ी अलग-अलग सामग्री पर 5, 12 और 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है। कितने ही बच्चों का भविष्य खेल पर निर्भर है। यदि सरकार हमें सहयोग और सहारा देगी तो हम भी आगे बच्चों को इसका फायदा देंगे।’ कुमार कहते हैं, ‘दिक्कत यह है कि कई खेल आइटमों को मनोरंजन कर के दायरे में रखा गया है। यदि हम स्कीपिंग और जिम आइटम बेचते हैं तो मनोरंजन श्रेणी में ही आते हैं, जबकि इन्हें स्वास्थ्य उत्पाद के तौर पर वर्गीकृत किया जाना चाहिए।’
वित्तीय अधिनियम 2023 में आए एक नए नियम से इस उद्योग को कुछ मजबूती मिली है। आयकर अधिनियम की धारा 43बी(एच) में प्रावधान है कि छोटे व्यापारी को समय से रिफंड मिल सके। इस नियम के अनुसार यदि कंपनियां सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम 2006 द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर अपने आपूर्तिकर्ता व्यापारी को भुगतान कर दें तो उन्हें टैक्स जमा करने में कुछ राहत दी जा सकती है।
इसमें यह भी कहा गया है कि कंपनियां समझौते के तहत 45 दिन के भीतर भुगतान कर देना चाहिए और यदि दोनों पक्षों के बीच किसी प्रकार की लिखित सहमति नहीं है तो कंपनियों को अपने आपूर्तिकर्ता व्यापारी को 15 दिन के भुगतान करना होगा। यदि वे इस नियम के अनुसार काम नहीं करती हैं तो वे अपने इन खर्चों को टैक्स से अलग नहीं कर सकतीं।
एक निर्यात व्यापारी ने बताया, ‘मैंने अपना माल ओडिशा भेजा था। बहुत अधिक जल्दी करने पर भी वहां माल पहुंचाने में 25 दिन लग जाते हैं। तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद फर्म को एक महीने बाद सामान मिलता है। अब समस्या यह है कि कोई व्यापारी कैसे 15 दिन के भीतर भुगतान करे जब उसे माल ही एक महीने के बाद मिल रहा है। नियम में कोई कमी नहीं है, लेकिन इसे परिस्थितियों के अनुसार दुरुस्त किए जाने की जरूरत है।’
आज चीन पर निर्भरता बहुत बढ़ गई है। खेल उद्योग को आशा है कि 4 जून को नतीजों के बाद केंद्र में बनने वाली नई सरकार इस मुद्दे पर ध्यान देगी और हालात बदलेंगे। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2019 से अप्रैल 2020 के बीच चीन से 918.72 करोड़ रुपये के खेल उत्पाद आयात किए गए। यह पूरे विश्व से भारत में किए गए खेल सामग्री आयात से 65 प्रतिशत अधिक है। एक अन्य व्यापारी कहते हैं कि ‘बहुत सारे व्यापारी कच्चा या तैयार माल चीन से मंगाते हैं और यहां अपने ब्रांड का लेबल लगाकर बेचते हैं। योनेक्स का ही उदाहरण ले लीजिए। जापानी कंपनी होने के बावजूद इसकी चीन में फैक्टरियां लगी हैं। भारत में बैडमिंटन उद्योग से जुड़े कई कामयाब कारोबारियों ने योनेक्स के साथ काम किया है।’
कुछ लोग सिल्वर ब्रांड का नाम भी लेते हैं, जो भारत में खेल सामग्री बनाती है। व्यापारियों के अनुसार सिल्वर के रैकेट और बैडमिंटन एक-दूसरे के पर्याय कहे जाते हैं और देशभर में लगभग हर स्टोर पर मिल जाते हैं।
घरेलू स्तर पर विनिर्माता विशेषकर हॉकी स्टिक और बॉल, क्रिकेट बैट और बॉल, बॉक्सिंग उपकरण और शतरंज के बोर्ड आदि खेल सामग्री के निर्यातक कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर रहते हैं। विलो लकड़ी कश्मीर से लायी जाती है, जो बहुत महंगी पड़ती है। काफी खेल सामग्री का कच्चा माल मेरठ में भी मिलता है, क्योंकि राज्य सरकार इस पर व्यापारियों को प्रोत्साहन देती है। इन दो जगहों के अलावा शायद ही कुछ यहां मिलता हो।
राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार ने यहां एक शोध एवं विकास केंद्र स्थापित करने का वादा किया था, लेकिन उसके बाद से इस बारे में क्या प्रगति हुई, किसी को कुछ नहीं पता।