मशहूर भारतीय कलाकार मक़बूल फिदा हुसैन की ऐतिहासिक पेंटिंग Untitled (Gram Yatra) ने आधुनिक भारतीय कला के सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। यह पेंटिंग न्यूयॉर्क के क्रिस्टीज़ नीलामी घर में 118.7 करोड़ रुपये (13.75 मिलियन डॉलर) में बिकी। यह अब तक किसी आधुनिक भारतीय कला के लिए सबसे ऊंची कीमत है। इससे पहले अमृता शेरगिल की 1937 में बनी पेंटिंग The Story Teller को 61.8 करोड़ रुपये में बेचा गया था, जो सितंबर 2023 में रिकॉर्ड बना चुकी थी।
न्यूयॉर्क के रॉकफेलर सेंटर में जैसे ही नीलामी की हथौड़ी इस पेंटिंग की बिक्री के लिए गिरी, तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। इसे एक गुमनाम संस्था ने खरीदा।
क्रिस्टीज़ में साउथ एशियन मॉडर्न एंड कंटेम्पररी आर्ट के प्रमुख निशाद अवरी ने कहा, “यह ऐतिहासिक पल है और दक्षिण एशियाई आधुनिक कला बाजार की तेज़ी से बढ़ती लोकप्रियता को दिखाता है।” हुसैन की इससे पहले सबसे महंगी पेंटिंग Untitled (Reincarnation) थी, जो पिछले साल लंदन में करीब 26.8 करोड़ रुपये (3.1 मिलियन डॉलर) में बिकी थी।
पेंटिंग में गांव की कहानी
साल 1954 में बनी यह पेंटिंग लगभग 14 फीट लंबी है। इसमें हुसैन ने भारतीय गांव की ज़िंदगी के 13 अलग-अलग दृश्यों को दिखाया है। पेंटिंग के बीच में एक पुरुष और महिला बैलगाड़ी पर बैठे हैं, जो भारत के कृषि जीवन को दर्शाता है। इसके आसपास महिलाएं गाय का दूध दुहती, अनाज पीसती और बच्चों की देखभाल करती नज़र आती हैं। एक किसान की छवि भी दिखाई गई है, जो ज़मीन को ऊपर उठाते हुए देश की नींव का प्रतीक है।
पेंटिंग का सफर
यह पेंटिंग अपने आप में भी एक रोचक सफर तय कर चुकी है। 1954 में बनकर तैयार होने के बाद, यह भारत से नॉर्वे चली गई। नॉर्वे के डॉक्टर लियोन एलियास वोलोडार्स्की ने इसे खरीदा था। वे दिल्ली में विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए एक सर्जरी प्रशिक्षण केंद्र खोलने आए थे। बाद में उन्होंने यह पेंटिंग 1964 में ओस्लो यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल को दान कर दी। अब इस पेंटिंग की नीलामी से मिली रकम अस्पताल में डॉक्टरों के प्रशिक्षण में खर्च की जाएगी।
हुसैन की कला में वैश्विक प्रभाव
इस पेंटिंग के दोबारा सामने आने से कला प्रेमियों में काफी उत्साह है। इसमें यूरोपीय और पूर्वी एशियाई कला शैलियों का असर दिखता है। 1952 में चीन यात्रा के दौरान हुसैन ने कलाकार शू बेइहॉन्ग और ची बाईशी से मुलाकात की थी। उनके ब्रशवर्क की झलक ग्राम यात्रा में मिलती है। 1953 में यूरोप जाकर उन्होंने पिकासो, मतीस, पॉल क्ली और मोदिग्लियानी जैसे कलाकारों के काम को भी करीब से देखा।
फिर भी, हुसैन की यह कृति भारतीय संस्कृति और गांव की मिट्टी से जुड़ी हुई है। निशाद अवरी कहते हैं, “अगर आप एक ऐसी पेंटिंग ढूंढ रहे हैं जो आधुनिक दक्षिण एशियाई कला को परिभाषित करे, तो यह वही है।”