व्रत और संयम का पवित्र महीना श्रावण मास में देश कई हिस्सों में बम बम भोले की धूम है। सावन की रिमझिम फुहारों के साथ बम बम भोले की गूंज व्यापार को भी नई ऊर्जा देने वाला महीना साबित हो रहा है। इस महीने में जन्माष्टमी और रक्षाबंधन के दो बड़े त्यौहार कारोबार मजबूत करने का काम करते हैं। कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के अनुमान के मुताबिक सावन महीने में देश भर में 40000 करोड़ का व्यापार होने का अनुमान है।
कैट महाराष्ट्र प्रदेश के महामंत्री शंकर ठक्कर ने कहते हैं कि हमारे पूर्वजों की सोच को नमन करना चाहिए कि उन्होंने धार्मिक उत्सवों का आयोजन इस प्रकार किया कि समाज के हर वर्ग की आर्थिक समृद्धि हो सके। ऐसा लगता है कि अधिकांश त्योहार गाँव में उत्पादों की बिक्री प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शहरों में नियोजित होती है जिसके जरिए ग्रामीण अर्थतंत्र मजबूत बनता है। सावन में व्रत में खाए जाने वाली वस्तुओं की मांग बहुत ही बढ़ जाती है। इस महीने में दूध , मिठाई, व्रत में खाए जाने वाले नमकीन, प्रसाद, फल ड्राई फ्रूट, पूजा के समान और मंदिरों की सजावट के लिए फूलों की भी काफी बिक्री होती है। धार्मिक स्थलों पर दर्शन के लिए जाने वाले लोगों से ट्रैवल्स व्यवसाय मैं काफी बढ़ोतरी देखने को मिलती है।
पूजा पाठ के आयोजन बढ़ने की वजह से धार्मिक विधि विधान के लिए पंडितों की सबसे ज्यादा मांग होती है। श्रद्धा और भक्ति में लीन लोग जमकर पैसा खर्च करते हैं जिसका फायदा बाजार को मिलता है। अकेले महाराष्ट्र में एक हजार करोड़ रुपये से अधिक का व्यापार माना जाता है।
उत्तर भारत में होने वाली प्रमुख कावड़ यात्रा बारिश में भी व्यापार में गर्मी ला देती है। कावड़ बनाने के लिए बाँस, लकड़ी, रंगीन कागज, कपड़ा और घंटी या घुँघरू का बाजार गुलजार है । उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ या एटा के सैकड़ों परिवारों की आमदनी केवल घंटी और घुँघरू बनाने पर ही निर्भर है और वो इस सीजन में अच्छी कमाई करते हैं। अलीगढ़ को ताला उद्योग के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन ये घुँघरू-घंटी उद्योग के लिए भी लोकप्रिय है।
काँवड़िए पाँवों में घुँघरू बाँधते हैं, घंटी काँवड़ में लगा दी जाती है। अकेले अलीगढ़ में ऐसे 1000 कारखाने हैं जहाँ हजारों मजदूरों को रोजगार मिलता है। सामान्यतः घंटी-घुँघरू पीतल के होते हैं। कच्चे माल की गलाई के बाद ढलाई, घिसाई, पॉलिश, पैकिंग इत्यादि का काम किया जाता है। बड़ी बात तो ये है कि यहाँ कई मुस्लिम मजदूर भी हैं, अर्थात काँवड़ यात्रा मुस्लिमों को भी रोजगार देती है।
जिस तरह काँवड़ बनाने वाले बढ़ई लोगों और घुँघरू-घंटी बनाने वाले मजदूरों को रोजगार मिलता है, ठीक उसी तरह से कपड़ों का कारोबार भी सावन के महीने में खूब परवान चढ़ता है। टेंट हाउस, डीजे संचालक, हलवाइयों और जेनेरेटर मालिकों की बुकिंग बढ़ जाती है। ये बहुत अमीर लोग नहीं होते, बल्कि गांव-समाज और शहर के ही लोग होते हैं जिनका स्थानीय कारोबार होता है। शिवभक्त भंडारा करते हैं, ऐसे में प्रसाद बनाने में इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री भी बढ़ जाती है।
टीशर्ट, निक्कर, पटका, तौलिया या फिर बटुआ, ये सब की बिक्री भी छोटे दुकानदार ही करते हैं। महाकाल लिखे टीशर्ट्स हों या फिर भगवान शिव की तस्वीर वाले, इनकी माँग बढ़ जाती है और बिक्री भी।
सबसे बड़ी बात, मंदिर के आसपास फल और बेलपत्र बेचने वाले बहुत ही गरीब लोग होते हैं और केवल इन दोनों का कारोबार करोड़ों का होता है। प्रसाद में फल लोग लेते ही हैं। महिलाओं की श्रृंगार की वस्तुएँ भी खूब बिकती हैं। इस प्रकार पूरे देश में कुल मिलाकर 40000 करोड़ के सावन महीने के व्यापार का अनुमान है।