दिल्ली हाई कोर्ट के हालिया फैसले के बावजूद, दिल्ली-एनसीआर के ज़्यादातर रेस्टोरेंट अब भी बिल में 5-10 फीसदी तक का सर्विस चार्ज जोड़ रहे हैं। दिल्ली के पॉश खान मार्केट में अधिकतर रेस्टोरेंट “सर्विस चार्ज”, “स्टाफ वेलफेयर कॉन्ट्रिब्यूशन चार्ज” या “स्टाफ कॉन्ट्रिब्यूशन चार्ज” के नाम पर अतिरिक्त रकम वसूल रहे हैं।
रेस्टोरेंट मैनेजरों का कहना है कि यह चार्ज वैकल्पिक है और ग्राहक अगर मांग करें तो इसे हटाया जा सकता है। हालांकि, यह रकम बिल में पहले से जोड़ी जा रही है, जिससे ग्राहक को ही ध्यान देना पड़ता है कि वह इसे हटवाना चाहते हैं या नहीं। कनॉट प्लेस और ग्रेटर कैलाश (GK) के मशहूर M-ब्लॉक मार्केट में भी कई रेस्टोरेंट 5-12 फीसदी तक का चार्ज ले रहे हैं।
हालांकि कुछ रेस्टोरेंट्स ने 28 मार्च के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद इस चार्ज को हटाया है। इनमें खान मार्केट के पर्च वाइन एंड कॉफी बार, एंड्रियास बार एंड ब्रैसरी (Andrea’s Bar & Brasserie), GK के फिग एंड मेपल, Berco’s, और कनॉट प्लेस के सोशल और लॉर्ड ऑफ द ड्रिंक्स शामिल हैं।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा था कि सर्विस चार्ज को अनिवार्य रूप से लेना कानून का उल्लंघन है और यह ग्राहकों के अधिकारों के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि अगर ग्राहक खुश होकर टिप देना चाहें तो उस पर कोई रोक नहीं है, लेकिन यह रकम बिल में पहले से जोड़ी नहीं जानी चाहिए और यह पूरी तरह ग्राहक की मर्जी पर निर्भर होनी चाहिए।
इस फैसले के बाद, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने पांच रेस्टोरेंट्स को स्वतः संज्ञान लेकर नोटिस भेजा, क्योंकि उन्होंने वसूला गया सर्विस चार्ज लौटाने से इनकार कर दिया था।
इस बीच, नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) ने हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच में इस फैसले के खिलाफ अपील की है, जो फिलहाल लंबित है। कई रेस्टोरेंट अब मेनू में आइटम्स के दाम बढ़ाने की योजना भी बना रहे हैं।
रेस्तरां में सर्विस चार्ज को लेकर चल रही बहस पर नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) के एक प्रवक्ता ने Business Standard को बताया कि खाने की कीमतें बढ़ाना कोई व्यावहारिक उपाय नहीं है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर रेस्तरां प्रॉपर्टी मालिकों के साथ रेवेन्यू-शेयरिंग मॉडल पर चलते हैं। ऐसे में अगर सर्विस चार्ज को मैक्सिमम रिटेल प्राइस (MRP) में जोड़ा जाता है, तो इससे मुनाफे पर असर पड़ेगा और स्टाफ को उसका फायदा नहीं मिलेगा।
प्रवक्ता ने कहा कि रेस्तरां सर्विस चार्ज इसलिए लगाते हैं ताकि ग्राहकों को बेहतर सेवा दी जा सके और वेटर व अन्य स्टाफ को उसका मेहनताना मिल सके।
इस बीच, कानून फर्म खैतान एंड कंपनी के पार्टनर करुण मेहता का कहना है कि बिल में सर्विस चार्ज को अपने आप जोड़ देना और फिर ग्राहक के कहने पर उसे हटाना—यह उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की गाइडलाइंस का उल्लंघन माना जा सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि रेस्तरां बिल में एक खाली जगह छोड़ सकते हैं जहां ग्राहक अपनी इच्छा से सर्विस चार्ज की रकम भर सकते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में सर्विस चार्ज को लेकर स्पष्ट किया है कि केवल इसका नाम बदल देने से इसकी कानूनी स्थिति नहीं बदल जाती। करंजावाला एंड कंपनी के प्रिंसिपल एसोसिएट विशाल गेहराना ने कहा कि यदि किसी रेस्तरां या होटल में सर्विस चार्ज को “स्टाफ वेलफेयर फंड” या “टीम के लिए योगदान” जैसे नामों से पेश किया जाता है, तो इससे कानून की अनदेखी नहीं छुपती। उन्होंने कहा कि असली मुद्दा यह है कि ग्राहक की स्पष्ट सहमति के बिना यदि यह शुल्क बिल में जोड़ा जाता है, तो वह दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा और इसके चलते रेगुलेटरी कार्रवाई हो सकती है। नाम बदला जा सकता है, लेकिन नियमों से नहीं बचा जा सकता।
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सर्विस चार्ज असल में एक टिप, ग्रैच्युटी या स्वैच्छिक योगदान है और इसके लिए “सर्विस चार्ज” शब्द का इस्तेमाल करना उपभोक्ताओं को भ्रमित करता है। उपभोक्ता अक्सर इसे सर्विस टैक्स, जीएसटी या अन्य किसी सरकारी टैक्स के रूप में समझ बैठते हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि उपभोक्ता के रेस्तरां में प्रवेश करते ही सर्विस चार्ज को स्वीकार कर लेने का तर्क उपभोक्ता अधिकारों को कम नहीं कर सकता, क्योंकि यह चार्ज वसूलना ही कानून के खिलाफ है। कोर्ट ने साफ किया कि उपभोक्ता की सहमति के बिना इस तरह का कोई शुल्क लागू नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने साफ कहा है कि रेस्टोरेंट्स द्वारा सर्विस चार्ज वसूलना और उसके लिए अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल करना उपभोक्ताओं को गुमराह करने वाला और भ्रामक तरीका है। यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(47) के तहत अनुचित व्यापारिक प्रथा (Unfair Trade Practice) मानी जाएगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह तर्क मान्य नहीं है कि ग्राहक यदि मेन्यू में सर्विस चार्ज का उल्लेख देखकर सेवा लेता है, तो इसे सहमति मान लिया जाए। कोर्ट के अनुसार, इस तरह की शर्तें जबरदस्ती की जाती हैं और यह अनुचित संविदात्मक शर्त (Unfair Contractual Obligation) है।
सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे वकील तुषार कुमार ने बताया कि अगर कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया गया, तो संबंधित रेस्टोरेंट्स के खिलाफ कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) भी कार्रवाई कर सकता है।
वहीं, अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड अंशुमान सिंह ने कहा कि ऐसे रेस्टोरेंट्स पर CCPA जुर्माना और अन्य दंडात्मक कार्रवाई भी कर सकता है।