केंद्र सरकार की अंतरविभागीय उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने रिफर्बिश्ड या पुराने मेडिकल उपकरणों के भारत में आयात के लिए नए नियम तैयार करने पर चर्चा शुरू कर दी है। उद्योग के अधिकारियों के अनुसार पहले इस्तेमाल किए गए मेडिकल उपकरणों का 1,500 करोड़ रुपये बाजार इस समय देश के समग्र मेडिकल उपकरण उद्योग का करीब 10 प्रतिशत है।
इस मामले से जुड़े लोगों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि अब तक दो ही बैठकें हुई हैं, लेकिन समिति ने रिफर्बिश्ड उपकरण बाजार के आंकड़े की समीक्षा शुरू कर दी है। अधिकारियों ने पुष्टि की कि इस समिति में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू), स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ), फार्मास्यूटिकल्स विभाग के प्रतिनिधि और उद्योग के प्रतिनिधि शामिल हैं।
सीडीएससीओ ने सीमा शुल्क के प्रधान आयुक्त को 10 जनवरी को एक पत्र लिखा था, जिसमें नियामक ने संज्ञान में लिया कि मेडिकल उपकरण नियम (एमडीआर), 2017 में रिफर्बिश्ड उपकरणों के बारे में कोई नियम नहीं है। उसके बाद बदलाव की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। एक अधिकारी ने कहा, ‘जिन प्रमुख मसलों पर समिति चर्चा कर सकती है, उनमें सेकंड हैंड उपकरण की सेवा की अवधि का निर्धारण या सिर्फ महंगे उपकरणों को अनुमति, महंगे क्रिटिकल केयर उपकरण जैसे विषय शामिल हैं।’
सूत्र ने आगे कहा, ‘स्वास्थ्य मंत्रालय एमडीआर के प्रावधानों में संशोधन कर रहा है, हम नीति निर्माण में सीधे तौर पर शामिल नहीं हैं। हालांकि, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने टिप्पणियों के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ एक मसौदा या प्रस्ताव साझा किया है।’
पुराने चिकित्सा उपकरणों में रोबोटिक असिस्टेड सर्जरी (आरएएस) सिस्टम, लीनियर एक्सेलरेटर (लिनैक) और सीटी स्कैनर शामिल हैं। उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, ‘ये छोटे और मझोले शहरों के साथ-साथ ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में बढ़ती मांग को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।’