अमेरिका की फर्स्ट सोलर पिछले दशक से भारत में मौजूद है और वह देश में बड़े स्तर पर सौर ऊर्जा उपयोग की शुरुआत की साक्षी रही है। यह जल्द ही देश में अपनी पहली विनिर्माण इकाई भी स्थापित करेगी। अधिक दक्षता वाले सोलर मॉड्यूल के लिए केंद्र की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के पहले दौर में फर्स्ट सोलर तीन विजेताओं में से एक थी। कंपनी दुनिया की शीर्ष 10 सौर विनिर्माताओं में से एक है।
फर्स्ट सोलर 3.5 गीगावॉट की सोलर मॉड्यूल विनिर्माण इकाई स्थापित करने की योजना बना रही है और तमिलनाडु में जगह चिह्नित की है। बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में फर्स्ट सोलर के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (भारत) सुजॉय घोष ने कहा कि भारत कंपनी के 20 गीगावॉट के वैश्विक उत्पादन लक्ष्य के प्रमुख संचालकों में से एक होगा।
घोष ने कहा कि वर्ष 2022 (कैलेंडर वर्ष) के अंत तक हमारे पास अमेरिका, वियतनाम और मलेशिया में हमारी इकाइयों से वैश्विक उत्पादन में हमारी सालाना 10 गीगावॉट सोलर मॉड्यूल उत्पादन की मौजूदगी थी। हमारा लक्ष्य वर्ष 2025 तक 20 गीगावॉट क्षमता हासिल करना है। अमेरिका और भारत दोनों में ही वृद्धिशील विस्तार से ऐसा होगा।
वियतनाम और मलेशिया योगदान देना जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 23 की पहली तिमाही के परिणाम में कंपनी ने विनिर्माण में 10 गीगावॉट की अपनी मौजूदगी की तुलना में 27 गीगावॉट के बकाया ऑडर्र की घोषणा की थी। घोष ने कहा कि विनिर्माण में हमारे इजाफे के मद्देनजर ऐसा है क्योंकि हमें बड़े स्तर वाले सौर क्षेत्र में अपने उत्पाद की सार्थक मांग मिल रही है।
भारत की सौर उपकरण की मांग काफी हद तक आयात के जरिये पूरी की जाती है। भारतीय सौर क्षमता का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा आयातित सेल और मॉड्यूल पर तैयार किया गया है, जो ज्यादातर चीन से आयात किया गया है।
पिछले साल केंद्र ने घरेलू सौर विनिर्माण को समर्थन देने और चीनी आयात पर लगाम लगाने के लिए आयातित सौलर सेल पर 25 प्रतिशत बुनियादी सीमा शुल्क (बीसीडी) और आयात पर 40 प्रतिशत शुल्क लगाया था। साथ ही पीएलआई योजना के जरिये सरकार ने सोलर वेफर्स, सेल और मॉड्यूल के स्वदेशी विनिर्माण के लिए 48 गीगावॉट क्षमता प्रदान की है।