भारत में अत्यधिक महत्वपूर्ण 6 GHz स्पेक्ट्रम बैंड का आवंटन अटक गया है। दूरसंचार विभाग (DoT) ने इस पर अपना फैसला टाल दिया है, क्योंकि दूरसंचार ऑपरेटरों और टेक्नोलॉजी कंपनियों के बीच विवाद बढ़ रहा है। जब तक कोई समाधान नहीं निकलता, पूरे 6 GHz बैंड का उपयोग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा सैटेलाइट उद्देश्यों के लिए किया जाता रहेगा। यह जानकारी फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दी गई है।
6 GHz स्पेक्ट्रम 5G और वाई-फाई सेवाओं के लिए बढ़िया
6 GHz स्पेक्ट्रम, जो 5925-7125 MHz की फ्रीक्वेंसी को कवर करता है, 5G और वाई-फाई सेवाओं के लिए बढ़िया माना जाता है क्योंकि यह तेज़ स्पीड दे सकता है। दूरसंचार ऑपरेटर इस स्पेक्ट्रम को 5G सेवाओं के विस्तार के लिए आवंटित करने की वकालत कर रहे हैं। इसके विपरीत, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और अमेज़न जैसी टेक्नोलॉजी कंपनियां इस स्पेक्ट्रम को केवल वाई-फाई सेवाओं के लिए रिजर्व करने की मांग कर रही हैं। टेलीकॉम कंपनियों को डर है कि यदि टेक कंपनियों को इस बैंड का वाई-फाई के लिए उपयोग करने की अनुमति दी जाती है, तो इससे उनकी सेवाओं को नुकसान पहुंच सकता है।
DoT ने सरकार, टेलीकॉम कंपनियों और टेक फर्मों के साथ की चर्चा
इस बढ़ते विवाद को हल करने के लिए DoT ने सरकार के प्रतिनिधियों, टेलीकॉम ऑपरेटरों और टेक्नोलॉजी कंपनियों सहित सभी हितधारकों के बीच चर्चाओं की शुरुआत की है। रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस जियो ने इन चर्चाओं को जारी रखने और एक बीच का रास्ता निकालने का प्रस्ताव रखा है। इसके अलावा, DoT ने एक नया फ्रीक्वेंसी आवंटन प्लान विकसित करने के लिए तीन वर्किंग ग्रुप्स का गठन किया है, जिसकी रिपोर्ट अगले छह महीनों के भीतर तैयार होने की उम्मीद है।
इस योजना के नतीजे को सरकार के वायरलेस सलाहकार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय फ्रीक्वेंसी आवंटन योजना (NFAP) समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा।
6 GHz बैंड से इसरो की सैटेलाइट ऑपरेशन में हो सकती है रुकावट
6 GHz बैंड का आवंटन विवादास्पद है क्योंकि इससे इसरो के सैटेलाइट संचालन में संभावित रुकावट की चिंता जताई जा रही है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि मोबाइल सेवाएं सैटेलाइट्स की वर्किंग में दखल डाल सकती हैं, जबकि वाई-फाई में कम पावर के कारण, ऐसी समस्याएं पैदा करने की संभावना कम है। इसरो ने भी इस स्पेक्ट्रम को टेलीकॉम सेवाओं के लिए आवंटित करने का विरोध किया है।
टेक कंपनियों का तर्क है कि यदि पूरा 6 GHz बैंड डीलाइसेंस नहीं किया गया, तो भारत ग्लोबल पॉलिसी में अलग-थलग पड़ सकता है, घरेलू विनिर्माण में बाधा आ सकती है, और डिजिटल आर्थिक विकास धीमा हो सकता है। इसके अलावा, अगर यह बैंड टेलीकॉम सेवाओं को आवंटित किया गया, तो इससे गैर-विश्वसनीय स्रोतों से आयात बढ़ सकता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
दूसरी ओर, टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि यदि 6 GHz स्पेक्ट्रम को वाई-फाई के लिए बिना नीलामी के आवंटित किया गया, तो इससे राष्ट्रीय खजाने को भारी वित्तीय नुकसान हो सकता है। यह 6 GHz बैंड टेलीकॉम सेक्टर के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मिड-बैंड स्पेक्ट्रम की एकमात्र रेंज है, जहां प्रत्येक टेलीकॉम सेवा प्रदाता को 300-400 MHz का लगातार बैंडविड्थ मिल सकता है, जो 2030 तक तेजी से बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए जरूरी है।
DoT का अंतिम निर्णय इस बात पर निर्भर करेगा कि अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल दूरसंचार (IMT) और सैटेलाइट सेवाएं साथ-साथ कैसे काम कर सकती हैं। भारत के पास 2027 तक 6 GHz स्पेक्ट्रम के आवंटन पर अंतिम फैसला लेने का समय है।