चीन जैसे देशों द्वारा भारत में कम आयात शुल्क का फायदा उठाते हुए पेट्रोरसायन उत्पादों को ‘डंप’ किए जाने की आशंका है। एक शीर्ष व्यापार निकाय ने इस बारे में सरकार को पत्र लिखकर इन उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है। फिक्की (FICCI)की पेट्रोकेमिकल्स एवं प्लास्टिक समिति ने रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय को पत्र लिखकर पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन पर सीमा शुल्क या आयात शुल्क को 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत करने की मांग की है। पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन का व्यापक रूप से मोटर वाहन, पैकेजिंग, कृषि, इलेक्ट्रॉनिक और चिकित्सकीय उपकरणों के साथ-साथ निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है। भारत में पेट्रोरसायन की कमी है।
अब तक घोषित क्षमता वृद्धि को ध्यान में रखते हुए पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन की अनुमानित कमी 2030 तक मौजूदा मूल्य स्तर पर 1.2 करोड़ टन प्रति वर्ष या 12 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। भारतीय उत्पादक कारोबार की चक्रीय प्रकृति में फंसे हुए हैं, वहीं चीन पेट्रो रसायन उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है और तेजी से एक प्रमुख निर्यातक बन रहा है। भारत के प्रमुख आयात स्थान वर्तमान में पश्चिम एशिया और अमेरिका हैं जो कच्चे माल की कम दाम पर उपलब्धता के कारण बेहतर मुनाफे का लाभ लेते हैं।
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भारत सरकार को लिखे अपने मांग पत्र में फिक्की (FICCI)की पेट्रोकेमिकल्स एवं प्लास्टिक समिति ने बताया कि रसायनों और पेट्रोरसायनों का वर्तमान आयात 101 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो भारत के लिए अपने आयात बिल को कम करने और आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने का एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है। रसायन और पेट्रोरसायन भारत में आयात की दूसरी सबसे बड़ी श्रेणी है। पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन के आयात पर शुल्क की कम दर इन सामग्रियों के लिए भारतीय बाजार में वृद्धि अपेक्षाकृत आसान बनाती है।
समिति ने लिखा कि आयात में यह वृद्धि हमारे घरेलू उत्पादकों के मुनाफे के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न करती है, जिससे स्थानीय बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बाधित होती है। अनावश्यक आयात के कारण विदेशी मुद्रा की अनावश्यक निकासी होती है, चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़ता है तथा घरेलू क्षमता का कम उपयोग होता है। समिति ने कहा कि सीमा शुल्क में वृद्धि से उद्योग में नए निवेश के समक्ष आने वाले कुछ जोखिमों मसलन लंबी भुगतान अवधि और कम आंतरिक प्रतिफल दर को कम करने में मदद मिलेगी।
भारतीय रसायन उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ऑटोमोटिव, टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, पर्सनल केयर, निर्माण और इंजीनियरिंग, खाद्य उत्पादन और प्रसंस्करण आदि जैसे डाउनस्ट्रीम उद्योगों के लिए 80,000 से अधिक कैमिकल उत्पादों की जरुरत होती है।
अनुकूल मेगाट्रेंड के चलते भारतीय रसायन उद्योग पिछले 6 वर्षों में 7.6% की दर से बढ़कर वित्त वर्ष 2016 तक 155 बिलियन अमेरिकी डॉलर याने करीब 13 लाख 20 हजार करोड़ रुपये है। भारतीय रसायन बाजार 2025 तक 9.3% की दर से बढ़ रहा है, जिसमें Speciality chemicals साल 2025 तक 12% से अधिक की सीएजीआर के साथ बढ़ रहे हैं।
विशाल बाजार को देखते हुए भारत के दुनिया के चौथे बड़े उपभोक्ता देश बनने की क्षमता है। लेकिन क्या घरेलू उत्पादन से मांग पूरी हो पाएगी, इस पर सवालिया निशान है। आपूर्ति और मांग के बीच का अंतर हाल के वर्षों में लगातार बढ़ रहा है और आयात से इसकी पूर्ति हो रही है। वहीं रासायनिक क्षेत्र (Chemical Sector) में नए निवेश बहुत कम हैं, जो चिंता का विषय है। भारत का कैमिकल उद्योग वैश्विक स्तर के बुनियादी ढांचे, लॉजिस्टिक, Ease of doing business और प्रतिस्पर्धी कीमतों से मुकाबला करने की लड़ाई लड़ रहा है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)